देर से प्रत्याशी चयन, बड़े नेताओं की दूरी… इसलिए हारे

ग्वालियर संसदीय क्षेत्र
हरीश दुबे
ग्वालियर:प्रदेश में लोकसभा चुनाव में मप्र में कांग्रेस ने जिन सीटों से विजय की सर्वाधिक उम्मीद लगाई थी, उनमें ग्वालियर सीट खास थी लेकिन ग्वालियर में 70 हजार वोट से मिली पराजय से कांग्रेस के स्थानीय वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता से लेकर चुनाव कैंपेन में अहम जिम्मेदारियां संभालने वाले नीति निर्धारक तक हैरत में हैं।अब पार्टी में पराजय के कारणों पर मंथन शुरु हो गया है। एक दूसरे पर हार की जिम्मेदारी थोप कर चुनाव अभियान में खुद की भूमिका को साफ सुथरा साबित करने की कवायद भी जारी है। हालांकि यह यक्ष प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही है कि प्रचार में सारी ताकत झोंकने और सभी तबकों को साथ लेकर चलने के पुरजोर दावों के बावजूद आखिर कहाँ कमी रह गई कि पार्टी जीती हुई बाजी हार गई।
हालांकि विस्तृत कैनवास पर लड़े जाने वाले लोकसभा चुनाव में 70 हजार वोट से हार कोई बड़ी हार नहीं मानी जाती लेकिन लगातार पांचवी बार इस सीट पर मिली पराजय से पार्टी अफसोस में है। सात माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में इस लोस क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में कांग्रेस और भाजपा चार-चार सीटों पर विजयी हुई थी, इस तरह मुकाबला बराबरी पर छूटा था। विधानसभा चुनाव निबटते ही कांग्रेस लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई थी और प्रत्याशी भले ही कोई भी हो, लेकिन स्थानीय नेताओं, कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारियां तय कर दी गईं थीं लेकिन लोकसभा चुनाव समीप आते ही सारा समन्वय बिखर गया।

प्रवीण पाठक को प्रत्याशी बनाए जाने के ऐलान के साथ ही पार्टी में बड़ी फूट देखने को मिली। सांसद रह चुके रामसेवक बाबूजी ने विधानसभा चुनाव में ग्वालियर ग्रामीण से टिकट माँगा था, उस वक्त उन्हें लोकसभा लड़ाने का वादा कर विधानसभा का टिकट काट दिया गया था, रामसेवक तभी से लोकसभा लड़ने की तैयारी में जुट गए थे लेकिन युवा और उच्च शिक्षित चेहरे का हवाला देते हुए लोकसभा के समर में टिकट प्रवीण पाठक को दे दिया गया। नाराज होकर रामसेवक बाबूजी न सिर्फ घर बैठ गए बल्कि सक्रिय राजनीति छोड़ने की भी बात कह दी। कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक ने उन्हें मनाने की कोशिश की लेकिन नाराजगी मिटी नहीं, रही सही कसर नाराज पूर्व सांसद के बेटे और कांग्रेस संगठन में कई पदों पर रहे उदयवीर सिंह ने भाजपा में शामिल होकर पूरी कर दी।

