भक्ति मार्ग पर चलने के लिए सहज और सरल होना आवश्यक है:पंडित सुभाष शर्मा

कुक्षी।भक्ति और प्रार्थना में जब भाव जुड़ जाता है तो भक्ति की शक्ति जीवनरक्षक ,आत्मकल्याणी और जगकल्याणी बन जाती है वही बिना भाव की भक्ति आडंबर होकर निरर्थक रह जाती है,भक्ति का जगकल्याणी स्वरूप भागीरथ और गंगा अवतरण में देखने को मिलता है।यह बात इच्छापूर्ण हनुमानजी मंदिर में चल रही श्री रामकथा के सातवें दिन मंगलवार को कथाचार्य पंडित सुभाष शर्मा ने कही।उन्होंने आगे कहा की भक्ति मार्ग पर चलने के लिए सहज और सरल होना आवश्यक है। मनुष्य के स्वभाव और हृदय की सहजता ,सरलता पहली शर्त होती है उस परमात्मा से जुड़ने की और मनुष्य स्वभाव का सबसे कठिन कार्य है सहज और सरल होना।क्रोध मानव जीवन का सबसे बड़ा दुश्मन है

अगर आपने क्रोध किया तो आपकी सारी भक्ति व्यर्थ चली जायेगी। अत्यधिक क्रोध करने से मनुष्य की‌ आयु घटती है।उन्होंने भरत चरित्र प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए कहा कि रामायण त्याग की कथा है और इसके सभी पात्र त्याग के अनुठे उदाहरण है भरत चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि श्री राम चरित मानस में भगवान श्री राम के बाद यदि कोई स्मरणीय और अनुकरणीय चरित्र है तो वह है भरत का जिनकी प्रशंसा स्वयं भगवान राम करते हैं,उन्होंने रामचरित मानस को त्याग का ग्रन्थ बताते हुए कहा की कैकयी लोक कल्याण के लिए अपने मान, सम्मान,पुत्र प्रेम और यहां तक कि अपने सुहाग तक को भी खोने में नहीं हिचकती ,माता सीता महलों का सुख और लक्ष्मण 14 वर्षों की निद्रा का त्याग कर प्रभु संग वन को चले गए त्याग से परिपूर्ण श्री रामकथा में कल्याण की भावना से कोई मनोकामना लेकर बैठे तो वह पुरी होती है।कथा को भाव और प्रेम से सुनते हुए उनके पात्रों से जुड़े ।ईश्वर के सामने आपका आडंबर और चतुराई कुछ कार्य नहीं करेगा।कथा में बालाजी महिला मंडल के साथ बच्चे भी उत्साह के साथ जुटे हुए हैं जिनमें पार्थ अनिल ,आभास हेमंत ,नकुल अजय, कृष्णा विजय, अनुभव सोनी ,केशव सुनील ,आदर्श रवि ,तेजस जितेंद्र शाश्वत रवि, अंकित संतोष ,चाहत विरेन्द्र गुप्ता का सहयोग प्राप्त हो रहा है।

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