कब बदलेगा ऐतिहासिक धरोहरों का समय

नहीं घूमती अब कमानिया गेट और घंटाघर में लगी घडिय़ों की सुई

जबलपुर: संस्कारधानी जबलपुर अपने ऐतिहासिक धरोहरों के नाम से भी जाना जाता है। जिसमें पूरे शहर में इतिहास से जुड़ी कई स्मारकें आज भी मौजूद हैं। यहां तक कि जिस क्षेत्र में यह स्मारक मौजूद हैं, उस जगह का नाम इन्हीं स्मारकों के नाम पर ही जाना जाता है, परंतु इस ऐतिहासिक धरोहरों को संवारने में जनप्रतिनिधि और प्रशासन कहीं ना कहीं चूंक रहे हैं। उसी क्रम में त्रिपुरी कांग्रेस की ऐतिहासिक स्मारक जिसे कमानिया गेट के नाम से जानते हैं, यहां पर भी प्रशासन की नजर नहीं पड़ रही है। कमनिया गेट में लगी वर्षों पुरानी घड़ी महीनों से बंद पड़ी हुई है। जिस पर जिम्मेदार प्रशासन का ध्यान नहीं जा रहा है। इसके अलावा घंटाघर स्मारक पर लगी घड़ी भी बंद पड़ी हुई है। अब पता नहीं इन ऐतिहासिक स्मारकों का समय कब बदलेगा और कब इन पर नई घड़ी लगाई जाएगी।
दिल्ली की हेरीटेज कन्सलटेंट कंपनी से कराया था जीर्णोधार
वर्ष 2019 में स्मार्ट सिटी ने शहर की ऐतिहासिक धरोहरों का जीर्णाद्घार कराकर संवारने के लिए दिल्ली की हेरीटेज कन्सलटेंट कंपनी को बुलाया था। कंपनी द्वारा घंटाघर, कमानिया गेट, राजा गोकुलदास धर्मशाला सहित गांधी लाइब्रेरी आदि ऐतिहासिक स्मारकों का जीर्णाद्घार किया था। कंपनी ने ही ओडिशा से कारीगर बुलवा कर ऐतिहासिक धरोहरों में टंगी घडिय़ों में सुधार कराया था। लेकिन तीन महीने बाद ही इन घडिय़ों ने सही समय बताना बंद कर दिया था, इसके बाद से इन धरोहरों में टंगी घडिय़ों की सुई बंद पड़ी हुई है।
कांग्रेस का है पुराना नाता  
स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के दौरान जबलपुर शहर ने एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस के आयोजन में हुई थी। नेताजी सुभाष चंद्रबोस ने 1939 में त्रिपुरी कांग्रेस अधिवेशन के दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के लिए चुनाव जीता था। जबलपुर में उसकी याद में कमानिया गेट बनाया गया था। कमानिया गेट बाजार उस समय शहर की जीवन रेखा थी। आज एक विशाल आभूषण बाजार कमानिया गेट के पास स्थित है। कमानिया गेट सिर्फ एक गेट नहीं है। यह जबलपुर शहर की ऐतिहासिक धरोहर भी है। इसकी नींव में तमाम बातें जड़ी और जुड़ी हैं। इसकी भव्य बनावट गर्व का अहसास कराती है।

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