भारतीय मानसून के सांस्कृतिक रंग

सनातनी परंपरा में सावन यानी मानसून प्रारंभ होते ही धार्मिक और सांस्कृतिक त्यौहार प्रारंभ हो जाते हैं. भारत सांस्कृतिक विविधता वाला देश है. यह महत्वपूर्ण है कि मानसून के दौरान सभी संस्कृतियों में उत्सव मना कर मानसून का स्वागत किया जाता है. काश्मीर से कन्या कुमारी तक मानसून भारत को तरबतर कर रहा है.कहीं मौसम जन्य विभीषिका दिख रही है तो कहीं हरीतिमा ओढ़े प्रकृति खड़ी है. सही अर्थों में भारत की सांस्कृतिक विविधता ऐसी है कि कोई भी मौसम हो उत्सवों पर कभी विराम लगता ही नहीं है, पूरे साल जारी रहते हैं.मानसून का तो अपना ही मूड होता है, लेकिन देश के अलग-अलग हिस्सों के अपने अलग विशिष्ट उत्सव हैं. देश में हर मौसम की अपनी क्षेत्रीय परम्पराएं व रिवायतें हैं. जब बारिश पडऩे के बाद हर जगह हरियाली छा जाती है तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक की विभिन्न संस्कृतियों में अलग-अलग तरह से जश्न मनाये जाने लगते हैं.जैसे पुरी, ओडिशा की रथ यात्रा भारत का सबसे विख्यात मानसून उत्सव है. दुनिया के हर कोने से भक्तगण इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए आते हैं.आदि पेरुक्कू मानसून महोत्सव मुख्यत: तमिलनाडु का उत्सव है .यह उत्सव महिला केंद्रित है और पानी के जीवन-निर्वाह गुणों को भावांजलि देने के लिए मनाया जाता है. यह तमिलनाडु की नदियों, घाटियों, पानी के टैंकों, झीलों, कुओं आदि के पास मनाया जाता है, जब उनमें पानी का स्तर काफी बढ़ जाता है और मानसून की शुरुआत होती है. मान्यता यह है कि पानी ही जीवन है क्योंकि बारिश से ही झील, तालाब, नदी जल के स्रोत भरते हैं. इस उत्सव में महिलाएं पानी के परवरिश करने के गुणों की पूजा करती हैं, जिसके कारण जीवन सुरक्षित है.

यूं तो गोआ जनवरी से दिसम्बर तक उत्सव के मूड में ही रहता है, लेकिन मानसून में वह विशेष रूप से साओ जोआओ उत्सव मनाता है, जो इतना जिंदादिल होता है कि रंगों और उत्साह से भरा होता है.हर साल 24 जून को सेंट जॉन द बैप्टिस्ट का सम्मान करते हुए मनाये जाने वाले इस उत्सव की विशिष्ट परम्पराएं हैं, जिनमें फूलों के ताज पहनकर पानी में कूदना भी शामिल है. इस उत्सव में फलों, ड्रिंक्स आदि उपहारों का आदान-प्रदान भी होता है. गांवों में नदी किनारे आपको कार्निवल बोट्स भी देखने को मिलेंगी.उत्तर पूर्व भारत के पहाड़ों के बीच में बसा मेघालय अपने मानसून उत्सव बेहदीनखलम में बहुत गहरी छलांग लगाता है.बेहदीनखलम का अर्थ होता है बुरी शक्तियों को भगाना. इसलिए इस उत्सव को मनाने के पीछे का उद्देश्य भी हैज़ा व अन्य महामारियों से मेघालय के वासियों को सुरक्षित रखने की कामना करना है.साथ ही इस उत्सव में भगवान से यह भी मांगा जाता है कि उनके समुदाय को समृद्धि और अच्छी फसल का वरदान दे.लद्दाख का मानसून उत्सव हेमिस सबसे सम्मानित बौद्ध मठ हेमिस गोम्पा में आयोजित किया जाता है, जो कि ‘लैंड ऑफ़ हाई पासेस’ में है. यह उत्सव पूरे दो दिन तक मनाया जाता है और इसका संबंध गुरु पद्मसंभव के जन्म दिवस से भी है, जो तिब्बती चंद्र माह के दसवें दिन पड़ता है.दूसरे शब्दों में इस उत्सव की टाइमिंग कुछ ऐसी है कि लगभग जुलाई के मध्य में ही इसका आयोजन होता है. इस उत्सव का मुख्य आकर्षण चाम है जो कि तांत्रिक बुद्ध मत का बुनियादी पहलू है. इस उत्सव में विस्तृत कपड़े, पगड़ी, ज़ेवर आदि पहनकर भिक्षु नृत्य नाटक करते हैं.देश की हिंदी पट्टी के नाम से चिन्हित प्रदेशों में सावन के झूलों और कजरी गाने की परंपरा है तो बुंदेलखंड में यह काल आल्हा को समर्पित रहता है.मानसून में आकाश के रंग के साथ भारत के रंगों की छटा निराली होती है. कुल मिलाकर देश की सभी सांस्कृतिक परंपराएं हमें प्रकृति की उपासना सिखाती हैं. अर्थात यदि हमें जीवन को सुरक्षित रखना है और भविष्य को मजबूत बनाना है तो प्रकृति का संरक्षण करना ही होगा.दूसरे अर्थों में हमारी परंपराएं हमें पर्यावरण संतुलन के बारे में सतर्क करती रहती हैं. इसी वजह से इन त्योहारों और उत्सव में निहित संदेश को समझ कर हमें पर्यावरण संरक्षण के विषय में लगातार विचार करना होगा.

 

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