मालवा – निमाड़ : अधिकांश में भाजपा मजबूत , कहीं बेहतर तो कहीं चुनौती

मिलिंद मुजुमदार
इंदौर:मालवा और निमाड़ की 8 सीटों के लिए चुनावी प्रचार शनिवार को शाम को समाप्त हो गया। सोमवार को इन सभी सीटों पर मतदान होगा। इस अंचल में पांच सीटें सुरक्षित श्रेणी में आती हैं। इनमें तीन आदिवासियों के लिए और दो दलितों के लिए सुरक्षित हैं। आदिवासी सीटों में से खरगोन और धार में भाजपा को मामूली बढ़त है। जबकि रतलाम – झाबुआ में कांग्रेस आगे दिख रही है। अन्य तीन सामान्य सीटों में से किसी में भी भाजपा को दिक्कत नहीं है। खंडवा और मंदसौर में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है लेकिन इन दोनों ही सीटों पर भाजपा मजबूत है, जबकि इंदौर में कांग्रेस का प्रत्याशी ही नहीं है इसलिए यहां भाजपा की जीत में किसी को भी शंका नहीं है। सनद रहे 2014 और 2019 के दो चुनाव में भाजपा लगातार सभी आठों लोकसभा क्षेत्र जीत रही है।

रतलाम – झाबुआ संसदीय क्षेत्र

आदिवासियों के लिए सुरक्षित इस सीट पर कांतिलाल भूरिया और अनीता चौहान के बीच टक्कर है। अनीता चौहान प्रदेश के कैबिनेट मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी है। वो भाजपा की सबसे अधिक शिक्षित आदिवासी प्रत्याशी हैं। यहां 65 फ़ीसदी आदिवासी मतदाता हैं। इनमें 75 फ़ीसदी भील और शेष भिलाला तथा कोरकू आदिवासी समुदाय है। भील बनाम भिलाला की लड़ाई में भील समुदाय से होने के कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया ठीक स्थिति में है। यदि यहां मोदी लहर का असर नहीं हुआ तो इस बार कांग्रेस यहां बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। कांतिलाल भूरिया पांच बार सांसद और चार बार विधायक रह चुके हैं। उन्होंने केंद्रीय और प्रदेश मंत्रिमंडल में लंबे समय तक काम किया है। झाबुआ की सीट पर तीन अपवाद छोड़ दिए जाएं तो आजादी के बाद से अभी तक हमेशा कांग्रेस का कब्जा रहा है। 2014 में भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने और 2019 में भाजपा के गुमान सिंह डामोर ने जीत दर्ज की थी। भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद का टिकट काटकर अनीता चौहान को उतारा है।

धार सांसदीय क्षेत्र

आदिवासियों के लिए सुरक्षित धार संसदीय क्षेत्र इन दिनों भोजशाला सर्वेक्षण और विवाद के कारण राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है।धार में कांग्रेस के राधेश्याम मुवेल का मुकाबला भाजपा की सावित्री ठाकुर से है। विधानसभा चुनाव के हिसाब से कांग्रेस अच्छी स्थिति में है लेकिन धार लोकसभा सीट की यह विशेषता है कि लोकसभा चुनाव में यहां मतदाता का पैटर्न बदल जाता है। यही वजह है कि भाजपा फिलहाल यहां बढ़त में दिख रही है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा गड्ढा महू, धार और बदनावर की विधानसभा सीटें हैं। यह सीट 1962 में अस्तित्व में आई थी। तभी से यहां भारतीय जन संघ और भाजपा का प्रभाव रहा है। भारतीय जन संघ के भारत सिंह चौहान ने 1962, 67 , 71 और 77 में लगातार चार बार चुनाव जीता। 1980 , 84 और 89, 91 में कांग्रेस जीती। इसके बाद कांग्रेस ने 2008 में भी जीत दर्ज की, लेकिन 1996, 98, 2004, 2014 और 2019 में भाजपा जीतती रही।

खरगोन संसदीय क्षेत्र

पश्चिम निमाड़ का खरगोन संसदीय क्षेत्र भी आदिवासियों के लिए सुरक्षित है। इस लोकसभा सीट पर भी परंपरागत रूप से संघ परिवार का प्रभाव है। यहां कांग्रेस के पोर लाल खर्ते का मुकाबला भाजपा के गजेंद्र सिंह पटेल से है। यहां भी भाजपा को बढ़त हासिल है। यहां बारेला आदिवासी निर्णायक रहते हैं। भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी इसी समाज से आते हैं। इस सीट का गठन 1962 में हुआ था। यदि 1967, 80,84, 99 और 2007 का चुनाव छोड़ दिया जाए तो भाजपा और जनसंघ यहां से लगातार जीत रहे हैं।

