अनुशासनात्मक प्राधिकारी को दिये पुनः सुनवाई के निर्देश
जबलपुर। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने सजा से दंडित कर्मचारी के अभ्यावेदन पर किसी प्रकार का विचार किये बिना जांच अधिकारी के रिपोर्ट के आधार पर बर्खास्ती के आदेश पर मुहर लगा दी। हाईकोर्ट जस्टिस विवेक जैन की एकलपीठ ने सुनवाई के बाद अनुशासनात्मक प्राधिकारी के आदेश को अवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन में उठाने गए बिंदुओं पर विचार करते हुए अनुशासनात्मक प्राधिकारी आदेश पारित करें। अनुशासनात्मक प्राधिकारी तीन माह की निर्धारित समय सीमा में ऐसा नहीं करता है तो याचिकाकर्ता वेतन सहित सभी लाभों को पाने का हकदार होगा।
याचिकाकर्ता शिवहरि श्रीवास्तव की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि मध्य प्रदेश विद्युत मंडल में कैश कलेक्शन के पद पर कार्यरत था। साल 2003-04 में उपभोक्ताओं से लगभग 70 हजार रूपये बिजली की राशि लेकर जमा नहीं करने के आरोप में उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही प्रारंभ की गयी। इसके अलावा उसके खिलाफ पुलिस में भी प्रकरण दर्ज करवाया गया था।
याचिकाकर्ता की तरफ से याचिका में कहा गया था कि पुलिस द्वारा दर्ज किये गये अपराधिक प्रकरण में उसे न्यायालय ने दोषमुक्त करार दिया है। इसके अलावा उस समय आरएमएम सॉफ्टवेयर के माध्यम से नगद संग्रह राशि का मैनुअल से कम्प्यूटरीकरण किये जाने की शुरुआत की थी। जांच अधिकारी ने रिपोर्ट में स्वीकार किया है कि उसे कम्प्यूटर डेटा की गणना को कोई ज्ञान नहीं था। जांच रिपोर्ट तैयार करने के लिए उसने किसी अन्य व्यक्ति का सहयोग लिया था।
जांच रिपोर्ट के आधार पर उसे बर्खास्त कर दिया गया। जिनके खिलाफ अनुशासनात्मक प्राधिकारी के समक्ष अपील दायर करते हुए अपना अभ्यावेदन पेश किया। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए बर्खास्ती के आदेश को सही करार दे दिया। आदेश के खिलाफ दायर अपील को भी खारिज कर दिया गया। याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि अपील की सुनवाई के दौरान पारित आदेश में उसके द्वारा पेश किये गये अभ्यावेदन में उठाए गए बिंदुओं का कोई उल्लेख नहीं है। एकलपीठ ने सुनवाई के बाद उक्त आदेश जारी किये ।