भाजपा की ग्रामीण राजनीति में तेज हलचल

सियासत

भाजपा की ग्रामीण राजनीति में इन दोनों कुछ ज्यादा ही सरगर्मी है. इसका कारण यह है कि सदस्यता अभियान समाप्त होने के बाद संगठन चुनाव की प्रक्रिया होगी. इसके अलावा मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की सरकार सहकारिता और कृषि उपज मंडी चुनाव कराने की तैयारी कर रही है. सहकारिता चुनाव और सहकारिता स्ट्रख्र को लेकर हाल ही में मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने केंद्रीय गृह और सहकारिता मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. भाजपा सहकारी समितियां और कृषि उपज मंडी के माध्यम से ग्रामीण अंचल में अपनी जड़ें और मजबूत करना चाहती है. इंदौर ग्रामीण की बात करें तो संगठन चुनाव में यहां पूर्व मंत्री उषा ठाकुर, विधायक मनोज पटेल और सुमित्रा ताई के समर्थक एकजुटता के साथ इस बात के लिए प्रयास करेंगे कि कैलाश विजयवर्गीय के कट्टर समर्थक चिंटू वर्मा फिर से ग्रामीण भाजपा जिला अध्यक्ष ना बन पाएं.

ग्रामीण क्षेत्र में कैलाश विजयवर्गीय के समर्थकों में सबसे ज्यादा मुखर पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार हैं. उनके अलावा विशाल पटेल जैसे नेता भी कैलाश विजयवर्गीय की छत्रछाया में राजनीति करना चाहते हैं. कुल मिलाकर भाजपा की  ग्रामीण राजनीति में बेहद घमासान मचा हुआ है. इधर जो संकेत हैं उसके अनुसार मानसून सीजन समाप्त होने के बाद प्रदेश में मंडी समितियों के सात वर्ष बाद चुनाव कराए जाएंगे. इनसे लाखों किसान जुड़े हुए हैं और वर्तमान में अधिकारी प्रशासक के तौर पर काम देख रहे हैं. किसी भी स्थिति में इनकी अवधि दो वर्ष से अधिक नहीं रखी जा सकती है. इसको लेकर हाईकोर्ट में याचिका भी लग चुकी है. यही स्थिति सहकारी समितियों की भी है. इनके भी चुनाव मानसून सीजन के बाद कराने की तैयारी है पर पहले अधिकारियों के स्थान पर किसानों के प्रतिनिधियों को प्रशासक मनोनीत किया जाएगा.

सीएम चाहते हैं कि चुनाव हों
सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री मोहन यादव की मंशा है कि समितियों के चुनाव हों ताकि निर्वाचित जनप्रतिनिधि संस्थाओं का संचालन करें. वे ही स्थानीय आवश्यकताओं को देखकर नीतियां भी बनाएं. इसे ध्यान में रखते हुए सहकारिता और कृषि विभाग ने चुनाव की तैयारियां प्रारंभ की हैं. मानसून सीजन के बाद 259 कृषि उपज मंडी समितियों के चुनाव कराए जाएंगे. ये चुनाव 2017 में हो जाने चाहिए थे लेकिन विधानसभा चुनाव का हवाला देते हुए इन्हें टाल दिया गया।जनवरी 2019 में समितियां को भंग कर दिया गया, तब से प्रशासनिक अधिकारी मंडियों के प्रशासक बने हुए हैं. जबकि, स्पष्ट प्रावधान है कि समिति का कार्यकाल छह-छह माह करके दो बार बढ़ाया जा सकता है लेकिन चुनाव लगातार टाले जाते रहे. यही स्थिति सहकारी समितियों के भी है. यहां भी अधिकारी ही प्रशासक बने हुए हैं. सूत्रों का कहना है कि पहले प्रशासक सहकारिता से जुड़े व्यक्तियों को बनाया जाएगा. इनकी अगुआई में ही चुनाव कराए जाएंगे

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