इंद्र-इंद्राणी व कुबेर के साथ चक्रवर्ती निकले दिग्विजयी यात्रा पर

सजेधजे दिव्य रथों पर सवार थीं समवशरण की विभूतियां, स्वागत वंदन के लिए उमड़ा शहर

भक्तिगीतों पर खूब थिरके बालिका, महिला व युवा मंडलों के सदस्य

ग्वालियर: आकर्षक ढंग से सजे धजे करीब आधा दर्जन दिव्य रथों पर सवार विशिष्ट वेशभूषा वाले चक्रवर्ती, सौधर्म इंद्र-इंद्राणी, धनपति कुबेर और यज्ञ महानायक। इनके आगे चल रहे जिनशासन का ध्वज थामे दो सुसज्जित अश्वों पर सवार ध्वजवाहक। प्रत्येक रथ के आगे भक्तिगीतों पर मनोरम नृत्य कर रहे बालिका मण्डल, महिला मण्डल एवं युवा मण्डल के उत्साही सदस्य। इस ऐतिहासिक नयनाभिराम दृश्य को देखने के लिए सड़कों पर जो जहां था, वहीं थम गया।

ग्वालियर महानगर की सड़कों पर कुछ ऐसे ही दृश्य देखने को मिले आज दोपहर निकली चक्रवर्ती की दिग्विजयी यात्रा में। विद्याधाम में आर्यिकारत्न माँ पूर्णमति के ससंघ सानिध्य में चल रहे 24 तीर्थंकर भगवान के धर्मचक्र समवशरण विधान के आज चतुर्थ दिन चक्रवर्ती की दिग्विजयी यात्रा उपनगर मुरार के बारादरी चौराहा से बैंड बाजों के साथ प्रारंभ हुई। इस यात्रा ने नगर भर का भ्रमण किया। विभिन्न सामाजिक संगठनों व धर्मप्रेमीजनों ने पुष्पवर्षा कर एवं श्रावकों को जलपान कराकर यात्रा का हदयग्राही स्वागत वंदन किया। यात्रा के अभिनंदन के लिए विभिन्न बाजारों में तोरणद्वार एवं स्वागत मंच बनाये गए थे। लोगों ने घरों की बालकनियों व खिड़कियों से पुष्प फेंककर यात्रा का स्वागत किया। रथों पर सवार चक्रवर्तियों, सौधर्म इंद्र-इंद्राणियों, सौधर्म कुबेरों एवं यज्ञ महानायकों का तिलक कर एवं माल्यार्पण कर स्वागत किया।
धर्मध्वजाओं से जिनशासन मय हुआ शहर, महिलाओं ने किया गरबा
वर्षायोग कमेटी के मीडिया प्रभारी ललित जैन ने बताया कि प्रतिष्ठाचार्य ब्र. नितिन भैया के निर्देशन में निकली दिग्विजयी यात्रा में दिव्य रथों पर समवशरण के चक्रवर्ती बने प्रवीण जैन, प्रदीप जैन, सौधर्म इंद्र नरेंद्र जैन, कमलकुमार जैन, कुबेर इंद्र बने इंजी. राकेश जैन, अभिषेक जैन, यज्ञ महानायक बने विजय जैन, आशीष जैन आदि सवार थे। यात्रा में पुरुष जहां श्वेत कुर्ता पाजामा, पगड़ी व टोपी पहने चल रहे थे तो महिलाएं पीली साड़ी में थीं। इस दौरान सड़कों पर चारों ओर जिनशासन की ध्वज पताकाएँ ही फहरा रही थीं। सड़कों पर जिनशासन व जैन धर्म की जय, भगवान आदिनाथ, महावीर स्वामी, पार्श्वनाथ, शीतलनाथ, शांतिसागर व आचार्य विद्यासागर, मां पूर्णमति के जयकारों के उदघोष गूंजते रहे। भक्तिभाव में लीन महिलाओं ने सड़कों पर खूब गरबा किया। दिग्विजयी यात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए वापस बारादरी चौराहा पहुंचकर विसर्जित हुई। इस अवसर पर आयोजित वात्सल्य भोज के अशोक कुमार विनोद कुमार पुण्यार्जक बने।
धर्मसभा में संदेश : खुशी हो या गम, किसी को बताओ मत
इससे पूर्व विद्याधाम में आज आयोजित धर्मसभा में आर्यिकारत्न मां पूर्णमति ने सुखद जीवन जीने का संयमित पथ बताते हुए उपदेश दिया कि ज्यादा खुशी हो या गम हो, किसी को बताओ मत, शांत भाव से उस समय को व्यतीत कर दो। दुनिया को अपने बारे में जितना कम बताओगे, उतना अच्छा है। दुनिया तुम्हारी खुशियों पर नजर रखती है और गम पर नमक छिड़कती है। यह पुण्य-पाप का उदय एक दिन जाने वाला है। वचन में सरलता और जीवन में सज्जनता रखें। जिनागम के अनुसार ईर्ष्या करने वाले के पुण्य के तंतु नष्ट हो जाते हैं। माताजी ने इन पंक्तियों के जरिए अपना भाव व्यक्त किया – नफरत करके क्यों बढ़ाते हो अहमियत किसी की, माफ करके मान घटाने का तरीका भी अपनाओ ! धर्मसभा के आरंभ में गुलाबचंद की बगीची, थाटीपुर पर चलने वाली अकलम निकलम पाठशाला की मासूम बच्चियों ने संगीतमय नृत्य के साथ मंगलाचरण किया।
शांतिसागर महाराज का आचार्य पद प्रतिष्ठापन शताब्दी महोत्सव मना
बीसवीं सदी के प्रथमाचार्य चारित्र चक्रवर्ती श्री शांतिसागर जी महाराज के आचार्य पद प्रतिष्ठापन शताब्दी महोत्सव के उपलक्ष्य में आज विद्याधाम में समवशरण विधान के दौरान उनका विशेष पूजन अर्चन व अभिषेक किया गया। सौ वर्ष पूर्व आज के ही दिन श्री शांतिसागर जी आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे। इस दौरान शांतिसागर जी की विशेष स्तुति की गई व धर्मध्वजा फहराई गई।

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