मुद्रास्फीति पर नियंत्रण की चुनौती

प्रतिकूल मौसमी हालात तथा बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों ने मुद्रास्फीति नियंत्रण को लेकर चिंता जगा दी है. दरअसल,निर्धारित चार प्रतिशत तक मुद्रास्फीति नियंत्रण के लक्ष्य को लेकर अनिश्चितता का माहौल है.बीते माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर 4.9 प्रतिशत थी इस पर रिजर्व बैंक समेत आर्थिक विशेषज्ञ उत्साहित थे कि अब चार फीसदी के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.इसी मकसद से रिजर्व बैंक ने अप्रैल 2023 के बाद से रेपो दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया.

बैंक को आशंका थी कि रेपो दरों में बदलाव से महंगाई बढ़ सकती है. ऐसे में आरबीआई मुद्रा स्फीति की मौजूदा स्थिति को लेकर आशावान है.लेकिन साथ ही चिंतित है कि मौसम के मिजाज में लगातार आ रहे बदलाव तथा दो साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध व हालिया गाजा संकट से वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ सकती है. जिसका असर भारत पर पडऩा लाजिमी है. इन्हीं आशंकाओं के चलते रिजर्व बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति को नहीं बदला है.भारतीय अर्थव्यवस्था पर पैनी निगाह रखने वाली संस्था सीएमआईई की रिपोर्ट में विश्वास जताया गया है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक खुदरा मुद्रास्फीति पांच साल के न्यूनतम स्तर तक पहुंच सकती है.मौसमी अस्थिरता इस मार्ग में बाधक बन सकती है.दरअसल, वैश्विक मौसम संगठन के संकेत हैं कि विपरीत मौसमी स्थितियां हमारी कृषि अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती हैं.जिसका सीधा असर खाद्यान्न महंगाई पर पड़ सकता है.हालांकि, भारत की सकल घरेलू उत्पाद दर के फिलहाल सात प्रतिशत रहने के अनुमान तमाम देशी-विदेशी आर्थिक संगठन लगा रहे हैं, लेकिन अचानक पैदा हुई प्रतिकूल परिस्थितियों के बाबत भविष्यवाणी करना आसान नहीं है.इसके बावजूद जरूरी है कि महंगाई पर नियंत्रण के प्रयासों के प्रति हम गंभीर रहें. दुनिया की सबसे बड़ी हमारी युवा आबादी जिसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है.हमें यह स्वीकार करना होगा कि जलवायु परिवर्तन का असर पूरी दुनिया को गहरे तक प्रभावित करने लगा है. खासकर कृषि क्षेत्र के प्रभावित होने से महंगाई बढऩे का खतरा लगातार बना हुआ है. अतिवृष्टि-अनावृष्टि और अचानक आने वाली बाढ़ दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं.जिससे सारी दुनिया में खाद्यान्नों की कीमतों में तेजी आ रही है.पिछले दिनों भारत में यह भी देखा कि जब गेहूं की फसल तैयार होकर खलिहानों तथा मंडियों तक पहुंचने लगी तो पश्चिमी विक्षोभ के चलते हुई बारिश ने काफी नुकसान किया.निश्चित रूप से गोदाम पहुंचने से पहले अनाज का भीग जाना किसान के लिए संकट का सबब बन जाता है. यह घटनाक्रम अब हर साल का क़िस्सा बन गया है. हजारों टन अनाज बेमौसमी बारिश की भेंट चढ़ जाता है. जिससे अनाजों, फलों व सब्जियों की फसल खराब होने से खाने-पीने की वस्तुओं के दाम बढ़ जाते हैं. पर्याप्त भंडारण की व्यवस्था न होने के कारण बिचौलिए जमाखोरी के जरिए वस्तुओं के दामों में कृत्रिम उछाल पैदा कर देते हैं. जो कालांतर में खुदरा मुद्रास्फीति बढऩे का कारण बन जाता है.जिसका सीधा असर आम आदमी की थाली पर पड़ता है.

रूस-यूक्रेन युद्ध, हालिया गाजा संकट एवं समुद्री जहाजों पर हूती विद्रोहियों के हमलों ने भी कच्चे तेल के दामों में तेजी पैदा की है.इस तरह पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में उछाल से ढुलाई का खर्च बढ़ जाता है. जो महंगाई की एक वजह भी बनता है.भारत जैसे देश के लिये विशेष रूप से जहां कच्चे तेल का अधिकांश हिस्सा विदेश से आयात होता है. कुल मिलाकर युद्ध व भू-राजनीतिक तनाव भी महंगाई बढऩे का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है.इसी चिंता के चलते ही रिजर्व बैंक को कहना पड़ा कि हम खुदरा मुद्रास्फीति को नियंत्रित तो कर सकते हैं बशर्ते अन्य बातें सामान्य रहें. यानी मौसमी उतार-चढ़ाव व वैश्विक अस्थिरता का असर हम पर कम हो.हालांकि, मौसम विभाग इस बार सामान्य मानसून की भविष्यवाणी कर रहा है, इसके बावजूद सिंचाई के वैकल्पिक साधनों को बढ़ाते रहना होगा. लोकसभा चुनाव के बाद नई सरकार से अपेक्षा रहेगी कि वो महंगाई को नियंत्रण में रखने के सभी उपाय करें.

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