आदिवासी मतदाताओं को रिझाने के लिए हर संभव प्रयत्न कर रही भाजपा

सियासत

मध्य प्रदेश में चौथे चरण में इंदौर उज्जैन संभाग की आठ लोकसभा सीटों पर 13 मई को मतदान होगा। इन सभी सीटों पर शनिवार शाम 5 बजे चुनाव प्रचार समाप्त हो जाएगा। भाजपा इस समय पूरा जोर आदिवासी अंचल पर लगा रही है क्योंकि आदिवासी मतदाता ही अभी भी पार्टी को चुनौती लगते हैं। प्रदेश में आदिवासियों में सबसे अधिक लोकप्रिय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हैं। उनके क्षेत्र विदिशा में 7 मई को मतदान संपन्न हो गया है। इसके बाद से उन्होंने मालवा और निमाड़ अंचल में मोर्चा संभाल लिया है। शनिवार शाम 5 बजे तक शिवराज सिंह चौहान की 22 सभाएं इन दोनों को उज्जैन संभाग में हो चुकी होंगी। उनके अलावा मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा, नगरीय विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा जैसे नेता भी लगातार आदिवासी अंचल पर फोकस किए हुए हैं।

दरअसल, आदिवासी अंचल अभी भी भाजपा के लिए चुनौती बना हुआ है। 2023 के विधानसभा चुनाव में अजजा (एसटी) वर्ग के लिए सुरक्षित 47 में से 23 सीटों पर मिली हार के बाद पार्टी ने आदिवासी सीटों को चुनौती माना है। भाजपा के लिए खास तौर पर धार खरगोन और झाबुआ जिले की आदिवासी सीटें चुनौती पूर्ण है। पार्टी सारा जोर यही लग रही है। इंदौर उज्जैन संभाग की जिन आठ लोकसभा सीटों पर 13 मई को मतदान होगा उनमें केवल रतलाम और झाबुआ ही भाजपा के लिए चुनौती पूर्ण है। खास तौर पर इस सीट का भील समुदाय अभी भी भाजपा की पकड़ से बाहर है। भील समुदाय पर कांग्रेस की अच्छी पकड़ है। कांग्रेस के प्रत्याशी कांतिलाल भूरिया भील समाज से आते हैं।

रतलाम झाबुआ की सीट छोड़ दी जाए तो पार्टी को मंदसौर, उज्जैन, शाजापुर, खरगोन, खंडवा और धार में अधिक परेशानी नहीं है। धार में भले ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया हो लेकिन लोकसभा चुनाव में धार का मतदाता अलग तरीके से मतदान करता है। इसलिए धार भी भाजपा के लिए अधिक चुनौती नहीं है। खरगोन की सीट भी कांग्रेस के लिए हमेशा से कमजोरी रही है। यहां पिछले दो चुनाव से कांग्रेस विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन कर रही है लेकिन लोकसभा में पार्टी लगातार हार रही है। केवल 2005 में अरुण यादव ने उपचुनाव में यहां जीत दर्ज की थी अन्यथा जब से खरगोन लोकसभा सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित हुई है तब से कांग्रेस यहां एक बार भी नहीं जीती है। अरुण यादव के पहले ताराचंद पटेल एक बार यहां चुनाव जीत चुके हैं। इस तरह खरगोन भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। उज्जैन मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का घर है। उज्जैन दक्षिण से ही विधायक हैं। ऐसे में उज्जैन में भी कांग्रेस के पास कोई स्कोप नहीं है। हालांकि उज्जैन के कांग्रेस के प्रत्याशी महेश परमार भाजपा के अनिल फिरोजिया के मुकाबले दमदार प्रत्याशी हैं, लेकिन उज्जैन की सीट कांग्रेस के लिए वैसे ही बड़ी चुनौती पूर्ण है क्योंकि यहां भारतीय जनसंघ के समय से भाजपा जीतती रही है। जहां तक इंदौर का सवाल है तो यहां कांग्रेस के पास अब प्रत्याशी ही नहीं है। इसलिए इंदौर के बारे में कोई चर्चा नहीं हो रही है।

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