कोलकाता 22 मई (वार्ता) कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में ममता सरकार द्वारा 2010 के बाद अन्य पिछडा वर्ग (ओबीसी) के लिए जारी सभी प्रमाण-पत्रों को बुधवार को रद्द कर दिया। जिससे करीब पांच लाख लोगों के प्रभावित होने का अनुमान है।
न्यायालय ने पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग (अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के अतिरिक्त) (सेवाओं और पदों की रिक्तियों मे आरक्षण) अधिनियम 2012 की अनुच्छेद 2एच, पांच, छह और 16 तथा इस अधिनियम के अनुसूची एक और तीन को असंवैधानिक करार दिया है।
न्यायमूर्ति तारापद चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मनता की खंड पीठ ने इस मामले पर फैसला देते हुए कहा कि 2010 से पहले ओबीसी की 66 श्रेणियों के वर्गीकरण के राज्य सरकार के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया गया है क्योंकि याचिका में उनकों चुनौती नहीं दी थी।
वर्ष 2010 के आदेश के खिलाफ 2011 में न्यायालय के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया था कि 2010 के बाद जारी सभी ओबीसी प्रमाण-पत्रों में 1993 के (पश्चिम बंगाल पिछड़ा वर्ग आयोग) अधिनियम की उपेक्षा की गयी है।
अदालत ने कहा कि 2010 के बाद राज्य में वास्तव में ओबीसी को उनका हक नहीं दिया गया है और इस टिप्पणी के साथ आयोग ने 2010 के बाद के प्रमाण-पत्रों को खारिज कर दिया। पीठ ने 2010 के बाद 37 श्रेणियों को ओबीसी आरक्षण दिये जाने की व्यवस्था को भी खारिज कर दिया है।
फैसले में यह भी कहा गया है कि मुसलमानों की जिन 77 श्रेणियों को आरक्षण के चुना गया वह पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए अपमानजनक है। पीठ की राय में निसंदेह ऐसा निर्णय वोट की राजनीति के लिए किया गया।
पीठ ने यह टिप्पणी भी की कि मुसलमानों की जिन श्रेणियों को आरक्षण दिया गया उन्हें सत्ता पक्ष के लिए वस्तु और वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया। न्यायालय ने यह टिप्पणी की कि आयोग ने इन समुदायों को आरक्षण देने में अनावश्यक शीघ्रता दिखाई होगी ताकि उस समय की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार द्वारा प्रचार के समय किये गए वादों को पूरा किया जा सके।