पर्यटकों को आदिवासी संस्कृति की झलक दिखलाता है बादल भोई जनजातीय संग्रहालय

जल्द ही पर्यटकों के लिए सामने नए स्वरूप में आएगा म्यूजियम
अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस पर विशेष
छिंदवाड़ा। मध्य प्रदेश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा जनजातीय संग्रहालय छिंदवाड़ा में है जो आदिवासी संस्कृति की खूबसूरत झलक दिखलाता है। दूर-दराज से छिंदवाड़ा आने वाले लोग व पर्यटक यहां आकर गोंड, बैगा व अन्य जनजातियों के रहन-सहन को करीब से देख व समझ पाते हैं। जल्द ही यह संग्रहालय नए भवन में शिफ्ट होगा और पर्यटकों के लिए बेहद आकर्षक व रोचक तरीके से खोला जाएगा। खास यह होगा कि 19 आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उनकी 10 गाथाओं को चलचित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। म्यूजियम के नए भवन का काम काफी हद तक पूरा हो चुका है।
यह मध्य प्रदेश का सबसे पुराना और सबसे बड़ा आदिवासी संग्रहालय है। यह एक खजाना घर है, जिसमें जिले में रहने वाले आदिवासियों से संबंधित प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह है। पर्यटक यहां पर आदिवासियों के घर, कपड़े, आभूषण, हथियार, कृषि उपकरण, कला, संगीत, नृत्य, उत्सव, उनके द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं, धार्मिक गतिविधियों, जड़ी-बूटियों के संग्रह आदि से संबंधित वस्तुएं देख सकते हैं। यह संग्रहालय आदिवासी समुदायों की समृद्ध परंपराओं और प्राचीन संस्कृतियों पर प्रकाश डालता है।
भारत सरकार के जनजातिय मंत्रालय के माध्यम से संग्रहालय के लिए नया भवन तैयार किया गया है। बादल भोई आदिवासी संग्रहालय में पूरा इंटीरियर डिजाइनिंग वन्या करेगी। नए भवन में शिफ्ट होने के बाद यहां पर 19 आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व उनकी 10 गाथाओं को चलचित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा। जिलेवासी उनके संघर्ष सेे परिचित हो सकेंगे। संग्रहालय में अत्याधुनिक तकनीक से इन कहानियों को दिखाया जाएगा। संग्रहालय में तीन गैलरियां होगी, जिनमें किले, स्टेच्यू, मॉडलिंग और रेखाचित्र के माध्यम से जनजातीय संग्रहालय को प्रदर्शित करने की कार्ययोजना बनाई गई है। एक ओपन आडिटोरियम रहेगा। संग्रहालय में मीटिंग और सेमीनार हाल होगा। फूड कैफेटोरियम भी होगा। जिसमें पर्यटक प्रदेश की विभिन्न जनजातियों के पारम्परिक व्यंजन के साथ ही जिले के कोदो कुटकी व मक्के की रोटी, महुआ के व्यजंन का आनंद लेंगे।
कब बना संग्रहालय 000000000000000000000000
यह संग्रहालय 20 अप्रैल 1954 में बना था। साल 1975 में इसे राज्य स्तरीय संग्रहालय का दजऱ्ा दिया गया। जिसके बाद 8 सितंबर 1997 को इसका नाम बदल कर बादल भोई जनजातीय संग्रहालय किया गया। ऐसा स्वतंत्रता सेनानी श्री बादल भोई के सम्मान में हुआ। उनके नेतृत्व में हज़ारों आदिवासियों ने सन् 1923 में कलेक्टर बंगले पर एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन में उन पर लाठियां बरसाई गईं और बादल भोई को गिरफ्तार किया गया था। जेल में ही ज़हर देकर उनकी हत्या कर दी गई थी।
सोमवार को बंद, पांच रूपए टिकट 00000000000000000000
बादल भोई जनजातीय संग्रहालय में प्रवेश के लिए पर्यटकों को पांच रूपए का टिकट लेना होता है। शासकीय अवकाश के दिनों और सोमवार को म्यूजियम बंद रहता है लेकिन शनिवार व रविवार को इसे खुला रखा जाता है।
हर दिन आते हैं करीब सौ-सवा सौ लोग 00000000000
छिंदवाड़ा में आदिवासी म्यूजियम घूमने आने वाली की संख्या बहुत है। लोग अपने घरों में आने वाले मेहमानों को भी म्यूजियम घूमाने ले जाते हैं। प्रभारी अधिकारी लालजी मीणा के अनुसार, करीब सौ से सवा लोग रोज ही आदिवासी म्यूजियम घूमने आते हैं और जिले भर के स्कूलों के विद्यार्थियों को शोध व खोज यात्रा के तहत आदिवासी म्यूजियम घूमाया जाता है।
पर्यटन को बढ़ावा देने बन रही योजना 00000000000000
एक तरह जहाँ जनजातीय विभाग म्यूजियम को नया स्वरूप देने में लगा है वहीं मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड द्वारा भी छिंदवाड़ा में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। जिले में बड़ी संख्या में होम स्टे बनाए जा रहे हैं और पर्यटन ग्रामों में महिलाओं के सुरक्षित पर्यटन परियोजना के तहत हस्तशिल्प से जुड़े प्रशिक्षण करवाए जा रहें हैं। ताकि ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध हो सके। पर्यटन विभाग देवगढ़ आने वाले पर्यटकों को आदिवासी संस्कृति से जोडऩे के लिए सांस्कृतिक भवन का निर्माण भी करने जा रहा है। मध्य प्रदेश टूरिज्म बोर्ड द्वारा माचागोरा डेम में वॉटर स्पोर्टस की एक्टीविटी भी प्रस्तावित है।

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