पं0 नेहरू के प्रिय बच्चों का बचपन आज भी खप रहा होटल,ढावों एवं कचरे के ढेर में

आज बाल दिवस पर विशेष- द्वारा सुरेश पाण्डेय

पन्ना:आज पूरा देश के प्रथम प्रधानमंत्री चाचा नेहरू का जन्म दिवस बाल दिवस के रूप में मनाने जा रहा है वहीं आज पन्ना जिले में उन हजारों बच्चों को पता तक नही है कि बाल दिवस आखिर है क्या एवं क्यों मनाया जाता है क्योंकि भले ही शिक्षा का अधिकार कानून लागू हेा गया है लेकिन आज भी सैकड़ों बच्चें पूरे जिले में शिक्षा संे वंचित हैं क्योंकि उनका काम ही पूरे दिन होटल ढावों में बर्तन धोना एवं कुछ का कचरे में कबाड़ बीनना और फिर उसके द्वारा प्राप्त पैसे से माता पिता के साथ सहयोग कर पेट की भूंख मिटाना ही जिन्दगी की दिनचर्या बन गयी है।

भले ही सरकार ने इनके लिए कई योजनाएं बनायीं हैं लेकिन विभागीय एवं प्रशासनिक अमले की भ्रष्ट नियत एंव अकर्मण्यता के चलते इन्हें उन योजनाओं का कोई लाभ नही मिल पा रहा है यहां तक उन नौनिहालों एवं उनके माता पिता तक को उन योजनाओं की जानकारी तक नही है। कहते है कि जवानी जितनी खूबसूरत होती है उससे भी खूबसूरत हमारा बचपन होता है। राग, द्वेष, लोभ, हिंसा, कटुता से परे बचपन मनुष्य के जीवन का ऐसा समय होता है जिसे मानव मृत्यु पर्यन्त भूल नही सकता। भारत के पहले प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू बच्चों से बेहद मुहब्बत किया करते थे और बच्चे भी उन्हें चाचा नेहरू कहकर पुकारते थे।

गरीब और शारीरिक रूप से कमजोर बच्चो को देखकर एक बार उन्होने कहा था जिस देश के भावी कर्णधारों के चेहरे मुरझाए हुए और कंधांे पर गरीबी के बोझ हो वे अपने देश का भार अपने कंधों पर कैसे उठा पाएगे। आज के बच्चे कल के भावी नागरिक है। इस अवधारणा को ध्यान मे रखते हुए हर वर्ष 14 नवम्बर को भारत के पहले प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिवस पर सरकारी स्तर पर बाल दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर मनाए जाने की परंपरा चली आ रही है।

गरीब बच्चों की प्रमुख समस्या:- देश आर्थिक प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हैं बावजूद इसके गरीबी कम नहंी हुई है। गरीबी के कारण ही करोड़ों बच्चे प्राथमिक शिक्षा से भी बंचित है। हम आजादी मिलने के 73 साल बाद भी सभी बच्चों को उनकी बुनियादी आवश्यकतायें जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य उपलब्ध सुविधाएं नहीं करा पाए है। यह हमारी सबसे बडी नाकामी है। इन सब योजनाओं के सफल क्रियान्वयन एवं खाउ कमाउ नियत के चलते सारे प्रयास निरर्थक साबित हो रहे हैं।
देश में करोड़ों की संख्या है बाल श्रमिकों की:- विभिन्न एजेंसियों के सर्वे से यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि पूरे देश में बाल श्रमिकों की संख्या करोड़ों में है पन्ना जिले में भी यह संख्या हजारों में है। गरीबी के कारण ही खेलने कूदने के दिनों के सात करोड़ बच्चे मजदूरी कर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करने केा मजबूर है। बाल श्रम निरोधक कानून कागजों तक सीमित होकर रह गया है। यह बात तय है कि जब तक देश से गरीबी दूर नहीं होगी गरीब नौनिहालों का भविष्य भी नहीं सुधरेगा।
नहीं पता क्या होता बालदिवस:- कल पूरा देश चाचा नेहरू का जन्मदिवस मनाएगा वहीं कचरे के ढेर में ही अपना जीवन यापन करने वाले नौनिहालों यह पता तक नही रहता है कि आखिर बालदिवस है क्या क्योंकि वे न तो स्कूल जाते और ना ही उन्हें घर में कोई बताता कि आखिर बाल दिवस क्यों मनाया जाता है और क्या है। इस प्रकार से केवल बन्द कमरे में बैठकर लच्छेदार भांषण देकर बाल दिवस मनाकर कर्तव्यों की इतिश्री मात्र कर लेने मात्र क्या बाल दिवस की सार्थकता सिद्ध हो जावेगी यह चिन्तन करने की बात है।
क्या ऐसे ही दौड़ेगी जिंदगी:- इन मासूम बच्चों को शुरू से ही शिक्षा दी गई कि भीख मांगना है और ये उसी काम धंधे पर लग गये थोडे बडे होगें पिता के साथ जादू एवं करतब दिखायेगें और भविष्य मे इनके बच्चे भी इसी तरह काम करेगे। क्या इनकी जिंदगी की गाडी इसी तरह दौडेगी उसमें बदलाव नहीं आयेगे। शासन इनके उत्थान के लिए कोई प्रयास नही करेगी। राजदीप जैसे हादसे अक्सर होते रहेगे। ऐसे कई प्रश्न है जो उत्तर की बाट जोह रहे है पर लाने के लिए बच्चो का भविष्य संवारना होगा अन्यथा गरीबी भुखमरी आने वाले समय में और बढ जायेेगी। चाचा नेहरू के सारे सपने बिखरकर रह जायेगे।

नव भारत न्यूज

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