कुक्षी।विवाह सोलह संस्कारों में से एक संस्कार होता है विवाह नवयुगल के नवीन जीवन का प्रारंभ होता है।जिसे पारंपरिक और पवित्रता से पुर्ण करना चाहिए । यह उदगार नगर के इच्छापूर्ण हनुमानजी मंदिर में चल रही संगीतमयी श्रीरामकथा के पांचवे दिन सीताराम विवाह प्रसंग पर कथाचार्य पंडित सुभाष शर्मा ने कही।उन्होंने कहा कि विवाह संस्कार में देवी देवताओं और इष्टों का आव्हान किया जाकर खुद देवी और देवताओ के सान्निध्य और उनके आशीर्वाद से संपन्न किया जाता है परंतु वर्तमान समय में इसका स्वरूप दिखावे और आधुनिकता की होड़ के चलते इसका स्वरूप बिगड़ गया,इस संस्कार में विकारों का समावेश होकर प्री वेडिंग शुट, महिला संगीत के नाम पर गैरजरूरी खर्च किया जा रहा है ।
हल्दी और मेहंदी जैसी रस्में जो परिवार जनों के बीच विवाह के गीतों एवं मंगलकामना के लिए संपन्न होती थी उन्हें भी दिखावा बना कर रख दिया है । महंगे स्टेज , महंगे कपड़े , गैरजरूरी नृत्य निशा , फोटोशूट की कड़ी निन्दा करते हुए कहा संस्कार को व्यापार बनने से रोका जाना जरूरी है।अमीर वर्ग के द्वारा की जा रही बेवजह की रस्में मध्यम वर्ग के लिए जी का जंजाल बन जाती है और माता-पिता अपनी संतान की खुशी के लिए कर्ज लेकर लोगों को घी पिला रहे हैं। उन्होंने विवाह संस्कार दिन में ही संपन्न करवाने पर जोर दिया ताकि इस तरह के दिखावे पर रोकथाम लग सके।
राम और सीता का विवाह की आकर्षक प्रस्तुति की के साथ ही संगीतमयी भजन की दमदार प्रस्तुति हुई जिसे सुनकर श्रद्धालु झूमने से खुद को नहीं रोक सके।कथा के दौरान धार्मिक प्रश्नोत्तरी के विजेता रमु काका पाटीदार एवं श्रीमती प्रियंका रवि गुप्ता को तुलसी के पौधे उपहार स्वरूप भेंट किये गए।