विंध्य की डायरी
डॉ रवि तिवारी
विंध्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान बड़े पैमाने पर स्थापित नेता कांग्रेस का हाथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी के कमल फूल पर अपना विश्वास व्यक्त कर आने वाले दिनों में राजनैतिक भविष्य सुरक्षित करना चाहते थे.इन नेताओं के प्रवेश के पहले से ही भाजपा ए और बी में बंटी हुई थी.लगातार सत्ता में बने रहने के कारण चुनावों के पहले ही दो भागों में बटी पार्टी स्पष्ट दिखाई दे रही थी.यही वजह थी कि भाजपा के नब्ज पकड़ने वाले नेताओं ने परिस्थिति का आकलन कर पार्टी को सर्वस्पर्शी बनाते हुए बड़े पैमाने पर दूसरे दलों के नेताओं को बिना किसी व्यवधान के पार्टी में आने दिया था.पार्टी की इस सर्वस्पर्शी रणनीति का परिणाम सबके सामने दोनों चुनाव में देखने को मिला.विंध्य में विपक्ष के नाम पर जिलों से सिर्फ एक-एक नेता ही जीत दर्ज कराने में सफल रहे.
लोकसभा में भाजपा ने लगातार तीसरी बार विंध्य में परिणाम दोहरा कर नया इतिहास रच दिया.मजे की बात यह है कि प्रदेश में भाजपा का पुनः सदस्यता अभियान चल रहा है. इस बार पार्टी ने सभी स्तर के पदाधिकारियों को ज्यादा से ज्यादा सदस्य बनाने का लक्ष्य दिया है. ऐसी स्थिति में सबसे अधिक चिंता की लकीरें उन नेताओं के चेहरे में दिखाई दे रही हैं जिन्होंने अवसर की तलाश में अपना भविष्य बनाने के इरादे से पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली थी.फिलहाल ऐसे नेताओं का सम्बंध उन तक सीमित रह गया है जिन्होंने उन्हें पार्टी में लाने की पहल की है.स्थिति यह है कि पार्टी कार्यालय की गतिविधियों की भी जानकारी उन्हें सीधे न देकर माध्यम से दिलाई जा रही है. भाजपा ए और बी टीम के सदस्य सी टीम के नेताओं को लेकर अपने सामने उपहास उड़ाते देखे जाते हैं. कांग्रेस के लोकतांत्रिक व्यवस्था में जीने वाले इन नेताओं में हो रही बेचैनी दिखाई देने लगी है.
स्थानीय निकाय और शासन का असर
विंध्य के स्थानीय निकायों की प्रशासनिक बागडोर निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के हाथ मे न होकर ऐसा लगने लगा है कि पूरी तरह से प्रदेश शासन के पास है. नगरीय निकायों के चुने हुए जनप्रतिनिधियों के स्वर अब मुखरित होकर कम ही सुनाई देते हैं. निकायों के संचालन के लिए बनाए गए दिशा निर्देश व नियम प्रावधानों में अब तक इतने संशोधन कर दिए गए हैं कि निर्वाचन के अलावा सब कुछ बदला-बदला नजर आने लगा है. जिन संस्थाओं में सत्तादल का ठप्प लगा है वे सरकार और शासन के खिलाफ कुछ बोलने की स्थिति में नहीं है. जहां विपक्ष को कुर्सी मिली है उसकी धार को इतना भोथरा कर दिया गया है कि वो कुछ बोलने की स्थिति में नही है. इस व्यवस्था पर जनता का मौन कब असंतोष बनकर फूटेगा.यह नही कहा जा सकता है, पर कुछ जगह उसके संकेत दिखाई देने लगे हैं.
जिला उपाध्यक्ष की बगावत
रीवा में भाजपा के अंदर सब कुछ ठीक ठाक नही चल रहा है. संगठन और सत्ता के बीच यहा तालमेल नही बन पा रहा है. भाजपा जिला उपाध्यक्ष ने पार्टी के सभी पदो से इस्तीफा देते हुए पार्टी के भीतर चल रही मनमानी के तरफ इशारा किया है और बगावत पर उतर कर नामांकन पत्र दाखिल कर दिया. रीवा शहर के वार्ड 5 में उप चुनाव हो रहा है. जिसमें टिकट न मिलने से नाराज पूर्व पार्षद और जिला उपाध्यक्ष ने पार्टी के सभी पदो से इस्तीफा दे दिया. अरूण तिवारी मुन्नू जिलाध्यक्ष के बेहद करीबी रहे है, जब टिकट कटा तो मनाने के लिये आनन-फानन बुधवार को जिला उपाध्यक्ष पद से नवाज दिया गया. फिर भी मुन्नू नही माने और इस्तीफा थमा दिया. एक बात तो साफ है कि भाजपा के अंदर सब कुछ ठीक नही चल रहा, आपसी खीचतान मची हुई है