देवास शाजापुर

देवास शाजापुर लोकसभा क्षेत्र दलितों के लिए सुरक्षित हैं। इस सीट पर भाजपा को कोई दिक्कत नहीं है। देवास – शाजापुर सीट पर कांग्रेस के राजेंद्र मालवीय का मुकाबला भाजपा के महेंद्र सोलंकी से हो रहा है। इस सीट पर 1980 , 84 और 2009 को छोडक़र लगातार भारतीय जन संघ और भाजपा काबिज है। स्वर्गीय फूलचंद वर्मा चार बार और कर्नाटक के मौजूदा राज्यपाल थावरचंद गहलोत यहां से चार बार सांसद रह चुके हैं। 2019 में यहां से महेंद्र सोलंकी ने जीत दर्ज की थी इस बार भी पार्टी ने उन्हें टिकट किया है।

उज्जैन

मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का गृह क्षेत्र उज्जैन भी दलितों के लिए आरक्षित है।उज्जैन में विधायक और कांग्रेस प्रत्याशी महेश परमार की टक्कर भाजपा के अनिल फिरोजिया से है। यहां भाजपा की जीत का 60 के दशक से इतिहास है। संघ परिवार के मजबूत गढ़ों में शामिल उज्जैन में सात बार सत्यनारायण जटिया विजयी रह चुके हैं। उनके अलावा हुकुमचंद कछवाहा ने भारतीय जनसंघ के टिकट पर दो बार जीत दर्ज की। मौजूदा सांसद अनिल फिरोजिया 2019 में भी विजयी हुए थे। 2014 में यहां से भाजपा के चिंतामणि मालवीय ने जीत दर्ज की।

इंदौर लोकसभा क्षेत्र

इंदौर लोकसभा क्षेत्र का चुनाव इन दोनों देशभर में चर्चित है।इंदौर में 29 अप्रैल को कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम अपना नामांकन वापस लेकर भाजपा में शामिल हो गए इसलिए यहां लड़ाई बची नहीं है। कांग्रेस ने यहां नोटा का अभियान छेड़ दिया है, लेकिन कांग्रेस का विरोध प्रतीकात्मक है। क्योंकि यदि नोटा को भाजपा प्रत्याशी से अधिक मत भी मिलते हैं तो भी उसे नियम के अनुसार जीत नहीं मिल सकती। ऐसी स्थिति में नोटा के बाद दूसरे स्थान पर रहने वाले प्रत्याशी को विजयी माना जाता है। इस हिसाब से शंकर लालवानी का लगातार दूसरी बार निर्वाचित होना निश्चित है। उत्सुकता इतनी है कि उनमें और नोटा में कितना अंतर रहता है। सुमित्रा ताई यहां से रिकॉर्ड 8 बार चुनाव जीत चुकी हैं। सांसद शंकर लालवानी ने 2019 में कांग्रेस को यहां लगभग साढ़े पांच लाख मतों से हराया था।

खंडवा संसदीय क्षेत्र

पूर्वी निमाड़ के अंतर्गत आने वाला खंडवा संसदीय क्षेत्र भी भाजपा का मजबूत गढ़ है। यहां स्वर्गीय नंद कुमार सिंह चौहान ने भाजपा के टिकट पर पांच बार जीत दर्ज की थी। 2014 और 2019 में यहां से कांग्रेस के अरुण यादव हारे थे। इस बार कांग्रेस के नरेश पटेल का मुकाबला भाजपा के मौजूदा सांसद ज्ञानेश्वर पाटिल से है। खंडवा में भाजपा को बढ़त हासिल है। यहां के दोनों उम्मीदवार ओबीसी हैं। खंडवा में ओबीसी आदिवासी और मुस्लिम मतदाता बहुतायत में रहते हैं।

मंदसौर संसदीय क्षेत्र

राजस्थान की सीमा से लगा मंदसौर संसदीय क्षेत्र भी संघ परिवार का पुराना मैदान माना जाता है। स्वर्गीय वीरेंद्र कुमार सकलेचा , स्वर्गीय सुंदरलाल पटवा जैसे राज्य के मुख्यमंत्री इसी संसदीय क्षेत्र की नीमच, मनासा और जावद विधानसभा सीट से विधायक रहे हैं। यहां से स्वर्गीय डॉक्टर लक्ष्मी नारायण पांडे भाजपा की ओर से लगातार 11 बार चुनाव लड़े और नौ बार जीते। यहां कांग्रेस के दिलीप सिंह गुर्जर का मुकाबला भाजपा के सुधीर गुप्ता से है। सुधीर गुप्ता तीसरी बार सांसद बनने के लिए मैदान में है। 2014 और 2019 में उन्होंने जीत दर्ज की थी।

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