जनहित, जन सरोकार और जनहितैषी का मतलब क्या?

विंध्य की डायरी
डा0 रवि तिवारी

देश लगातार विकास पथ पर अग्रसर है नई तकनीक के साथ नए संसाधन विकसित हो रहे है. आधुनिक युग में मशीनो का चलन है बावजूद इसके चुनावी गतिविधियां इस देश में लंबे समय तक खीची जा रही है. सवाल यह उठता है कि सब कुछ होने के बाद भी सात चरणो में चुनाव देश में हो रहे है. लंबे समय तक चुनाव कार्यक्रम चल रहे है, कही न कही जनहित, जन सरोकार और जनहितैषी काम प्रभावित हो रहे है. चुनाव घोषणा के साथ गतिविधियां ठप्प हो जाती है, विकास के नये काम से लेकर स्थानीय मुद्दे तक पीछे रह जाते है. 16 मार्च को चुनाव की घोषणा हुई और चार जून को परिणाम आयेगे. इस लंबे अंतराल में बहुत सारे कार्य प्रभावित हुए है तो क्या पहले के जैसे चुनाव एक माह में तीन-चार चरण में नही हो सकते. उस समय तो संसाधन भी इतने विकसित नही थे, अब सब कुछ होने के बावजूद लंबे समय तक चुनाव खीचा जा रहा है.

सवाल यह उठता है कि इसके पीछे वजह क्या है. कही ऐसा तो नही किसी पार्टी  को लाभ देने के लिये ऐसा हो रहा हो, ताकि वह पूरी तरह से अपना प्रचार-प्रसार कर सके. एक सवाल यह भी उठता है कि ‘एक देश एक चुनाव’ की बहस चल रही है तो कही ऐसा तो नही लंबे समय तक कई चरणो में चुनाव को खीचा जायेगा तो जनमानस के मानस पटल पर यह बात आयेगी कि अच्छा है कि एक देश एक चुनाव हो और जनता खुद इसको लेकर आवाज उठाये. प्रथम चरण का मतदान 19 अप्रैल को हुआ और अब परिणाम 4 जून को आयेगा. ऐसे में मतदाता ऊब सा गया है और इंतजार करते-करते थक गया है और इस लंबे अंतराल में जनहित और जनहितैषी कार्य भी सफर कर रहे है.

शांति का टापू रीवा अपराध का गढ़

ऐतिहासिक धरोहरो को सजो कर रखने वाली रीवा की धरती समाजवादियों का गढ़ रही है और इसके कोख से कई समाजवादी नेताओं का उदय हुआ. तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद रीवा शांति का टापू रहा है. सामाजिक सौहार्द और भाईचारा यहा की संस्कृति रही है पर कुछ समय से यह शांति का टापू अपराध का गढ़ बनता जा रहा है. पिछले एक साल से लगातार हो रही आपराधिक वारदातो ने लोगो को हिला कर रख दिया है. हर दूसरे दिन गोली चल रही है तो कही अपहरण और लूट जैसी वारदात को अंजाम दिया जा रहा है. अवैध मादक पदार्थो का हब बन चुका है. नशे में चूर और बेरोजगारी से तंग युवक हथियार उठा रहे है. कमजोर पुलिसिंग एवं आला अफसरो की उदासीनता ने अपराध को फलने-फूलने का मौका दिया है. बढ़ते हुए अपराध को लेकर जिम्मेदार जनप्रतिनिधि भी मुंह में दही जमाकर धृतराष्ट्र की तरह देख रहे है, भगवान जाने रीवा का क्या होगा.

सत्ता और संगठन के निशाने पर कई अधिकारी

गत माह हुए लोकसभा चुनाव को लेकर कई अधिकारी और कर्मचारी सत्ता और संगठन के नजर में चढ़ गये है. किरकिरी बन चुके अफसरो पर आचार संहिता समाप्त होने के बाद कार्यवाही का चाबुक चलेगा. समूचे विंध्य में ऐसे कई अफसर सत्ता और संगठन के निशाने पर है, जिन पर कार्यवाही होना निश्चित है. भाजपा की हार हो या जीत गाज गिरनी तय है. कई प्रशासनिक अधिकारियों को इसकी भनक लग गई है, इसके लिये नेताओं की गणेश परिक्रमा कर रहे है ताकि कोपभाजन से बच सके. अफसरो की सूची अंदर ही अंदर तैयार हो रही है जिस पर आचार संहिता समाप्त होने के बाद कार्यवाही की मोहर लगाई जायेगी. उधर विपक्ष के निशाने पर भी कई अफसर है जिनकी शिकायते की गई है और अब मतगणना के बाद विपक्ष ऐसे अफसरो के खिलाफ मोर्चा भी खोलेगा.

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