नरीमन की ‘आवाज’ राष्ट्रीय चेतना का प्रतिनिधित्व करती थी-न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

नयी दिल्ली, (वार्ता) उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने प्रख्यात न्यायविद् फली एस नरीमन के सम्मान में गुरुवार को उच्चतम न्यायालय में आयोजित एक ‘फुल-कोर्ट रेफरेंस’ (सभी न्यायधीशों की मौजूदगी) उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हुए उनकी ‘आवाज’ को राष्ट्र की चेतना का प्रतिनिधित्व करने वाला बताया और कहा कि वह सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ताओं में से एक थे।

प्रख्यात न्यायविद् नरीमन का इस वर्ष 21 फरवरी को निधन हो गया।

वर्ष 1929 में बर्मा में जन्मे श्री नरीमन शीर्ष अदालत के कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा थे। कानूनी क्षेत्र में उनके योगदान के लिए उन्हें 1991 में पद्म भूषण और 2007 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

मुख्य न्यायाधीश ने उन्हें याद करते हुए कहा, ‘मुश्किल समय में जब कई आवाजें खामोश हो गईं, तब फली एस नरीमन की गूंजती आवाज अदालत की दीवारों के अंदर और उसके बाहर भी गूंजती थी। उनकी आवाज राष्ट्र की चेतना का प्रतिनिधित्व करती थी।’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि एक नैतिक व्यक्ति की अंतिम परीक्षा न्याय के लिए आवाज उठाने की उनकी इच्छा है। नरीमन हमेशा सही बात के लिए बोलने को तैयार रहते थे।

उन्होंने कहा कि जून 1975 में देश में आंतरिक आपातकाल लागू होने के साथ ही नरीमन ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद से इस्तीफा दे दिया था।

उन्होंने कहा, ‘अपने बाद के वर्षों में नरीमन अक्सर बताते थे कि कैसे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के पद से उनके इस्तीफे के बाद के दिनों उनके घर पर आने वाले लोगों की संख्या बहुत कम हो गई।’

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हालांकि, शीर्ष अदालत में उनकी निरंतर उपलब्धियां न केवल उनकी स्थायी कानूनी कौशल का प्रमाण हैं, बल्कि अपने मुवक्किलों की निरंतर बेहतरीन सेवा भी प्रमाण है।’

उन्होंने कहा, ‘मुझे विश्वसनीय रूप से यह भी सूचित किया गया है कि उनके निधन से ठीक पहले की रात तक वह आगामी संविधान के लिए एक लिखित प्रस्तुति के मसौदे को सावधानीपूर्वक काम पूरा कर रहे थे।’

उन्होंने कहा, ‘नरीमन की मानसिक चपलता, अपने काम के प्रति समर्पण और कानून के प्रति प्रतिबद्धता हमेशा बनी

रही।’ उन्होंने कहा नरीमन ने अदम्य नैतिकता, अदम्य साहस और सिद्धांत की अटूट खोज को अपनाया।

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