अंग्रेज़ों ने हमे आपस में ही लड़वा कर हमे एक दूसरे का दुश्मन बना दिया- प्रो वैद्यनाथ लाभ

ग्वालियर: जीवाजी विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला द्वारा “इतिहास विषय में भारतीय ज्ञान परम्परा” विषय पर आयोजित 2 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के द्वितीय दिवस में दो सत्रों में विद्वानों द्वारा व्याख्यान दिये गये जिसमें प्रो चाँद किरण सलूजा शिक्षाविद् ने आपना विद्वता एवं ओजस्वी वक्तव्य द्वारा श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर गया। भारतीय ज्ञान परंपरा का इस की क्षेत्र नही था जिसे आपने नही छुआ। आपने प्राचीन ग्रंथों के उद्धरण दिया एवं बताया की आज के युवा को उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता है बस, वह संभावनाओं से भरा हुआ है। उन्होंने कहा कि हमें हीन भावना को त्याग कर भारतीय ज्ञान परम्परा पर गर्व करना होगा और इस पर हमारे आज के युवाओं को गौरान्वित महसूस करने की आवश्यकता है l

प्रो वैद्यनाथ लाभ, कुलगुरु सांची विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन भारत में बुद्ध परंपरा की महानता एवं प्रासंगिकता पर आधारित रहा, आपका कहना था की अंग्रेज़ों ने हमे आपस में ही लड़वा कर हमे एक दूसरे का दुश्मन बना दिया है। हमारी परंपरा को दूषित किया गया है, ज़रूरत है की हम इसे समझे और ज्ञान का दीपक जला कर भारत को विश्व गुरु बनाने में अपना योगदान दें।डॉ राकेश शर्मा , विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, मण्डी (हिमाचल प्रदेश) ने अपने उद्बोधन इतिहास लेखन को भारतीय दृष्टिकोण के अनुकूल बनाने की आवश्यकता पर आधारित था। उन्होंने बताया की भारत में कोई भी ज्ञान की विधा उपयोग रहित नही है। हर नामकरण के पीछे भी कुछ न कुछ चिंतन छुपा हुआ है। आज हमे आवश्यकता है की हम इन इनकी तरफ फिर से ध्यान दें और उन्हे विद्यालयों के पाठ्यक्रमों मैं शामिल किया जाना चाहिए।
प्रो कुमार रत्नम, अतिरिक्त संचालक, ग्वालियर-चंबल संभाग ने अपने उद्बोधन में इस बात पर बल दिया कि भारत का युवा संभावनाओं सर भरा हुआ है, आवश्यकता है की उस उचित दिशा और मार्गदर्शन दिया जाए। वो स्वयं के लिए भविष्य निर्माता बन सकता है। आज की नयी शिक्षा नीति को इस तरह से लागू किया जाए की वह स्वयं की एवं राष्ट्र की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।डॉ शिवाकांत बाजपेयी, अधीक्षण पुरातत्ववेत्ता (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, जबलपुर सर्किल) ने अपने व्याख्यान में प्राचीन भारत की पांडुलिपि का अपार भंडारकर प्राच्य संशोधन संस्थान आदि संस्थानों में हैं उनके संरक्षण की आवश्यकता है एवं उसे इतिहास लेखन में शामिल करने की आवश्यकता है।
प्रो कपिल देव मिश्रा (पूर्व कुलगुरु, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर) युवा छात्रों को आचार्यों का मार्गदर्शन सबसे आवश्यक है अन्यथा वह दिग्भ्रमित हो सकता है। इसमें गलती छात्र की नही बल्कि समाज, शासन आदि की भूमिका ही निर्धारक स्थिति में होती है।
अंत में आभार कार्यशाला के आयोजन सचिव प्रो शान्तिदेव सिसोदिया ने सभी अतिथियों, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, विभाग के सभी छात्र/छात्राओं, विश्वविद्यालय प्रशासन, विभाग के कर्मचारियों का आभार प्रकट किया l

Next Post

अब हजार बिस्तर अस्पताल में 24 घंटे रजिस्ट्रेशन काउंटर की सुविधा

Mon Jul 1 , 2024
ग्वालियर: मरीजों की समस्या को ध्यान में रखते हुए अब हजार बिस्तर अस्पताल में 24 घंटे रजिस्ट्रेशन काउंटर शुरु किया गया है। इससे ना केवल मरीजों के पास पर्चा बनवाने के लिए विकल्प उपलब्ध रहेगा बल्कि यदि कोई मरीज 08 बजे से पहले ओपीडी पर्चा बनवाना चाहे, वह भी बनवा […]

You May Like