प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने करीब दो साल पहले 2024-25 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को पाँच ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने के अपने सपने को सार्वजनिक किया था. प्रधानमंत्री के इस विजन को ध्यान में रखते हुए ही आर्थिक सर्वे तैयार किया गया, जिसमें उम्मीद जताई गई थी कि 2020-21 से लेकर 2024-25 तक भारत की अर्थव्यवस्था आठ प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ेगी. उस वक्त यह माना गया था कि जीडीपी में औसत वृद्धि दर 12 प्रतिशत के आसपास होगी जबकि महंगाई की दर चार प्रतिशत रहेगी. इस समय भारत की अर्थव्यवस्था 2.8 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के आसपास है लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था प्रधानमंत्री की उम्मीद के अनुरूप नहीं बढ़ रही थी. इसी बीच मार्च, 2020 में कोविड संक्रमण की पहली लहर और इस साल की शुरुआत में दूसरी लहर ने भारतीय अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान पहुंचाया. हालांकि कोरोना से पहले देश की अर्थव्यवस्था की गति बहुत अच्छी थी, ऐसा भी नहीं कह सकते. सच तो यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था कोरोना संक्रमण की लहरें शुरू होने के पहले से ही सुस्ती की तरफ थीं.
देश का उद्योग व व्यवसाय जगत तमाम मुश्किलों से गुजर रहा है. कुछ नामी समूह तो पैकअप और दिवालियापन जेसे हालात तक पहुंच गए. इन्हें सरकार की तरफ से बड़ी राहत के रूप में संजीवनी की जरूरत है. संकट से घिरे टेलीकॉम सेक्टर और प्री-कोविड लेबल पर आने की मशक्कत में जुटे ऑटो सेक्टर को केंद्र सरकार द्वारा दी गई बड़ी राहत इसी सिलसिले की कड़ी है. टेलीकॉम सेक्टर के लिए नौ ढांचागत सुधारों को मंजूरी और सभी नॉन-टेलीकॉम रेवेन्यू को एजीआर से बाहर करना करना दूरसंचार कंपनियों को फिर से खड़ा कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सराहनीय कदम है. देश की चारों टेलीकॉम कंपनियों पर नजर डालें तो इस समय सर्वाधिक खस्ता हालत वोडा-आइडिया और एयरटेल की ही है. वोडा-आइडिया पर जहां स्पेक्ट्रम और एजीआर का हजारों करोड़ रुपए बकाया है वहीं एयरटेल को एजीआर बकाये के लिए राइट इश्यू से रकम जुटाने की नौबत आ गई थी. जाहिर कि सरकार की राहत के बाद इन दोनों कंपनियों को संकट से उबरने का वक्त मिल गया है. हालांकि टेलीकॉम कंपनियों में सर्वाधिक सुदृढ़ हालत रिलायंस जियो की है लेकिन अब यह कंपनी भी सरकार से मंजूरी लिए बगैर ही ऑटोमेटिक रूप से एफडीआई हासिल कर सकेगी.
कोरोना काल शुरू होने के बाद से ही मुश्किलों से घिरे ऑटो सेक्टर पर भी सरकार मेहरबान नजर आती है. इस सेक्टर को दिया गया 26 हजार करोड़ का पैकेज कोई मामूली नहीं है, जाहिर है कि इससे ऑटोमोबाइल को तगड़ा बूस्ट मिलेगा. इस पैकेज के दो दोहरे फायदे अलग हैं, जहां 7.60 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा, वहीं विदेशी निवेश भी बढ़ेगा. जाहिर है कि सरकार के ये राहतभरे कदम देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती के रास्ते पर ले जाएंगे. हम खुली आँखों से यह यथार्थपूर्ण स्वप्न तो देख ही सकते हैं कि हमारा देश 2025 के पहले ही जर्मनी को पछाडक़र अमेरिका, चीन और जापान के बाद चौथे नंबर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा.