हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए जारी किये आदेश
जबलपुर। माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक के भारण-पोषण अधिकार के तहत मॉ के लिए निर्धारित की गयी राशि के आदेश को चुनौती देते हुए बेटे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता के बेटे की तरफ से तर्क दिया गया था कि मॉ ने अपनी सम्पत्ति तीनों बेटे के नाम पर कर दी है और सम्पति में उसे कोई हिस्सा नहीं दिया गया है। जस्टिस जी एस अहलूवालिया की एकलपीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि संपत्ति नहीं मिलने पर बच्चों का कर्तव्य है कि माता-पिता का भरण-पोषण करें।
नरसिंहपुर निवासी गोविंद लोधी की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि उसकी मॉ हल्की बाई ने माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक के भरण-पोषण अधिकार 2007 के तहत एसडीएम के समक्ष आवेदन दायर किया था। एसडीएम ने चारों बेटों को तीन-तीन हजार रुपये देने के आदेश जारी किए थे। जिसके खिलाफ उसने अपील दायर की थी। अपील की सुनवाई करते हुए अपर कलेक्टर ने भरण-पोषण की राशि घटाकर दो-दो हजार रुपये कर दी थी।
याचिकाकर्ता की तरफ से तर्क दिया गया कि मॉ ने एसडीएम के समक्ष दायर आवेदन में कहा था कि बेटे ने भरण-पोषण का आश्वासन दिया था। जिसके कारण उसने अपनी सम्पत्ति अलग-अलग विक्रय-पत्र निष्पादित कर दी थी। बेटो द्वारा भरण-पोषण नहीं किये जाने के कारण उक्त आवेदन दायर किया है। मॉ ने अपने आठ एकड़ जमीन में से उसे एक टुकड़ा भी नहीं दिया था। इसलिए उसे भरण-पोषण के दायित्व से मुक्त किया जायेे। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने का भी उल्लेख किया था।
एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा है कि माता-पिता को भरण-पोषण के भुगतान की बात इस बात पर निर्भर नहीं है कि बच्चों को कितनी संपत्ति दी गई है। बच्चों का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता का भरण-पोषण करें। याचिकाकर्ता भूमि के असामान्य वितरण से व्यथित है, तो सिविल मुकदमा दायर कर सकता है। वह अपनी मां को भरण-पोषण राशि के भुगतान दायित्व से भाग नहीं सकता है।