मौजूदा लोकसभा चुनाव के दो चरणों के मतदान से जाहिर है कि आम मतदाता पूरी तरह से उत्साहहीन है. 2019 की तुलना में लगभग 8 फ़ीसदी मत कम पड़े हैं. अनुमान है कि अन्य चरणों में भी यही स्थिति रहेगी. जाहिर है कि मतदाताओं की मतदान के प्रति अरुचि लोकतंत्र और देश के हित में नहीं है. इस संबंध में सभी राजनीतिक दलों को विचार करना चाहिए.दरअसल, हर आम चुनाव के साथ अपील की जाती है लोकतंत्र को जिंदा रखना है, तो भरपूर मतदान कीजिए.चुनाव लोकतंत्र की जीवन-रेखा हैं आदि आदि. वास्तव में मताधिकार हमारा संवैधानिक, मौलिक अधिकार है, क्योंकि हम एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र हैं.सब जानते हैं मतदान छुट्टी या सैर-सपाटे का दिन नहीं है, क्योंकि हम पर देश की संसद और सरकार चुनने का गुरुत्तर दायित्व है.अब इस दायित्व की लगातार अनदेखी हो रही है. आम चुनाव, 2024 के दूसरे चरण में भी मतदान अपेक्षाकृत घटा है. अर्थात नागरिक चुनाव के प्रति उदासीन या लापरवाह दिखाई दे रहे हैं.पहले दोनों चरणों में 190 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है. करीब 35 प्रतिशत चुनाव सम्पन्न हो चुका है, लेकिन दूसरे चरण की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 16 करोड़ पात्र मतदाता थे। उनमें से करीब 4.5 करोड़ मतदाताओं ने वोट नहीं डाले. आखिर क्यों? आखिर हमें समझना पड़ेगा कि आखिर मतदाता मतदान के प्रति अरुचि क्यों व्यक्त कर रहा है. बहरहाल,आम चुनाव 2019 के दूसरे चरण में जिन सीटों पर भाजपा जीती थी, उन पर 3 प्रतिशत तक मतदान कम हुआ है. जो सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, उन पर 5-10 प्रतिशत मतदान घटा है.हिंदी पट्टी के प्रमुख राज्यों में मतदान औसतन 7 प्रतिशत तक घटा है. ये राज्य ही भाजपा के दुर्ग नुमा चुनावी गढ़ हैं.क्या यह घटा हुआ मतदान भाजपा के खिलाफ एक ‘खामोश चुनावी लहर’ है? इससे जुड़ा अगला सवाल यह भी है कि फिर यह लहर किस राजनीतिक दल के पक्ष में है? कांग्रेस ने तो 300 सीटों पर भी उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.जबकि सूरत और इंदौर में उसके उम्मीदवार ही मैदान छोड़ पाला बदल लिए हैं.‘इंडिया’ गठबंधन छिन्न-भिन्न स्थिति में है. तो फिर जनादेश कैसा होगा और केंद्र सरकार का स्वरूप भी कैसा होगा? चुनाव का जो रुझान दिखाई दे रहा है, उसमें प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति गंभीर नाराजगी का भाव महसूस नहीं होता. यदि सरकार बदलने के लिए मतदान होना था, तो लबालब भीड़ पोलिंग स्टेशनों के अंदर-बाहर दिखाई देती और मतदान भी70 प्रतिशत से ज्यादा होता. कांग्रेस के पास कैडर, बूथ कार्यकर्ता और मतदाता को पोलिंग स्टेशन तक पहुंचाने वाले संगठन की कमी देखी गई है, लेकिन मतदाताओं का ऐसा सैलाब भी गायब दिखा, जो 400 पार के जनादेश को सुनिश्चित कर दे. हालांकि प्रधानमंत्री के मंगलसूत्र और मुसलमान वाले अभियान के बाद ध्रुवीकरण महसूस किया गया है.जुमे की नमाज के बाद मुसलमान भी पोलिंग स्टेशनों की ओर गए हैं. क्या वह सारा मतदान भाजपा-विरोधी हुआ है?
गंभीर सवाल यह है कि मतदान एक स्तर के बाद उठ क्यों नहीं रहा है? क्या युवाओं और नए मतदाताओं ने मतदान कम किया? उनकी दिलचस्पी कम दिखाई दी है. ऐसे कई लाख मतदाताओं ने वोट नहीं दिए. सवाल यह भी है कि किस राजनीतिक पक्ष के मतदाता अपने घरों से बाहर नहीं निकले? चूंकि मतदान शुक्रवार को हुए हैं, लिहाजा यह भी एक कारण हो सकता है कि लंबे सप्ताहांत के मद्देनजर लोग छुट्टी पर निकल गए हों ! तीसरे चरण के मतदान के मद्देनजर दलों ने अपनी रणनीति बदलने का फैसला लिया है. कुल मिलाकर सवाल कई हैं, लेकिन उत्तर एक ही है कि मतदाताओं में मतदान के प्रति दिलचस्पी का अभाव है. क्या इसका अर्थ यह लगाया जाए कि युवाओं का राजनेताओं के प्रति मोहभंग हो रहा है ! या फिर किसी मुद्दे का प्रमुख नहीं होना भी कम होती दिलचस्पी का कारण है ! केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने भी मतदान के घटते प्रतिशत के कारण चिंता व्यक्त की है और जिला निर्वाचन अधिकारियों को मतदान बढ़ाने के हर संभव उपाय करने के निर्देश दिए हैं. राजनीतिक और सामाजिक संगठनों को भी आगे आकर लोगों को मतदान करने के लिए प्रेरित करना होगा. मतदान का घटता प्रतिशत लोकतंत्र और देश के हित में नहीं है !