कहीं कांटे का मुकाबला तो कहीं एकतरफा स्थिति

चंबल में चुनावी ऊंट बार बार बदल रहा करवट

ग्वालियर: अब जब ग्वालियर चंबल की चारों लोकसभा सीटों पर चुनाव प्रचार थम चुका है, राजनीतिक विश्लेषक अभी भी इस अंचल में चुनावी ऊंट की करवट का अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं। चंबल की भिंड और मुरैना सीटों पर विगत तीन दशकों से भी ज्यादा समय से भाजपा का एकछत्र कब्जा है जबकि ग्वालियर सीट करीब सत्रह साल पहले उपचुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से छीनी थी। इसी तरह गुना शिवपुरी सीट भी विगत आमचुनाव में कांग्रेस के हाथों से फिसल गई थी। अपने तमाम दिग्गज राजनेताओं की नुमाइंदगी और लगातार जीत के सिलसिले के चलते अभेद्य गढ़ बन चुके इस अंचल पर अपना कब्जा बरकरार रखने के लिए भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है, वहीं कांग्रेस ने अंचल की चार में से कम से कम दो सीटें हासिल होने की उम्मीद लगा रखी है। भाजपा की ओर से जहां खुद नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने अंचल में सभाएं लीं वहीं कांग्रेस की तरफ से राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भिंड और मुरैना में सभाएं लेकर अपनी पार्टी की फिजां बनाने की कोशिश की है।

ग्वालियर, भिंड और गुना तीनों ही सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला हो रहा है जबकि मुरैना सीट पर बसपा की भी सशक्त मौजूदगी के चलते यह सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है। हालांकि ग्वालियर, भिंड और गुना शिवपुरी में भी बसपा के उम्मीदवार मैदान में हैं और चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। प्रदेश की राजनीति में भाजपा के नीति निर्धारक माने जाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर, सिंधिया और वीडी शर्मा से लेकर डॉ. नरोत्तम मिश्रा, प्रभात झा और जयभान सिंह पवैया जैसे बड़े नेता इसी क्षेत्र के हैं, इस कारण ग्वालियर चंबल का भाजपा के लिए खास महत्व है। ठीक यही स्थिति कांग्रेस के साथ है। दिग्विजय सिंह गुना क्षेत्र के राधौगढ़ के ही मूल निवासी हैं। उनके मुख्यमंत्रित्व काल से लेकर स्व. माधवराव सिंधिया के दौर तक ग्वालियर चंबल प्रदेश की राजनीति का महत्वपूर्ण केंद्रबिंदु बना रहा, ठीक उसी तरह जो वजनदार स्थिति मौजूदा सीएम मोहन यादव के वक्त में उज्जैन इंदौर की है। दोनों प्रमुख दलों को इस चुनाव में चंबल से आने वाले जनादेश का इंतजार है।

स्थानीय और बाहरी के मुद्दे पर केंद्रित हुआ भिंड में चुनाव

भिंड दतिया संसदीय क्षेत्र को भिंड जिले की पांच विधानसभा सीटों भिंड, लहार, अटेर, मेहगांव, गोहद और दतिया जिले की दतिया, भांडेर और सेंवढ़ा सीटों को मिलाकर बनाया गया है। यह सीट विगत साढ़े तीन दशक से भाजपा के कब्जे में है। कांग्रेस के लिए टेढ़ी खीर रही इस सीट पर 2024 में भाजपा की मौजूदा सांसद संध्या राय और कांग्रेस के विधायक फूलसिंह बरैया के बीच मुकाबला है, हालांकि टिकट न मिलने पर कांग्रेस छोडक़र बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे देवाशीष जरारिया ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने इस सीट पर स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा उछाला है। बरैया जहां मेहगांव के ही मूल निवासी हैं और इसी संसदीय क्षेत्र की भांडेर विधानसभा सीट से छह महीने पहले दूसरी बार विधायक चुने गए हैं वहीं भाजपा की संध्या राय पड़ोसी मुरैना जिले की दिमनी की निवासी हैं और वहां से विधायक भी रह चुकी हैं।

यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि इस बार यहां दोनों दलों के दरम्यान कांटे का मुकाबला हो रहा है लेकिन कांग्रेस के बागी उम्मीदवार द्वारा बसपा के टिकट पर चुनाव लडऩे से कांग्रेस के पारंपरिक वोटबैंक में कुछ सेंध लगती दिख रही है और इसका कुछ नुकसान बरैया को उठाना पड़ सकता है लेकिन खुद बरैया एक दौर में न सिर्फ बसपा के प्रदेश अध्यक्ष बल्कि प्रदेश में बसपा की नींव डालने वाले नेताओं में रहे हैं, लिहाजा उन्होंने काफी हद तक डैमेज कंट्रोल किया है। राहुल गांधी ने उनके समर्थन में सभा लेकर फिजां बनाने की कोशिश भी की है। वहीं भाजपा की संध्या राय को चुनाव प्रचार की शुरुआत में एंटी इनकमबेंसी का सामना करना पड़ा लेकिन सघन जनसंपर्क और पार्टी के व्यवस्थित चुनाव प्रबंधन के चलते उन्होंने अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश की है। वे यह चुनाव नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने और मोदी सरकार की दस बरस की उपलब्धियों के नाम पर लड़ रहीं हैं।

प्रत्याशियों की जातिगत गोलबंदी में सिमटी ग्वालियर की चुनावी फिजां

ग्वालियर सीट को प्रदेश की हाईप्रोफाइल सीट में शुमार किया जाता रहा है। यहां से पूर्व प्रधानमन्त्री अटलबिहारी वाजपेई, राजमाता सिंधिया, माधवराव सिंधिया, यशोधरा राजे, जयभानसिन्ह पवैया और शेजवलकर जैसे बड़े नेता सांसद चुने जा चुके हैं। इस दफा दोनों मुख्य दलों ने हालिया विधानसभा चुनाव हारे अपने दो युवा नेताओं भारतसिंह कुशवाह और प्रवीण पाठक पर दांव आजमाया है। इस बात में अतिरंजना नहीं है कि ग्वालियर सीट पर इस बार चुनाव देश दुनिया के ज्वलंत मुद्दों के बजाए जातिगत समीकरण पर केंद्रित हो गया है। चूंकि भारतसिंह विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के नजदीकी माने जाते हैं, लिहाजा नरेंद्र सिंह ने उन्हें चुनाव जिताने के लिए अपनी टीम के साथ पूरी ताकत झोंक दी है।

सीएम मोहन यादव ने भारत सिंह के लिए भीड़भरा रोडशो करने के साथ धुंआधार सभाएं लेकर यहां भाजपा के लिए माहौल बनाने की पूरी कोशिश की है। नरेंद्र सिंह और पवैया के भी रोड शो हुए, वहीं कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक ने नामांकन भरने से लेकर अब तक पूरा चुनाव अभियान खुद की दम पर ही लड़ा है, ऐसा पहली मर्तबा हुआ जब ग्वालियर में आमचुनाव के दौरान कांग्रेस के लिए किसी राष्ट्रीय नेता ने सभा नहीं ली लेकिन इससे प्रवीण पाठक के उत्साह पर कोई फर्क नहीं पड़ा। शुरुआत में काफी पिछड़ती दिख रही कांग्रेस ने बाद के प्रचार चरण में अपनी स्थिति को बेहतर बनाने की कोशिश की है। दोनों ही प्रत्याशी विकास, सदभाव, चारसौ पार, महंगाई, बेरोजगारी और ग्वालियर की तरक्की के रोडमैप जैसे सामयिक मुद्दों पर तो चुनाव लड़ ही रहे हैं। इसके अलावा भाजपा के भारतसिंह और कांग्रेस के प्रवीण पाठक, दोनों की ही नजर अपनी कमयूनिटी के वोटबैंक पर भी हैं। यही वजह है कि राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों से परे जाकर इस चुनाव को जातिगत रंग देने की कोशिश की गई।चुनाव में ताल ठोक रहे बसपा के कल्याण सिंह कंसाना को अपनी पार्टी के पारंपरिक वोटबैंक और अपने समाज की हमदर्दी का भरोसा है।

मुरैना में त्रिकोणीय मुकाबला, नरेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर

मुरैना चंबल क्षेत्र की ऐसी इकलौती संसदीय सीट है जहां बसपा के मजबूती से मैदान में होने के कारण इस बार त्रिकोणीय मुकाबला हो रहा है। यहां भाजपा ने नरेंद्र सिंह तोमर के खेमे से जुड़े शिवमंगल सिंह तोमर को टिकट दिया है तो पिछले तीन दशक से लगातार हारती आ रही इस सीट पर कांग्रेस ने युवा नेता सत्यपाल सिंह सिकरवार नीटू पर भरोसा जताते हुए उन्हें इस सीट पर पार्टी का परचम फहराने की जिम्मेदारी दी है। वहीं बसपा से चुनाव लड़ रहे जाने माने उद्योगपति रमेशचंद्र गर्ग ने जोरदार ढंग से चुनाव प्रचार अभियान चलाकर भाजपा और कांग्रेस, दोनों के ही समक्ष मुश्किल खड़ी करने की कोशिश है। गर्ग कांग्रेस में ही थे, कहते हैं कि कांग्रेस के बड़े नेताओं ने उन्हें टिकट का भरोसा दिया था लेकिन टिकट न मिलने पर बसपा ने उनके बागी तेवरों व उनके जनाधार का फायदा लेने उन्हें अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया।

खास बात यह कि भाजपा के शिवमंगल सिंह और कांग्रेस के नीटू सिकरवार मुरैना जिले की दिमनी और सुमावली सीटों से विधायक रह चुके हैं। नीटू को जहां मुरैना की सियासत में कद्दावर छवि रखने वाले व कई बार विधायक रह चुके अपने पिता गजराज सिंह सिकरवार से राजनीति विरासत में मिली है वहीं भाजपा के शिवमंगल सिंह शुरु से ही यहां के निवर्तमान सांसद नरेंद्र सिंह के साथ जुडक़र राजनीति करते रहे हैं। तीनों ही प्रमुख दलों ने इस चुनाव में मुरैना सीट पर अपने प्रचार अभियान को किस कदर गंभीरता से लिया, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां नरेंद्र मोदी, प्रियंका गांधी और मायावती ने अपने अपने प्रत्याशियों के समर्थन में सभाएं लेकर उनकी जीत सुनिश्चित करने की कोशिश की। भाजपा जहां मोदी सरकार की उपलब्धियों, विकास, अटल एक्सप्रेस-वे जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है तो कांग्रेस ने भाजपा राज में चंबल की उपेक्षा, युवाओं के असंतोष, महंगाई, अग्निवीर जैसे मसलों को मुद्दा बनाया है वहीं बसपा ने भाजपा और कांग्रेस से निराश लोगों को सशक्त तीसरा विकल्प देने की बात कही है।

पिछली हारी बाजी को जीत मैं बदलने सिंधिया ने ताक़त झोंकी

यह सच है कि शिवपुरी गुना सीट पर देश भर की निगाहें लगी हैं, वजह यह कि इस सीट से ज्योतिरादित्य सिंधिया चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्होंने कमलनाथ सरकार के पतन और 2018 में प्रदेश की सत्ता से बाहर हो चुकी भाजपा की फिर से सरकार बनवाने में ऑपरेशन लोटस के जरिए केंद्रीय भूमिका निभाई थी। कांग्रेस ने यहां से अशोकनगर के राव यादवेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है। यादवेंद्र भाजपा से कांग्रेस में आए हैं और उनके पिता राव देशराज सिंह भाजपा प्रत्याशी के रूप में उस वक्त सिंधिया के खिलाफ़ चुनावी ताल ठोक चुके हैं जब सिंधिया कांग्रेस में होते थे। इस चुनाव में खास बात यह है कि विगत दो दशकों के दरम्यान यहां सिंधिया के खिलाफ भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके डॉ. नरोत्तम मिश्रा, हरिवल्लभ शुक्ला से लेकर केपी यादव तक इस बार सिंधिया के लिए वोट मांग रहे हैं।

पिछली बार चुनाव में केपी यादव ने सिंधिया को एक लाख से ज्यादा वोट के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी। इस बार भाजपा ने केपी का टिकट काटकर सिंधिया को दिया है। शुरू में केपी की कथित नाराजगी के चलते भाजपा को यहां भीतरघात का खतरा सता रहा था लेकिन पार्टी ने उन्हें सम्मानजनक राजनीतिक पुनर्वास का भरोसा देकर मना लिया है। सिंधिया यह चुनाव अपने परिवार से क्षेत्रवासियों के कई पीढिय़ों के पुराने रिश्तों, मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने, अपने द्वारा विगत दो दशकों में गुना शिवपुरी में किए गए विकास कार्यों जैसे एजेंडे पर लड़ रहे हैं तो कांग्रेस ने एक बार फिर सिंधिया के कथित राजनीतिक विश्वासघात, क्षेत्र की उपेक्षा और भाजपा की नाकामियों को मुद्दा बनाया है। बसपा भी मैदान में है।

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