नयी दिल्ली 08 अगस्त (वार्ता) केन्द्रीय संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा है कि काकोरी में क्रांतिकारियों के प्रतिरोध की घटना युवाओं को सदैव प्रेरणा देती रहेगी।
यहां कांस्टीट्यूशन क्लब में सभ्यता अध्ययन केंद्र के काकोरी प्रतिरोध शताब्दी वर्ष समारोह श्रृंखला के उद्घाटन कार्यक्रम में श्री शेखावत ने कहा कि भारत में जानबूझकर इसे प्रयास किए गए कि भारतीय इतिहास को कितना छुपाया जाय।
उन्होंने कहा, “हम इतिहास को जानने का प्रयास करेंगे, तो पता चलता है भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के दौरान लखनऊ के निकट काकोरी में क्रांतिकारियों ने स्वयं सक्षम होने और सहारनपुर से लखनऊ जाने वाली रेलगाड़ी में काकोरी में अंग्रेजी सरकार को आर्थिक हानि पहुंचाने के उद्देश्य से चलती ट्रेन में सरकारी ख़ज़ाने को लूटा था। नौ अगस्त 1925 को घटित इस घटना में युवा क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आज़ाद, शचींद्रनाथ सान्याल, ठाकुर रोशन सिंह और अन्य क्रांतिकारी शामिल थे। घटना के बाद सितंबर तक इस मामले में कुल 40 क्रांतिकारियों गिरफ्तार किया गया। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लोहड़ी और ठाकुर रोशन सिंह फांसी की सजा दी गई थी।”
इस कार्यक्रम में श्री शेखावत के अलावा रक्षा राज्यमंत्री संजय सेठ, भारतीय पुलिस सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ सत्यपाल सिंह भी शामिल हुए। काकोरी विमर्श पर आमंत्रित प्रमुख वक्ता डॉ. बी आर अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली के उप अधिष्ठाता (अकादमिक) एवं म्यूजियम एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. आनंदवर्धन थे ।
इस मौके पर सभ्यता अध्ययन केंद्र के निदेशक श्री रविशंकर ने स्वाधीनता आंदोलन के दौरान उन अमर बलिदानियों का स्मरण करते हुए काकोरी विमर्श की भूमिका स्थापित की। उन्होंने बताया कि काकोरी प्रतिरोध की घटना को इतिहास में वह स्थान नहीं दिया गया, जो उसे मिलना चाहिए था। उन्होंने बताया कि क्रांतिकारी वीरों के योगदान को पूरे देश में फैलने के लिए सभ्यता अध्ययन केंद्र वर्षभर कार्यक्रम आयोजित करेगा। उन्होंने कहा कि काकोरी कांड नहीं, बल्कि काकोरी प्रतिरोध था।
वहीं, डॉ. आनंदवर्धन ने भारत के इतिहास के विद्रोही आंदोलन पर अनेक घटनाओं का जिक्र किया। उन्होंने बताया 1908 के बाद स्वाधीनता आंदोलन, जिसमें आदिवासी आंदोलन, पहाड़ी आंदोलन से निकला उसे महत्व नहीं दिया गया। वर्ष 1857 की क्रांति वैश्विक घटनाओं से कहीं न कहीं प्रभावित थी। मंगलपांडे हों, सीता राम पांडे हों, ईश्वरी पांडे हों सभी जानते थे कि अंग्रेज सरकार ईस्ट इंडिया कंपनी से अधिक क्रूर थी। भगवान बिरसामुंडा ने कहा था कि सारी सभ्यता की विरोध की जननी अंग्रेज रानी है। आर्य समाज के संस्थापक दयानंद सरस्वती का अवदान जानबूझकर छोटा किया गया। उन्होंने गांधी जी के एक कथन को उद्धृत किया कि कि शिक्षा आने में देर की जा सकती है, लेकिन स्वाधीनता लाने में हम देर नहीं कर सकते।
काकोरी की महत्ता बताते हुए उन्होंने कहा काकोरी रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्ला खानकांड में शचींद्रनाथ सान्याल, चंद्रशेखर आजाद भी काकोरी कांड में थे। इसमें योगेश चंद्र चटर्जी, सूर्य सेन भी भी थे।
श्री सेठ ने अपने संबोधन में कहा काकोरी कांड जिसे कहा गया वह कांड नहीं था वह प्रतिशोध था। नए भारत में शब्दों को सही भाव से कहने की आवश्यकता है। ये नया भारत है। यह न तो झुकता है न रुकता है। इस नए भारत में भगवान बिरसा मुंडा को पूरा देश याद करता है। आज पूरा देश भारत के बलिदानी वीरों की कहानियां सही परिप्रेक्ष्य में जान रहा है। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सेन जैसे वीरों को याद करना उन बलिदानियों का सम्मान है। आयोजकों को उन्होंने शताब्दी समारोह को वर्षभर चलाने के संकल्प के लिए धन्यवाद किया।
उन्होंने कहा कि स्वाधीनता दिवस के अवसर पर हर घर तिरंगा फहराने में सहयोग करें। इस आयोजन में स्वाधीनता से जुड़े विविध प्रसंगों में विशिष्ठ योगदान करने वाले व्यक्तियों का सम्मान भी किया गया। सम्मानित होनेवालों में मदन लाल वर्मा क्रांत, आर जी आनंद, नम्रता विद्रोही, अमरेश शुक्ल, अरशद फरीदी शामिल थे।
डॉ. सिंह ने कहा कि आर्य समाज के योगदान की अक्सर चर्चा नहीं होती। स्वामी दयानंद सरस्वती के सत्यार्थ प्रकाश ने देश में राष्ट्रप्रेम की ज्वाला को प्रज्वलित की। भगत सिंह, सुखदेव, भाई परमानंद, श्रद्धानंद जी आदि के योगदान को हमें याद रखना चाहिए। डॉ. सत्यपाल सिंह ने कहा राम प्रसाद बिस्मिल जैसा कवि, विचारक, और क्रांतिकारी को हम कैसे भूल सकते हैं जिन्होंने कविता लिखी, तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहें।