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दमोह.आज गोवर्धन पर्वत, बांदकपुर पर श्री गणेश स्थापना के तीसरे दिन गोबर से निर्मित गणेश जी का शृंगार पारिजात के पत्तों से किया गया.जो शुद्धता, सकारात्मकता और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है. श्री गणेश स्थापना के तीसरे दिन, गोवर्धन पर्वत (बांदकपुर) पर हमने गोबर से निर्मित भगवान गणेश की प्रतिमा का शृंगार पवित्र पारिजात के पत्तों से किया. इस पर्वत पर होने वाला यह आयोजन प्रकृति और गौ संरक्षण की गहरी परंपराओं को समर्पित है. गोबर से बनाई गई गणेश जी की मूर्ति पर्यावरण-संरक्षण के प्रति हमारी आस्था को दर्शाती है. जो शुद्धता और प्राकृतिक जीवनशैली का प्रतीक है.गोवर्धन पर्वत, श्रीकृष्ण के गौ संरक्षण के संदेश का प्रतीक होने के कारण, इस उत्सव को और भी विशेष बनाता है, जो हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने की प्रेरणा देता है. गणेश जी का श्रृंगार पारिजात के पत्तों से किया गया, जो हिंदू धर्म में बेहद पूजनीय और शुभ माने जाते हैं. इसे ‘हरसिंगार’ भी कहा जाता है, और यह पौधा भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी से जुड़ा हुआ है. पारिजात के पत्ते न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि इनका औषधीय महत्व भी है. ये पत्ते शांति, सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं, जो न केवल शरीर के लिए बल्कि मन के लिए भी लाभकारी होते हैं. तीसरे दिन का यह श्रृंगार इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति से हमें न केवल आध्यात्मिक शांति मिलती है, बल्कि इसका हर पहलू हमारे जीवन को संवारने में सहायक होता है. पारिजात के पत्तों का उपयोग हमारे जीवन में सकारात्मकता, शांति और समृद्धि लाने का संदेश देता है. यह उत्सव प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारियों को समझने और निभाने का अवसर है, जो परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम है.