भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंधों की दृष्टि से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की अमेरिका यात्रा महत्वपूर्ण और सफल मानी जा रही है. इसमें प्रवासी भारतीय, कूटनीति,ड्रोन, सेमीकंडक्टर, चिप इत्यादि मामलों पर महत्वपूर्ण फैसले हुए हैं. प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के गृह नगर डेलावेयर में क्वाड शिखर सम्मेलन में भाग लिया. इसके अलावा प्रधानमंत्री ने न्यूयॉर्क में प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम को भी संबोधित किया, जिसमें 15000 से अधिक भारतवंशी शामिल हुए. दरअसल, प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय पर हुई है. क्योंकि अमेरिका में चुनाव का मौसम है.बहरहाल, भारत और अमेरिका के बीच संबंध महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहे है. दोनों देश इन दिनों निजी क्षेत्र के साथ ही रक्षा सहयोग में भी विस्तार कर रहे हैं.भारत अमेरिका से 31 प्रिडेटर ड्रोंस खरीद रहा है. प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा के दौरान गूगल के सुंदर पिचाई, एनवीडिया के जेनसन हुवांग और एडोबी एएमडी और आईबीएम के सीईओ सहित 15 मेगा टेक एग्जीक्यूटिव्स समूह से मुलाकात की. यह टेक कंपनियां भारत में विस्तार करना चाहती हैं.प्रधानमंत्री ने अमेरिकी उद्योगपतियों को आश्वस्त किया कि चिप और सेमीकंडक्टर की दौड़ में हम एक विश्वसनीय और भरोसेमंद खिलाड़ी साबित होंगे. प्रधानमंत्री ने स्वाभाविक रूप से भारत और अमेरिका के बीच के संबंधों को वैश्विक हितों के लिए एक ताकत के रूप में प्रस्तुत किया है. यह एक अच्छी कूटनीति है. इसके अलावा प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के मुद्दे पर क्वाड के शिखर सम्मेलन में बेहद महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए. ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण संतुलन के मामले में भी भारत ने अग्रणी भूमिका निभाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यह यात्रा यूक्रेन और रूस की यात्राओं के बाद हो रही थी. इसलिए सारी दुनिया की निगाहें इस पर थी. इस यात्रा का सबसे बड़ा फलित यही है कि भारत और अमेरिका के बीच के रिश्ते परिपक्वता और लचीलेपन के साथ आगे बढ़ रहे हैं. खास बात यह है कि दोनों देशों ने एक दूसरे पर भरोसा जताया है. कुछ मुद्दे हैं जिन पर भारत को दिक्कत है, तो कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर अमेरिका को आपत्तियां हैं, लेकिन ये मुद्दे बहुत गंभीर नहीं हैं. नरेंद्र मोदी और जो बाइडेन ने सेमीकंडक्टर,रक्षा उत्पादों और आपूर्ति श्रृंखलाओं जैसी राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताओं पर चर्चा की. दोनों देशों का फोकस चीन के कारण निर्मित हुई एक अदूरदर्शी साझेदारी पर नहीं बल्कि दीर्घकालिक संबंधों पर है. पिछले 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन संबंधों के लिए बहुत प्रयास किया है.प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की ये नौवीं अमेरिका यात्रा थी.ऐसा लगता है कि भारत और अमेरिका के रिश्तों में अब एक निरंतरता आ गई है. यह बहुत ही महत्वपूर्ण और स्वागत योग्य है.खास तौर पर प्रधानमंत्री ने भारत की संतुलित कूटनीति का बेहतरीन नमूना प्रस्तुत किया है. एक तरफ उन्होंने जहां रूस और ईरान जैसे सहयोगी देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूत किया है, तो दूसरी तरफ अमेरिका और यूक्रेन को भी अपना भरोसेमंद साथी बताया है. दरअसल विश्व मंच पर भारत एक शक्तिशाली और विश्वसनीय सहयोगी के रूप में प्रस्तुत हुआ है. भारत ने अपनी चतुराई पूर्ण कूटनीति के बल पर चीन को अलग-अलग करने में भी सफलता प्राप्त की है. आज भारत की आवाज चीन और पाकिस्तान की तुलना में अधिक विश्वसनीयता और गंभीरता से सुनी जाती है. जाहिर है प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा को पूरी तरह सफल और महत्वपूर्ण माना जाएगा.