कोलकाता, 12 मार्च (वार्ता) भारतीय रियल एस्टेट क्षेत्र के लिए वर्ष 2024 एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिसमें देशभर में भूमि अधिग्रहण में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई और इस क्षेत्र के विकास के लिए 62 हजार करोड़ रुपये के निवेश की आवश्यकता है।
जेएलएल के मुख्य अर्थशास्त्री और अनुसंधान प्रमुख सामंतक दास ने कहा कि भारत के 23 प्रमुख शहरों में 134 लेन-देन के माध्यम से 2335 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई, जिसका कुल मूल्य 39 हजार 742 करोड़ रुपये आंका गया। यह अधिग्रहण 19.4 करोड़ वर्ग फुट के संभावित रियल एस्टेट विकास की नींव रखता है।
श्री दास ने कहा कि टियर I शहरों में कुल भूमि अधिग्रहण का 72 प्रतिशत हुआ जबकि टियर II और III शहरों ने 28 प्रतिशत की महत्वपूर्ण हिस्सेदारी दर्ज की, जो 662 एकड़ भूमि के बराबर है। नागपुर, वाराणसी, इंदौर, वृंदावन और लुधियाना जैसे उभरते शहर रियल एस्टेट निवेश के नए केंद्र बनकर उभरे हैं। इस प्रवृत्ति से संकेत मिलता है कि रियल एस्टेट विकास अब पारंपरिक महानगरों तक सीमित नहीं रहा बल्कि अधिक संतुलित शहरी विकास की ओर बढ़ रहा है।
मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन (एमएमआर) ने वर्ष 2024 में सबसे अधिक 407 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया, जो कुल लेनदेन का 17 प्रतिशत है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 36 लेनदेन के साथ सबसे अधिक सौदे हुए, जिनमें गुरुग्राम (21), नोएडा (14) और गाजियाबाद (एक) प्रमुख हैं। प्रति एकड़ भूमि की लागत वर्ष 2022 में 11 करोड़ रुपये से बढ़कर 2024 में 17 करोड़ रुपये हो गई, जो इस क्षेत्र में बढ़ती मांग को दर्शाता है।
अधिग्रहीत भूमि का 81 प्रतिशत प्रस्तावित आवासीय विकास के लिए निर्धारित किया गया है, जिससे 15.8 करोड़ वर्ग फुट की नई आवासीय क्षमता विकसित होगी। औद्योगिक, वेयरहाउसिंग, कार्यालय, खुदरा और आतिथ्य क्षेत्रों की तुलना में डेवलपर की प्राथमिकता आवासीय परियोजनाओं पर अधिक केंद्रित रही।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा नीतिगत दरों में कटौती और केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को दिए गए प्रोत्साहन से आवासीय मांग में और वृद्धि होने की संभावना है। जेएलएल के अनुसार, यह बदलाव न केवल रियल एस्टेट क्षेत्र में तेजी का संकेत देता है बल्कि देशभर में विकसित हो रहे नए शहरी केंद्रों की बढ़ती क्षमता को भी दर्शाता है।