लोकसभा चुनाव अभियान में भाजपा से दो-दो हाथ कर रही कांग्रेस को तब और बड़ा आघात लगा जब ग्रामीण कांग्रेस के कार्यकारी जिलाध्यक्ष कल्याण सिंह कंसाना पार्टी को अलविदा कहकर बसपा से टिकट ले आए और सीधे तौर पर अपनी पुरानी पार्टी के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगा दी। वे बड़ी प्लानिंग के साथ कांग्रेस के पारम्परिक वोट बैंक में सेंध लगाते रहे और कांग्रेस प्रत्याशी उन्हें गंभीरता से लेने या जवाबी रणनीति बनाने के बजाए बसपा को भाजपा की बी टीम बताकर उन्हें नजरअंदाज करते रहे।
यहां इसलिए हारी कांग्रेस
— भाजपा ने 2 मार्च को ही भारत सिंह कुशवाह को अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था जबकि कांग्रेस करीब एक माह तक प्रत्याशी चयन की जद्दोजहद में ही उलझी रही, अप्रैल का पहला हफ्ता बीतने के बाद ही कांग्रेस प्रवीण पाठक को प्रत्याशी घोषित कर सकी जबकि भाजपा ने अपना प्रत्याशी घोषित होने के साथ ही जोरशोर के साथ प्रचार कैंपेन शुरु कर दिया था, इस तरह प्रचार मुहिम में कांग्रेस करीब एक महीने से ज्यादा पिछड़ गई।
— भाजपा के प्रचार अभियान में मुख्यमंत्री मोहन यादव, प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा सहित नरेंद्र सिंह तोमर, शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया सहित कई बड़े नेता जुटे रहे लेकिन कांग्रेस के प्रचार के लिए कोई बड़ा नेता यहाँ नहीं आया। राहुल और प्रियंका गाँधी ने भिंड और मुरैना सीटों पर तो सभाएं लीं लेकिन उन्होंने ग्वालियर आकर सभा लेने की जहमत नहीं की।
— जिला कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस प्रत्याशी प्रवीण पाठक के बीच समन्वय का अभाव रहा। पाठक के नाम की घोषणा के साथ ही कांग्रेस जिलाध्यक्ष डॉ. देवेंद्र शर्मा की नाराजगी उभर कर आई। पार्टी सूत्रों का कहना था कि लोकसभा प्रत्याशी के चयन जैसा महत्वपूर्ण निर्णय जिला कांग्रेस कमेटी को विश्वास में लेकर नहीं लिया गया। हालांकि जिला अध्यक्ष डॉ. शर्मा की नाराजगी की पृष्ठभूमि में यह बताया गया कि वे स्वयं टिकट के गंभीर दावेदार थे। हालांकि शहर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष पार्टी का प्रचार करते दिखाई दिए लेकिन दूरियाँ मिटी नहीं।
— चूंकि कांग्रेस प्रत्याशी ब्राह्मण वर्ग से थे, लिहाजा कुछ ब्राह्मण संगठनों ने उनकी उम्मीदवारी को ब्राह्मण समाज के गौरव और अस्मिता से जोड़ दिया, नतीजन कुछ अन्य सामाजिक वर्ग कांग्रेस से नाराज हो गए, जिसका खामियाजा कांग्रेस को उठाना पड़ा।
अपने विधानसभा क्षेत्र पर ही वर्चस्व नहीं रख सके प्रवीण
राजनीति के जानकारों का आंकलन था कि कांग्रेस शहरी क्षेत्र में अपनी स्थिति को बेहतर करेगी लेकिन चार विधायक होने के बावजूद कांग्रेस का प्रदर्शन न शहरी क्षेत्र में ठीक रहा और न ग्रामीण क्षेत्र में। खुद अपने विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर दक्षिण में ही कांग्रेस प्रत्याशी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, यहाँ प्रवीण को मात्र 69797 मत मिले जबकि भारत सिंह कुशवाहा ने 88250 मत हांसिल किये। डबरा में भारत सिंह के 70524 के मुकाबले 83672 और भितरवार में 70000 के मुकाबले 75898 मतों से बढ़त लेकर इन दोनों विधानसभा मे प्रवीण का प्रदर्शन जरूर शानदार रहा. ग्वालियर ग्रामीण मे कांग्रेस के विधायक हैं, तब भी प्रवीण 444 वोटों से पिछड़ गए। पोहरी व करेरा में भी कांग्रेस प्रत्याशी ज्यादा मज़बूत नहीं दिखे।
इन्होंने कहा
— ग्वालियर सीट पर कांग्रेस संगठन ने यद्यपि पूरी मजबूती और समर्पण भाव से चुनाव लड़ा लेकिन हमें पराजय मिली, इसके कारणों की हम समीक्षा कर रहे हैं। भाजपा ने हमसे महीना भर से भी पहले प्रत्याशी घोषित कर दिया था, इस कारण उनके प्रत्याशी पहले ही जनता के बीच उतर गए थे जबकि हमारे प्रत्याशी को प्रचार के लिए कम समय मिला। फिर भी ग्वालियर शहर कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी व वरिष्ठ नेताओ के साथ समन्वय बिठाकर मजबूती से चुनाव लड़ा, जो कमियां रहीं, उन्हें हम दूर करेंगे।
— डॉ. देवेंद्र शर्मा, जिला कांग्रेस अध्यक्ष, ग्वालियर

— भाजपा ने इस चुनाव में जमकर जाति का कार्ड खेला। कई जातिगत समूहों को कांग्रेस के खिलाफ भड़काने की कोशिश की गई, हालांकि हमारी पार्टी जाति और धर्म की राजनीति से दूर रहकर सामाजिक समरसता में यकीन रखती है लेकिन भाजपा द्वारा फैलाए गए भ्रम को दूर करने के लिए उन्हीं की भाषा में जवाब दिया जाना था। ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में विभिन्न जातिगत समूहों के प्रभाव वाले इलाकों में उसी जाति पर व्यापक असर रखने वाले कांग्रेस के बड़े नेताओं को बुलाकर सख्ती से बात रखी जानी थी, अपने सिद्धांतों के चलते हम ऐसा नहीं कर सके।
— सत्यभान सिंह चौहान, वरिष्ठ कांग्रेस नेता, थाटीपुर

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