मृगनयनी एंपोरियम में की शिल्पकारों से बातचीत
गोंडी चित्रकार और जनजातीय कलाकार के साथ खिंचाया फोटो
नवभारत न्यूज
इंदौर। महामहिम राष्ट्रपति मोहदया द्रोपदी मुर्मू आज दो दिवसीय दौरे पर दोपहर में तय समय 3.30 बजे इंदौर पहुंची। एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति की अगवानी प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल और मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने की। इसके बाद एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति का विशिष्ठ जन और वरिष्ठ अधिकारियों ने अभिवादन किया ।
महामहिम राष्ट्रपति अहिल्या बाई होलकर के जमाने से वस्त्र शिल्प और कारीगरों से बातचीत करने सीधे मृगनयनी एंपोरियम पहुंची। वहां राष्ट्रपति को एंपोरियम के राहुल जगताप ने महेश्वरी, बाग और चंदेरी साड़ी के विशेष कलेक्शन के विषय में बताया। राष्ट्रपति को बताया गया कि अहिल्या बाई होलकर अपने राज में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए जागरूक किया था और आज महेश्वरी और बाग प्रिंट पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।
मृगनयनी एंपोरियम में राष्ट्रपति मोहदाया ने वस्त्र शिल्कारों और कारीगरों से पूछा कि कपड़ा और उस पर प्रिंट कैसे और किस तरह करते है ? कारीगरों से छापे और सिल्क तक अलग अलग साड़ी की डिजाइन तैयार करने विधि समझी। पुराने समय में धागे बुनकर कपड़ा तैयार होता था , लेकिन अब सिल्क का काम भी इसमें किया जाने लगा , जिससे महेश्वरी साड़ी की खूबसूरती और मांग बढ़ गई है।
यह पहला मौका है जब किसी राष्ट्रपति ने प्रदेश के वस्त्र शिल्पकारों और कारीगरों से अहिल्याबाई होलकर के जमाने स्थापित बुनकर और हथकरघा निर्मित साड़ी को लेकर बात की। इस दौरान बाग प्रिंट के इस्तेमाल में दाना और बाना में कॉटन के काम के बाद बाग प्रिंट ( आदिवासी प्रिंट ) को उकेरा जाता है। अब यह दुनियाभर में क्रेप और शिफॉन के रूप प्रसिद्ध है।
मृगनयनी एंपोरियम में कारीगरों के साथ संवाद के बाद राष्ट्रपति को महेश्वरी और बाग प्रिंट की साड़ी भेंट की गई।
गोंडी चित्रकार आदिवासी कलाकार के साथ खिंचाया फोटो
महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू गोंडी चित्रकार दुर्गाबाई व्याम के द्वारा बनाए चित्र को देखकर प्रभावित हुई और उसके बनाएं चित्र के साथ फोटो खिंचाने का कहा। इसके बाद एंपोरियम में आगे बढ़ते हुए झाबुआ के कलाकार परमार दंपत्ति द्वारा आदिवासी प्रतीक चिन्ह भेंट करने पर उनके साथ भी फोटो खिंचवाया।
महामहिम राष्ट्रपति ने एंपोरियम में महेश्वरी साड़ीयों का कलेक्शन और उनकी खासियत पूछी । सिल्क और कॉटन की साड़ी कितने दिन और समय में तैयार हो जाती है। साथ ही इनको बनाने वाले शिल्पकारों और कारीगरों से पूछा ये काम कब से कर रहे है। शिल्पकारों ने बड़ताया पीढ़ी दर पीढ़ी से इस काम को कर रहे है। अभी 70 कारीगरों के साथ यह काम चल रहा है।