सुरेश पाण्डेय
पन्ना:हीरो व भव्य, दिव्य मंदिरों की नगरी पन्ना स्थित भगवान श्री जुगुल किशोर जी मंदिर में आज 26 अगस्त को मथुरा, वृंदावन एवं गोकुल की तर्ज पर भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्मोत्सव मनाया जाएगा. जिसमें लाखो की संख्या में श्रद्धालु श्री किशोर जी के दर्शन हेतु आएंगे. जिसको लेकर प्रशासनिक एवं मंदिर कमेटी की तरफ से सभी तैयारियां पूर्ण की जा चुकी है. भगवान श्री जुगुल किशोर जी मंदिर व उसके पूरे विशाल परिसर को आकर्षक तरीके से सजाया व संवारा गया है जिसकी छटा देखते ही बनती है.भगवान श्री युगल किशोर जी की विशेष पोशाक मथुरा ब्रन्दावन से तैयार होकर आ चुकी है जिसे वे आज जन्मोत्सव पर धारण करेंगे ।
कार्यक्रम के दौरान श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की परेशानी का सामना न करना पडे इसके लिए पुलिस द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इंतजाम किए गए हैं. मंदिरों की नगरी पन्ना में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के उत्सव की शुरूवात आज प्रातः सुबह से शुरू हो जाएगी. जो रात्रि ठीक 12 बजे जन्मोत्सव कार्यक्रम मनाया जाएगा। श्री जुगल किशोर मंदिर के बाह्य परिक्रमा में आंगे एवं पीछे की तरफ संकट मोचन हनुमान मंदिर एवं भगवान शंकर जी की भव्य प्रतिमाएं प्रतिस्थित हैं. उक्त मंदिर पन्ना ही नहीं संपूर्ण बुन्देलखण्ड के धार्मिक अनुष्ठानों का केन्द्र है. यहां आए दिन कुछ न कुछ धार्मिक आयोजन होते रहते हैं. प्रत्येक अमावश्या को कई हजार लोग भगवान के दर्शन करने समूचे बुन्देलखण्ड एवं दूर दराज से आते हैं तथा अमावश्या को मेला जैसा दिखाई देता है.
उक्त मंदिर में समय समय पर कुछ चमत्कारित घटनाएं भी पहले घट चुकी हैं. जिसके कारण पन्ना नगर को लोग जुगल किशोर जी की नगरी के नाम से भी पुकारते हैं. पन्ना के जुगल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े की ध्वनि से मंदिर गुंजायमान रहता है. भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के समय रात्रि 12 बजे भारी आतिशबाजी होती है तथा पूर्व परंपरा के अनुसार राज परिवार के सदस्य आज भी समय पर पधार कर दर्शन लाभ लेते हुए चंवर डुलाते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में प्रसाद के रूप में सिंघाड़े के आटे की पंजीरी एवं पंचामृत वितरित किया जाता है. जन्मोत्सव के दूसरे दिन मंदिर में दधिकांदो होता है इसमें लोग हल्दी मिश्रित दही मटकी में भरकर कंधे में रखकर बाहरी परिक्रमा करते हैं तथा जय कन्हैयालाल के नारे लगाते हैं तथा उक्त अवसर पर लोग खुशी में लड्डू एवं ककड़ी लुटाते हैं तथा स्त्री, पुरूष, बच्चे सभी इसे प्रसाद समझकर लूटने का प्रयास करते हैं. तथा उक्त सभी कार्यक्रम के पश्चात् पूड़ी, शजी, खीर आदि यजन तैयार कर भव्य भंडारा भी किया जाता है जिसमें हजारो लोग प्रसाद गृहण करते हैं. श्रीकृष्ण जन्मोत्सव उक्त मंदिर का सबसे प्रमुख पर्व है जिसे भारी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
पन्ना के जुगल किशोर मंदिर की महिमा निराली,श्री किशोरजी से बनी पन्ना की पहचान
: श्री युगलकिशोर जी के इतिहास पर विशेष-
