नयी दिल्ली(वार्ता) निर्देशक डॉ सलिल कुलकर्णी के निर्देशन में बनी ‘एकदा काय झाला’ फिल्म को 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में चयनित किया गया है।
मराठी भाषा में बच्चों को सोने के समय सुनाई जाने वाली कहानियां अक्सर ‘एकदा काय झाला’ वाक्यांश से शुरू होती हैं।
इस वाक्यांश का अर्थ ‘एक समय की बात है’।
‘एकदा काय झाला’ फिल्म शनिवार को गोवा में 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की भारतीय पैनोरमा फीचर फिल्म श्रेणी में प्रदर्शित की गई।
यह फिल्म एक ऐसे व्यक्ति के बारे में है, जो एक अनोखा स्कूल चलाता है।उसका मानना है कि एक कहानी इस दुनिया के किसी भी विचार को व्यक्त कर सकती है, चाहे वह कितना ही बड़ा या छोटा क्यों न हो।
वह अपने स्कूल, जहां उसका पुत्र भी पढ़ता है, में सभी विषयों को पढ़ाने के क्रम में कहानियों का प्रयोग करता है।
जब उसे अपने जीवन में एक कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़ता है और इसके बारे में अपने पुत्र को बताना होता है, तो वह कहानियों का उपयोग करने के दर्शन का सहारा लेता है।
इस फिल्म के संगीतकार, लेखक और निर्देशक डॉ सलिल कुलकर्णी ने 53वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के मौके पर आयोजित ‘वार्ता सत्र’ में मीडिया और इस महोत्सव में शामिल प्रतिनिधियों के साथ बातचीत में कहा, “वयस्क लोग अक्सर बच्चों को बताई जा रही बातों पर उनकी प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित रहते हैं।
अगर खुद वयस्कों को ही किसी स्थिति से निपटने में कठिनाई हो रही हो, तो उसके बारे में बच्चों को अवगत कराना विशेष रूप से कठिन हो जाता है।
इस फिल्म के माध्यम से मैंने यह पता लगाने की कोशिश की है कि कैसे अच्छी और बुरी दोनों तरह की खबरों को बच्चों के साथ विनम्रता पूर्ण और कोमल तरीके से साझा किया जा सकता है।”
आईएफएफआई 53 में फिल्म के चयन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि फिल्म के अंत में दर्शकों की आंखों में आंसू देखकर वे बहुत भावुक हो गए थे।
उन्होंने स्क्रीनिंग के अनुभव की तुलना लता मंगेशकर के गायन की रिकॉर्डिंग के अनुभव से करते हुए कहा कि दोनों अवसरों पर वे समान रूप से अभिभूत थे।
निर्देशक कुलकर्णी ने कहा कि इस फिल्म में संगीत का चयन करना एक बहुत ही अलग अनुभव रहा, क्योंकि उन्हें पता था कि गानों को कैसे शूट किया जाना है।
निर्देशक द्वारा अपने कलाकारों को चुनने के प्रयासों पर, डॉ. कुलकर्णी ने कहा कि उन्होंने फिल्म में बच्चे, चिंतन की भूमिका निभाने वाले अर्जुन पूर्णापात्रे को चुनने से पहले 17सौ से अधिक बच्चों का ऑडिशन लिया था।
सुमित राघवन ने पिता की और उर्मिला कानेतकर कोठारे ने मां की भूमिका निभाई है।
अभिनेता सुमित राघवन ने कहा,“मैंने हमेशा यही महसूस किया है कि एक अभिनेता की व्यक्तिगत जिंदगी सीमित होती है और मैं अपने काम को लेकर धैर्य रखने में ही विश्वास रखता हूं।” उन्होंने कहा कि ऐसी फिल्मों में किसी भूमिका को निभाना उसी विश्वास को मजबूत करता है।