नवभारत
देवास।पूरे देश में कृषि उत्पादन सोयाबीन फसल को लेकर हल्ला मचा हुआ है। किसान इस फसल को खर्च अधिक मुनाफा कम की बात कर खेती को घाटे का सौदा बताते हुए चर्चा कर रहे हैं।। और सोयाबीन का समर्थन मूल्य₹7000 तक करने के लिए सरकार से संवाद बना रहे हैं। पहले भी खरीब फसल में कुछ फसल फायदे का सौदा रहती थी। जैसे मूंगफली, उड़द ,ज्वार, एवं मक्का लेकिन जब से सोयाबीन फसल ने खरीफ फसल के में अपना कब्जा जमाया है। तब से किसान इस फसल को उत्पादन करते हुए अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं। हाल ही में केंद्र सरकार ने 50 से अधिक कृषि उत्पादन की समर्थन मूल्य सूची जारी की है। इस सूची में सोयाबीन फसल का समर्थन मूल्य नहीं है। वर्तमान में भी इसकी कीमत ₹4000 प्रति क्विंटल से अधिक नहीं है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी किसानों ने विशेष कर मध्य प्रदेश महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश उत्तर प्रदेश एवं गुजरात में सोयाबीन फसल पर दाव लगाया है। लेकिन समर्थन मूल्य नहीं मिलने से किस को अपना भविष्य घाटे का दिखाई दे रहा है। यह बात सही है कृषि उत्पादन तो बहुत कम बड़ा है। लेकिन खर्च विगत 30 वर्ष की तुलना में तीन गुना अधिक बढ़ गया है। अब समय आ गया है कि खरीफ फसल में सोयाबीन फसल किसानों को छोड़ना होगी तथा इसके स्थान पर अन्य उपाय खोजने होंगे। हालांकि केंद्र सरकार ने खरीब फसल में शामिल मक्का ज्वार उड़द को बड़ी हुई एम एस पी में शामिल कर लिया है। पहले अधिकतर कृषक गन्ना मूंगफली उड़द सन फ्लावर तील्ली अरहर फसल का उत्पादन करते थे ।तब किसानों को घाटा नहीं होता था । इनमें अधिकतर फसल ऐसी रहती थी जिसे किसान परिवार स्वयं संभाल लेते थे। हालांकि यह फसल अभी भी महंगे दाम पर बिकती है ।यदि किसान इसे रुचि लेकर लगाए तो खरीफ फसल में उसे घाटा नहीं होगा। और भारत सोयाबीन की अपेक्षा मूंगफली तिल्ली और सूरजमुखी फसल से तिलहन उत्पादन में भी आत्मनिर्भर होगा। फसल चक्र बदलने के पक्षधर कृषि विभाग के वैज्ञानिक भी है। आगर कृषि विज्ञान केंद्र से जुड़े वरिष्ठ वैज्ञानिक अशोक कुमार दीक्षित बताते हैं। कि किसानों का रुझान सोयाबीन फसल की ओर अधिक होने से यह दिक्कत आ रही है। किसानों ने अब अन्य फसल में शामिल उड़द मूंगफली मूंग सूरजमुखी मक्का आदि से मुंह मोड़ लिया है। यह फसल कम खर्च की होकर बेहतर उत्पादन वाली फैसले रहती है। लेकिन किसान ट्रैक्टर से बोलने वाली फसल ट्रैक्टर से काटने वाली फसल और ट्रैक्टर से ही निकलने वाली फसलों पर अधिक भरोसा करते हैं जिससे खर्च लागत बढ़ रही है। कदं फसल अदरक भी बारिश की ही फसल रहती है। लेकिन उसे भी धीरे-धीरे जानकारी रहे हैं और बाजार में उसकी कीमत भी बढ़ती जा रही है। इसी प्रकार अरहर की फसल लाभ का सौदा साबित हो सकती है लेकिन उसे लगना किसान पसंद नहीं करते कारण है कि वह 120 दिन से अधिक की अवधि वाली फसल रहती है। कम अवधि के चक्कर में सोयाबीन लगाकर किसान अपने आप को घाटा दे रहा है।