कांग्रेस को आत्म मंथन करना होगा

हरियाणा और जम्मू तथा कश्मीर विधानसभा के चुनाव परिणाम घोषित हो गए हैं. हरियाणा में भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है. जबकि जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस ने जीत दर्ज की है. इन चुनावों के परिणाम कांग्रेस को आत्म मंथन का अवसर प्रदान करते हैं. जम्मू और कश्मीर में हालांकि कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस के साथ बहुमत प्राप्त किया है लेकिन खुद कांग्रेस जहां चुनाव लड़ रही थी, वहां उसका स्ट्राइक रेट बहुत खराब है. जम्मू और कश्मीर में कांग्रेस को मुख्यत: जम्मू की सीटें मिली थीं, जो हिंदू बहुल इलाका है. जम्मू की 43 सीटों में से कांग्रेस को मात्र 7 सीटों पर संतोष करना पड़ा है. इस गठबंधन ने कश्मीर घाटी में अच्छी सफलता प्राप्त की है जहां से 47 सीटें आती हैं. कश्मीर घाटी की 47 में से 42 सीटों पर कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस को सफलता मिली है जिसमें अकेले 41 सीटों पर नेशनल कांफ्रेंस विजई हुई है. यह चुनाव से पहले से तय था कि यदि नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस की सरकार बनती है तो जम्मू तथा कश्मीर में उमर अब्दुल्ला और हरियाणा में नायब सिंह सैनी या भूपेंद्र हुड्डा में से कोई मुख्यमंत्री बनेगा. यदि हरियाणा में कांग्रेस को बहुमत मिलता तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाया जाता लेकिन अनुमानों के विपरीत यहां भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया है. भाजपा का प्रदर्शन इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि हरियाणा में पहली बार किसी पार्टी ने तीसरी बार सत्ता में वापसी की है. इसके पहले कांग्रेस लगातार दो बार सत्ता में रही थी. हरियाणा में कांग्रेस को संगठन मजबूत करने की जरूरत है. वहां पिछले 11 वर्षों से कांग्रेस जिला इकाइयों का गठन नहीं कर पाई है. संगठन की खराब हालत की वजह से ही अनुकूल माहौल होने के बावजूद पार्टी अपने पक्ष के वातावरण को परिणामों में तब्दील नहीं कर सकी. कांग्रेस की एक दिक्कत यह भी है कि वो पूरी तरह से करिश्माई नेतृत्व और नारों पर निर्भर हो गई है. कांग्रेस को गांधी परिवार के करिश्माई नेतृत्व के बल पर चुनाव लडऩे की आदत हो गई है. इस वजह से उसके कार्यकर्ता मैदान में सक्रिय नहीं रहते. हरियाणा में कांग्रेस पिछले 10 वर्षों से सत्ता में नहीं है, लेकिन स्थिति यह है कि उसके 30 में से 19 मौजूदा विधायक चुनाव हार गए. यानी विपक्षी विधायक के रूप में भी उसके जन प्रतिनिधियों ने जनता के बीच काम नहीं किया. हरियाणा में कांग्रेस पूरी तरह से परजीवी आंदोलनों के बल पर सत्ता में वापसी का सपना बुन रही थी. उसे लग रहा था कि किसान आंदोलन, पहलवानों की नाराजगी और अग्नि वीर के कारण पूर्व सैनिक और सैनिक परिवारों के गुस्से का उसे बिना कुछ किए ही लाभ मिलेगा. लेकिन हकीकत में राजनीति इस तरह नहीं की जाती. यह पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी का युग नहीं है. जब कांग्रेस अपने करिश्माई नेताओं के बल पर चुनाव जीत जाती थी. अब उसके सामने भाजपा और संघ परिवार के शक्तिशाली संगठन खड़े हैं, जिनके कार्यकर्ता वर्ष भर सक्रिय रहते हैं. कांग्रेस ने दूसरी गलती भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर आवश्यकता से अधिक निर्भर होकर की. कांग्रेस यह भूल गई कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में पार्टी हरियाणा में लगातार विधानसभा और लोकसभा चुनाव हार रही है. ऐसे में उसने सामूहिक नेतृत्व पर जोर देना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस ने सारी कमान भूपेंद्र सिंह हुड्डा के हाथों में दे दी. स्थिति यह थी कि कांग्रेस के 90 में से लगभग 77 टिकट भूपेंद्र सिंह हुड्डा को के समर्थकों को दिए गए. इससे कुमारी शैलजा और रणदीप सुरजेवाला के समर्थक नाराज हो गए. खास तौर पर कुमारी शैलजा की वजह से दलित वोटों का नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा. हरियाणा में 20 $फीसदी दलित मतदाता हैं. हरियाणा के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए गंभीर चेतावनी है. इसी तरह कश्मीर के मतदाताओं ने केंद्र शासित प्रदेश के स्टेटस को मंजूर नहीं किया है. जिस राज्य में 75 वर्ष तक 370 जैसी विशेष धारा लगी थी. उस राज्यों को एक दिन में केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया. मतदाताओं ने इसे अपना अपमान समझा. इसलिए जम्मू और कश्मीर के चुनाव परिणामों से सबक लेकर केंद्र सरकार ने जल्दी से जल्दी जम्मू और कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देना चाहिए. कुल मिलाकर चुनाव परिणाम बताते हैं कि जनता चुनावी नारों और शोर के बीच अपना फैसला करना जानती है. दोनों स्थानों पर शांतिपूर्ण मतदान हुआ. इसलिए कहा जा सकता है कि चुनाव परिणाम चाहे जो हो लेकिन जीत लोकतंत्र की हुई है.

 

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