जटिल है धर्मांतरित लोगों की डीलिस्टिंग का मुद्दा

मालवा- निमाड़ की डायरी
संजय व्यास

आरक्षण सहित आदिवासियों के कई हितों पर डाका डाल रहे धर्मांतरित व्यक्तियों को जनजाति की सूची से बाहर करने के लिए अंचल का आदिवासी समाज कुछ वर्षों से सतत आंदोलनरत है. विधान सभा चुनाव फिर लोक सभा निर्वाचन के चलते ठंडा पड़ गए आंदोलन को वापस दिशा दी जा रही है. हाल ही में जनजाति सुरक्षा मंच जिला अलीराजपुर द्वारा धर्मांतरित लोगों की डीलिस्टिंग के विषय को लेकर बैठक रखी गई थी जिसमें जनजाति सुरक्षा मंच के क्षेत्र संयोजक कालू सिंह मुजाल्दा, जिला संयोजक नरींग मोरी ने प्रधानमंत्री मोदी के समक्ष पत्र लिख इस मुद्दे को उठाया है. जनजाति सुरक्षा मंच की मांग है कि धर्मांतरित व्यक्तियों को जनजाति की सूची से बाहर कर संविधान के अनुच्छेद 342 में संशोधन किया जाए.

उल्लेखनीय है कि संविधान के इस अनुच्छेद के अनुसार – 342 (1)- राष्ट्रपति किसी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में और जहाँ राज्य है वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श करने के पश्चात् लोक अधिसूचना द्वारा उन जनजातियों या जनजाति समुदायों अथवा जनजातियों या जनजाति समुदायों के हिस्सों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजातियाँ समझा जाएगा. 342 (2)- संसद कानून द्वारा खंड (1) के तहत जारी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जनजातियों की सूची में किसी भी जनजाति या आदिवासी समुदाय या किसी जनजाति या आदिवासी समुदाय के हिस्से या समूह को शामिल कर सकती है या बाहर कर सकती है, लेकिन उपरोक्त के तहत जारी अधिसूचना को छोडक़र उक्त खंड किसी भी बाद की अधिसूचना द्वारा परिवर्तित नहीं किया जाएगा.

वर्तमान में यह मांग की जा रही है कि जो लोग अपनी मूल धर्म-संस्कृति त्याग चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए. इस अनुच्छेद 342 के संशोधन को पारित कर पाना एक कठिन कार्य है. इसका एक रास्ता तो संविधान संशोधन से निकलता है, जिसके तहत अनुच्छेद 341 के अनुरूप ही अनुच्छेद 342 में भी यह संशोधन कर दिये जाए कि जिस प्रकार अनुच्छेद-341 में विदेशी धर्म स्वीकार करने वालों को अनुसूचित जाति का लाभ नहीं दिया जाता, उसी प्रकार अनुच्छेद-342 में भी विदेशी धर्म अथवा वे धर्म जिसमें प्रकृति पूजा की अनुमति नहीं है, उन्हें स्वीकार करने वालों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा न दिया जाए. ख्रैर मामला जटिल है, देखना होगा कि प्रधानमंत्री क्या संज्ञान लेते हैं.

दिख रहा पटवारी की धमक का असर

लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की अनपेक्षित हार के बाद प्रदेशाध्यक्ष जीतू पटवारी के सारे घर के बदल दूंगा की तर्ज पर जिले से लेकर पंचायत स्तर के निष्क्रिय पदाधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखा मैदानी व सक्रिय युवा नेताओं को बागडोर सौंपने का निर्णय लेने के बाद कांग्रेस में हलचल नजर आने लगी है. जो नेता केवल बयानों तक सीमित थे, अपनी हैसियत बचाने सडक़ों पर जनता के बीच दिखाई दे रहे हैं. पटवारी की धमक का असर नीमच में भी सामने आया. जिला कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौरसिया भी एक्टिव हुए और नीमच ग्रामीण ब्लॉक के गांव दारू में कांग्रेस चली गांव-गांव गली-गली अभियान का श्री गणेश किया. साथ ही आम आदमी के दिलों में जगह बनाने के नुस्खे बताते हुए कार्यकर्ताओं को संदेश दिया कि आम जनता के सुख-दुख में भागीदार बने मौत-मरण-परण और सामाजिक कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता निभाएं. संस्कृति उत्सव, व मेलों में बढ़-चढक़र हिस्सा लें. आम जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, आधार कार्ड और आयुष्मान कार्ड में आ रही परेशानियों को दूर करें. इसके पश्चात चौरसिया जिला पंचायत सदस्य, मंडल अध्यक्ष, वरिष्ठ नेताओं के साथ ग्राम दारू की गली-गली घूमे और निकटता बढ़ाने जनमानस को टटोला.

मैदान में नई टीम उतारने के लिए बन रही लिस्ट

खंडवा कांग्रेस की टीम में बदलाव के पूर्व पार्टी अपने कार्यालय गांधी भवन की गरिमा को निखारने में जुट गई है. गांधीभवन का स्वरूप निखारने के बाद जिलाध्यक्ष अजय ओझा और नगर अध्यक्ष डा. मुनीष मिश्रा संगठन को मजबूत करने के लिए काम करेंगे. ऊर्जावान व सक्रिय नेताओं को पद दिए जाएंगे. शान-ओ-शौकत व रुतबे के लिए लेटरपेड चलाने वालों की जल्द छुट्टी होगी. उन्हें हाशिये पर लाने की तैयारी चल रही है. सक्रिय लोगों को पार्टी मजबूत करने की कमान दी जाएगी. सत्ता में कांग्रेस भले ही न हो, लेकिन विपक्ष की कडक़ भूमिका के लिए मैदान में नई टीम उतारने के लिए लिस्ट बन रही है. इसे सक्रियता के चलने में छाना जा रहा है. किसने किन आंदोलनों में पिछले पांच साल में क्या भूमिका निभाई? लेटर पेड वाली राजनीति करने का कौन सा पदाधिकारी शौकीन है? इन मापदंडों पर ही पदाधिकारी पार्टी में अंदर व बाहर होंगे. मतलब साफ है कि कई बड़े कहे जाने वाले निष्क्रिय नेता भी बाहर कर दिए जाएंगे. इसमें युवाओं व कम उम्र के लोगों को ज्यादा जिम्मेदारी दी जाएंगी. साल भर का प्रोग्राम चाक-आउट होगा. ज्वलंत समस्याओं और आम लोगों की जरूरतों के मामलों पर कांग्रेस सडक़ पर उतरेगी. इसमें भी पूरी प्लानिंग से जनता को जोडक़र आंदोलन होंगे. आंदोलनों में केवल फोटो खिंचवाकर मीडिया में आने पर भी विशेष ध्यान रखा जाएगा. अनुशासन और सम्मानजनक स्थिति पर विशेष ध्यान दिया जाएगा.

 

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