प्रणामी धर्मावलंबियों की अनूठी परम्परा, जो देती है प्रकृति से प्रेम करने की सीख

पन्ना, 16 नवंबर (वार्ता) मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में प्रणामी धर्मावलम्बियों की एक अनूठी परम्परा आज भी कायम है जो प्रकृति से प्रेम करने की सीख देती है। लगभग चार सौ सालों से चली आ रही इस अनूठी परम्परा को पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं, जिसमें देश के विभिन्न प्रान्तों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।

प्राचीन भव्य मंदिरों के शहर पन्ना में प्रणामी धर्मावलम्बियों की आस्था का केंद्र श्री प्राणनाथ जी का मंदिर स्थित है, जो प्रणामी धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है। इसी प्रणामी संप्रदाय के अनुयाई और श्रद्धालु शरद पूर्णिमा के ठीक एक माह बाद कार्तिक पूर्णिमा को देश के कोने कोने से यहां पहुंचते हैं। यहाँ किलकिला नदी के किनारे व पहाड़ियों के बीचों बीच बसे समूचे पन्ना नगर के चारों तरफ परिक्रमा लगाकर भगवान श्री कृष्ण के उस स्वरूप को खोजते हैं, जो कि शरद पूर्णिमा की रासलीला में उन्होंने देखा और अनुभव किया है।

अंतर्ध्यान हो चुके प्रियतम प्राणनाथ को उनके प्रेमी सुन्दरसाथ भाव विभोर होकर नदी, नालों, पहाड़ों तथा घने जंगल में हर कहीं खोजते हैं। सदियों से चली आ रही इस परम्परा को प्रणामी धर्मावलम्बी पृथ्वी परिक्रमा कहते हैं। प्रकृति के निकट रहने तथा विश्व कल्याण व साम्प्रदायिक सद्भाव की सीख देने वाली इस अनूठी परम्परा को प्रणामी संप्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने आज से लगभग 400 वर्ष पहले शुरू किया था, जो आज भी अनवरत् जारी है। इस परम्परा का अनुकरण करने वालों का मानना है कि पृथ्वी परिक्रमा से उनको सुखद अनुभूति तथा शान्ति मिलती है।

प्राणनाथ जी मंदिर के ट्रस्टी राकेश शर्मा बताते हैं कि कार्तिक शुक्ल की पूर्णमासी पर आज प्रात: 6 बजे से चारों मंदिरों की परिक्रमा के साथ पृथ्वी परिक्रमा का शुभारम्भ हुआ। प्रणामी संप्रदाय की इस अनूठी परंपरा के बारे में आप बताते हैं कि श्री प्राणनाथ जी मंदिर से पृथ्वी परिक्रमा की शुरुवात सुबह 6 बजे से हो जाती है जो देर रात्रि तक चलती रहती है। हजारों की संख्या में श्रद्धालु जिन्हे प्रणामी संप्रदाय में सुन्दरसाथ कहा जाता है वे नाचते गाते, झूमते और तरह – तरह के वाद्य यन्त्र बजाते हुए चलते हैं। जंगल के रास्ते से होते हुये श्रद्धालुओं की टोलियां प्राकृतिक व रमणीक स्थल चौपड़ा मंदिर जब पहुंचतीं हैं तो यहां पर प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करते हुये कुछ देर विश्राम कर प्रसाद आदि ग्रहण करतीं और फिर अपनी अल्प थकान को मिटाकर आगे की यात्रा पर निकल पड़तीं हैं।

श्री शर्मा बताते हैं कि इस साल पृथ्वी परिक्रमा में गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के दमोह, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, इन्दौर व उज्जैन आदि जिलों से लगभग 15 से 20 हजार सुन्दरसाथ शामिल हुए हैं।

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