नवभारत न्यूज
खंडवा। लोकसभा चुनाव में मतदान को दो दिन नहीं बचे,लेकिन प्रचार और भगदड़ से मतदाता भ्रमित दिख रहे हैं। कांग्रेस से शहर की पहली महापौर अणिमा उबेजा और उनके उद्योगपति पति गुरमीतसिंग उबेजा भी शिवराज के मंच पर भाजपा में आ गए। चेंबर आफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष राजू चांदमल जैन भी कमल के फूल के हो गए।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष इंदलसिंह पंवार पहले ही भाजपाई हो चुके हैं। एक युवा कांग्रेसी गुरप्रीतसिंह होरा भी भाजपा में चले गए थे। चौबीस घंटे में ही उन्हें घर की याद आई और अरूण यादव की समझाइश पर वापस कांग्रेस में आ गए। कई और कांग्रेसी भी भाजपाई हो गए हैं।
बिजनेस बढ़ाने की ज्वाइनिंग
जिस वक्त अपने दल का प्रचार करना चाहिए। उस समय में भगदड़ से कांग्रेस को नुकसान है। हालांकि यह साबित हो चुका है कि दल-बदल वाले ये नेता निष्ठावान खुद के कैरियर के लिए ज्यादा हैं। कांग्रेस ने इन्हें वह सब कुछ दिया,जिसके लिए पार्टी में थे। सभी मूल रूप से व्यवसायी हैं। इनके बिजनेस भले अलग-अलग हों, लेकिन इसे आगे बढ़ाने के लिए सत्तारूढ़ होने की जरूरत है। यही वजह है कि धंधा आगे बढ़ाने के लिए ये भाजपा में आए हैं। इन्हें लगता है कि कांग्रेस अगले पंद्रह साल प्रदेश और देश में वापसी नहीं कर सकती। इतनी तपस्या असहनीय होगी। वे बिजनेस के हिसाब से ज्यादातर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आए हैं।
ताकत दिखाने का प्रयास
इसी डेेमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस की बची-खुची ताकत मतदान की 13 मई के पहले शुक्रवार को सडक़ों पर दिखी। खंडवा में प्रत्याशी नरेंद्र पटेल और कांग्रेसियों ने दोपहर की तपन कम होने के बाद शाम पांच बजे मुख्य मार्गों पर वजूद दिखाया। कांग्रेस कार्यालय गांधीभवन से रैली के रूप में जनसंपर्क किया। इसमें महिला एवं पुरूष दोनों तरह के नेता थे। झंडे-बैनर तो कम थे, लेकिन इनमें उत्साह काफी अधिक था।
यहां पहुंचे कांग्रेसी
रैली, गांधी भवन बांबे बाजार, घंटाघर, नगर निगम होते हुए जलेबी चौक, बजरंग चौक से कहारवाड़ी फिर टपाल चाल, अग्रसेन चौराहा, बस व रेलवे स्टेशन होते हुए वापस गांधीभवन पहुंची। कांग्रेसियों ने इसे प्रभावी बताया।
हालांकि इनके चेहरों पर वह नूर नहीं दिखा, जो पहले सत्तारूढ़ होने के समय दिखता था। इसमें नरेंद्र पटेल दुकानदारों के हाथ जोड़ते दिखे।
कांग्रेसियों का गेम-प्लान
एक और गणित यह भी है कि 2028 में फिर से परिसीमन होगा। खंडवा विधानसभा क्षेत्र का दायरा बढ़ेगा। खंडवा शहर और कुछ अन्य गांव मिलाकर खंडवा ग्रामीण विधानसभा सीटें होंगी। जिले में उस वक्त पांच विधानसभा सीटें हो जाएंगी। खंडवा शहर को सामान्य सीट के लिए सत्तारू ढ़ भाजपा तिकड़म से इसे बचा लिया जाएगा। इसीलिए भी कांग्रेस के करीब दर्जनभर बड़े नेता भाजपा से टिकिट चाह रहे हैं। जिसे टिकिट मिला,उसकी जीत तय है ही। हालांकि बीजेपी के दावेदार ऐसा नहीं होने देंगे।