पन्ना के जुगल किशोर हो मुरलिया में हीरा जड़े…… यह गीत समूचे बुंदेलखण्ड में प्रस्द्धि है। पन्ना के जुगल किशोर मंदिर की महिमा निराली है, नगर के मध्य में स्थित इस प्राचीन मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान श्रीकृष्ण व राधा की जीवंत प्रतिमा के प्रति लोगों में अगाध श्रद्धा है। भगवान के दरबार में भक्ति और आशा के साथ जो भी आता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। श्रद्धालुओ के धार्मिक विश्वास और आस्था के केन्द्र पन्ना के जुगल किशोर मंदिर निर्माण सन 1813 में तत्कालीन पन्ना नरेश हिन्दूपत द्वारा कराया गया था। यहां गर्भग्रह में प्रतिष्ठित श्री कृष्ण राधा की जुगल जोड़ी के दर्शन करने दूर-दूर से प्रतिदिन सैंकड़ों श्रद्धालु पहुंचते है, राधाकृष्ण की यह जुगल जोड़ी ओरछा राज्य से होती हुई यहां आई थी तभी से श्रीकृष्ण और राधा की नयनाभिराम छवि श्रद्धालुओं को अपने मोह पाश में बांधे हुए है।
जुगल किशोर के रूप में विख्यात राधाकृष्ण के ओरछा से पन्ना आने की कहानी बड़ी ही रोचक है। जनश्रुतियों के अनुसार ओरछा राज्य के राजा और प्रजा की अनन्य कृष्ण भक्ति ही जुगल किशोर के यहां आने का कारण बनी। ओरछा के राजा मधुकर शाह भगवान जुगल किशोर के परम भक्त थे, यह कृष्ण भक्ति उन्हें अपने गुरू पं. हरिराम व्यास से आशीर्वाद स्वरूप मिली थी। धार्मिक श्रुतियों के अनुसार भगवान जुगल किशोर पंडित हरिराम व्यास के भक्तिभाव में बंधकर वृंदावन छोड़कर ओरछा आ गये थे, पर वहां आकर जुगल कशोर ने राज दरबारियों व आम प्रजा को अपने प्रेमपाश में जकड़ लिया। कृष्ण भक्ति में राजा और प्रजा इस कदर डूबी कि राजदरबार में पं. हरिराम व्यास के मार्ग दर्शन में रासलीला का आयोजन होने लगा।
जिसमें सभी भक्त सखी रूप में श्रंगारित होकर श्रीकृष्ण से अपना तारतम्य जोड़ते थे। महारानी को एक राजा का इस रूप में भक्तिभाव में डूबना रास नहीं आता था। महारानी कुंवर गनेशी भी उच्च कोटी की भक्त थीं, पर उनके आराध्य मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम थे भक्ति के तौर तरीकों और अपने आराध्य को लेकर महाराज और महारानी में ठन गई और महारानी कुंवर गनेशी ने यह प्रतिज्ञा की कि वे अपने आराध्य रामराजा को लेकर ही ओरछा वापस आएंगी, पर साथ ही यह विशेष शर्त भी तय हुई कि तब राज्य में एक ही राजा की सरकार रहेगी अर्थात रामराजा सरकार या श्री जुगलकिशोर सरकार, जबकि महाराज ने इसे स्वयं की सरकार या रामाराजा की सरकार के अर्थ में लिया।
श्रीरामराजा को पाने के लिये महारानी ने अयोध्या में सरयु नदी के तट पर कठोर तपस्या की पर जब वे नहीं मिले तो जल समाधि के विचार से सरयु में गहरे उतर गई, जहां श्रीराम जानकी उनकी गोद में आ गये प्रभु ओरछा चलने को तैयार हो गये पर उन्होंने अपनी कड़ी शर्त रखी कि वे सिर्फ पुष्य नक्षत्र में ही यात्रा करेंगे, पर रानी के संकल्प शक्ति में जरा भी कमी नहीं आई। वे नक्षत्र के अनुसार एक माह में सवा दो दिन की यात्रा के हिसाब से वर्षों के कठिन मार्ग साधना पूरी करके रामराजा को अयोध्या से ओरछा ले आई। महाराजा मधुकर शाह ने अपने ढंग से शर्त का पालन किया, नये राजा को राज्य सौंपने के लिये अपनी राजधानी टीकमगढ़ स्थानांतरित कर दी पर असल शर्त तो आराध्य देव रूपी राजा को लेकर थी। राज्य के प्राचीन राजा जुगल किशोर सरकार को उनकी प्रेरणा से गोविंद दीक्षित कालांतर में उन्हें पन्ना ले आए यहां आने पर उन्हें विंध्यवासिनी मंदिर में अस्थाई रूप से रहना पड़ा और फिर स्थाई रूप से जहां विराजे, उसे आज जुगल किशोर मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर भवन निर्माण की बुंदेली छाप लिये उत्तर मध्यकालीन वास्तुशिल्प के अनुरूप निर्मित है।