महाकौशल की डायरी
अविनाश दीक्षित
विधान सभा चुनाव हारने तथा लोकसभा चुनाव में सूपड़ा साफ होने के बाद कांग्रेस की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी अब पराजय के कारण तलाशने जा रही है । कांग्रेसी सूत्रों के अनुसार कमेटी के सदस्य लोक सभा चुनाव में प्रत्याशी रहे नेताओं से वन टू वन बातचीत करेंगे। 29 जून को फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के चेयरमेन महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, उड़ीसा के कोरापुट से सांसद सप्तागिरी उलका तथा गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाणी लोकसभा प्रत्याशियों से रूबरू होंगे।कमेटी के समक्ष सत्य के तथ्य रखने के लिए जबलपुर से लोकसभा उम्मीदवार रहे दिनेश यादव अपनी रिपोर्ट को अंतिम रूप देने में लगे हुये हैं। वह अपनी रिपोर्ट में विधानसभा से लेकर बूथवार मतगणना के आंकड़ों को सम्मिलित कर चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि जबलपुर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस को अब तक की सबसे बड़ी पराजय का सामना करना पड़ा है। स्थानीय कांगे्स नेता प्रत्यक्ष तौर पर भाजपा की लहर, मोदी- शिवराज की इमेज सहित लाड़ली बहना योजना के प्रभाव को हार के प्रमुख कारण बता रहे हैं, मगर ऐसा कहकर वह अपनी कमजोरियों पर पर्दा डालने का प्रयास भी कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान नगर कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष विहीन रही, और संगठन के शेष पदाधिकारी बिना राजा की फौज की तरह औपचारिक चुनावी कार्य करते दिखे। मतदाताओं से जीवंत सम्पर्क की जगह फोटो खिंचाने को अहमियत देते दिखे। आलम यह रहा कि प्रत्याशी को पार्टी के गिने – चुने नेताओं के साथ जनसम्पर्क करते देखा गया। स्थानीय नामवर नेताओं के अलावा प्रादेशिक स्तर के नेताओं ने भी चुनावी प्रचार से दूरी बनाये रखी।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी के एकमात्र रोड शो को छोड़ दें तो पार्टी के अन्य स्टार प्रचारकों ने चुनावी सभाओं से परहेज किया, जिसके चलते ना कांग्रेस का माहौल बन पाया और ना ही उम्मीदवार और उनकी टीम की हौसला अफजाई हो सकी। मतदान दिवस के दिन कई बूथ में कांग्रेस कार्यकर्त्ता तक नदारत दिखे। समझा जा सकता है कि किस तरह एक ओर प्रत्याशी जहां सियासी संघर्ष को धारदार बनाने के लिये प्रयासरत रहे, वहीं विधायक, पूर्व विधायक, और विभिन्न अनुषांगिक संगठनों के जिलाध्यक्ष औपचरिकता निभाने में लगे रहे।
बहरहाल भोपाल में हो रही फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के समक्ष हार के कौन-कौन से फैक्ट आते हैं, इस पर सभी की नजर बनी रहेगी, किन्तु जबलपुर के खाटी कांग्रेसियों के बीच यह चर्चा आम है कि यदि फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने आंकड़ों, स्थानीय, प्रादेशिक और जिला स्तरीय नेताओं की भूमिका सहित प्रत्याशी द्वारा दी गई जानकारियों का ईमानदारी से विश्लेषण किया तो पूरी संभावना है कि अनेक कांग्रेस नेता जो पार्टी नाम और चिन्ह का उपयोग केवल अपने फायदे के लिए करते रहे हैं, वह बेनकाब होने से बच नहीं सकेंगे।
निगम मंडलों में ताजपोशी के लिए लाबिंग
लोकसभा चुनाव के बाद निगम- मंडलों, प्राधिकरणों में रिक्त पदों में राजनीतिक पुनर्वास की सुमबुगाहट होने लगी है। चर्चा है कि जल्दी ही उक्त पदों पर नियुक्तियां होने वाली हैं। लोकसभा चुनाव पूर्व भी ऐसी ही चर्चाएं चलीं थीं, लेकिन सियासी समीकरण प्रभावित ना हों, इसके मद्देनजर मामला टाल दिया गया था। अब जबकि विधानसभा- लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो चुकें हैं, तब इस तरह की चर्चाओं का जोर पकड़ना शुरू हो गया है। ना केवल चर्चाएं हो रहीं है,बल्कि नियुक्ति का झुनझुना पकड़ने वाले नेताओं ने भोपाल -दिल्ली तक लांबिग करना शुरू कर दिया है। भाजपा में नियुक्ति की चाहत रखने वाले नेताओं की लम्बी फेहरिश्त है, लेकिन ऐसी हसरत वह नेता भी रख रहे हैं जो चुनाव पूर्व कांगे्स का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में किसके हाथ अंगूर लगेंगे और किसको लंगूर बनना पड़ेगा, इसका पता तो भविष्य में ही लगेगा, मगर नियुक्ति सूची में अपना नाम शामिल करवाने के लिए नेता अपने आकाओं के दरबार में नित्य हाजिरी बजाते देखे जा रहे हैं।