इंसानियत के भी ‘ रतन ’ थे टाटा

देश के जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा का 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. रतन टाटा केवल उद्योग जगत के ही नहीं इंसानियत के भी रत्न थे. मानवता उनमें कूट-कूट कर भरी थी. सादगी की वो प्रतिमूर्ति थे. उद्योग जगत में उन्होंने वो मानदंड स्थापित किए हैं, जिन्हें पूरा करना हर किसी के बस की बात नहीं है. उन्होंने व्यक्ति गत पूंजी कमाने की बजाय पूंजी को देश के विकास और आत्मनिर्भरता का साधन माना. आमतौर पर कहा जाता है कि उद्योगपति पहले आवश्यकता उत्पन्न करते हैं, फिर मांग बढऩे पर आपूर्ति करते हैं. इसके लिए विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है लेकिन रतन टाटा ऐसे उद्योगपति थे जिन्होंने हमेशा देश की आवश्यकता को देखते हुए उत्पादन किया. देश को आत्मनिर्भर बनाने का उनका विजन टाटा परिवार का आदर्श रहा है. उनके पितामह जमशेदजी टाटा ने 1868 में टाटा समूह की शुरुआत की थी. टाटा समूह ने स्वाधीनता संघर्ष में भी बढ़-चढक़र आर्थिक सहयोग दिया. आजादी के बाद देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए टाटा समूह ने खूब प्रयास किए. रतन टाटा ने जमशेद टाटा और जेआरडी टाटा जैसे अपने महान पूर्वजों की विरासत को और समृद्ध किया. रतन टाटा की सादगी और इंसानियत के अनेक किस्से प्रचलित हैं. इनमें एक किस्सा यह है कि उन्होंने अपने वफादार डॉग के लिए इंग्लैंड में जाकर पुरस्कार लेना अस्वीकार कर दिया था. दरअसल इंग्लैंड में शाही पैलेस में उनका सम्मान होना था लेकिन उस वक्त उनके पालतू डॉगी की तबीयत खराब हो गई. ऐसे में उन्होंने इंग्लैंड जाना रद्द कर दिया. शिक्षा और अनुसंधान तथा चिकित्सा के क्षेत्र में रतन टाटा ने अभूतपूर्व योगदान दिया है. कैंसर जैसी असाध्य बीमारी के लिए उन्होंने रिसर्च सेंटर और टाटा केयर अस्पताल स्थापित किया, जहां कैंसर के गरीब मरीजों का मुफ्त में इलाज होता है. कोरोना महामारी के समय जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्योग जगत से आह्वान किया कि वो वैक्सीन के निर्माण के लिए योगदान दे, तो रतन टाटा ने तुरंत 500 करोड रुपए का चेक पीएम केयर रिलीफ फंड में अपनी ओर से दिया. इसके अलावा उनकी अध्यक्षता वाले टाटा समूह ने 1000 करोड रुपए वैक्सीन रिसर्च के लिए अलग से दिए. अत्यंत विनम्र और सादगी पसंद करने वाले रतन टाटा अपनी बेसिक इंडिका कार में चलते थे. मुंबई में उनकी नीली इंडिका आज भी मशहूर है. जबकि उन्होंने ब्रिटेन में महंगी कार बनाने वाली कंपनी अधिग्रहित की थी. यानी वो चाहते तो हर साल महंगी गाड़ी खरीद कर उसमें चल सकते थे लेकिन उन्हें आम जनता से जुडऩा पसंद था. अपने उद्योगों के विस्तार के लिए रतन टाटा ने कभी भी अनुचित तरीके से फायदे लेने की कोशिश नहीं की. इस मामले में उन्होंने उद्योग जगत में एक आदर्श स्थापित किया. इस वजह से रतन टाटा का सम्मान उद्योग जगत में अत्यधिक है. स्वाभाविक रूप से उन्हें पद्म विभूषण के सम्मान से नवाजा गया. उनके निधन के बाद महाराष्ट्र सरकार की कैबिनेट ने उन्हें भारत रत्न देने की सिफारिश एक प्रस्ताव पारित करके केंद्र सरकार को भेजी है. उन्हें भारत सरकार की ओर से भारत रत्न का पुरस्कार मिले या ना मिले लेकिन वास्तव में वो देश के रत्न थे. भारत को आत्मनिर्भर बनाने में रतन टाटा का अमूल्य योगदान है. उन्होंने धन कमाने के लिए कभी भी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया. बेहद दरियादिल इंसान रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1937 को हुआ था. वे साल 1991 से 2012 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे और इस दौरान उन्होंने बिजनेस सेक्टर में कई कीर्तिमान स्थापित करते हुए देश के सबसे पुराने कारोबारी घरानों में से एक टाटा समूह को बुलंदियों तक पहुंचाया. रतन टाटा अपने समूह से जुड़े छोटे से छोटे कर्मचारियों को भी अपना परिवार मानते और उनका ख्याल रखने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ते, इसके कई उदाहरण मौजूद हैं.

रतन टाटा को हमेशा देश के सम्मान की चिंता रहती थी.नेशन फर्स्ट उनके जेहन में हमेशा रहता था. वो बेहद स्पष्टवादिता के साथ बेबाकी से अपनी बात रखते थे. महान रतन टाटा को विनम्र श्रद्धांजलि.!

 

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