ग्वालियर: प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला में दीक्षारम्भ कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विशवविद्यालय के प्रोक्टर एसके सिंह रहे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता विभागाध्यक्ष प्रो शान्तिदेव सिसोदिया द्वारा की गई। जिसमें नव प्रवेशित छात्रों को आगामी सत्र की जानकारी दी गई। जिसमें प्रस्तुतीकरण की सहायता से कार्यक्रम संचालक शोधार्थी वैभव शर्मा ने छात्र-छात्राओं को एमए प्राचीन भारतीय इतिहास , संस्कृति एवं पुरातत्व, एमए इतिहास तथा संग्रहालय विज्ञान में एक वर्षीय डिप्लोमा के पाठ्यक्रम की विस्तृत रूप से जानकारी दी साथ ही उन्हें जीवाजी विश्वविद्यालय एवं पुरातत्व विभाग के गौरवशाली इतिहास से परिचित करते हुए कार्यक्रम संचालक ने नव प्रवेशित छात्रों को विभाग की स्थापना एवं उसकी उपलब्धियों को बतलाते हुए बताया कि किन परिस्थितियों एवं किन उद्देश्यों के साथ राजमाता विजयराजे सिंधिया ने गंगाजली फंड से उस समय 20 लाख रुपयों का दान देकर नौलखा रोड पर विश्वविद्यालय की स्थापना की एवं पुरातत्व विभाग विश्वविद्यालय के शुरुआती 5 विभागों में से एक है वह चाहती थीं कि ग्वालियर चंबल क्षेत्र के इतिहास एवं पुरातत्व पर शोध किया जाए। साथ ही छात्रों को यह भी बताया गया कि यह उनके सौभाग्य की बात है कि प्रो बीबी लाल जैसे विभाग के विभागाध्यक्ष रहे।
भारतीय पुरातत्व को एक नई दिशा एवं आयाम दिया साथ ही इन बातों पर भी बल दिया गया कि विभाग में आपसी सहयोग एवं सामंजस्य के माहौल के साथ अगले एक एवं दो वर्षों का जो उनका अध्यापन काल है उन्हें पूर्ण करना है तथा गंभीरता एवं अनुशासन विभाग में बनाए रखना है। विभागाध्यक्ष द्वारा नव प्रवेशित छात्र-छात्राओं को प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययनशाला द्वारा विभाग के विभिन्न आचार्यों के निर्देशन में ग्वालियर क्षेत्र के आस पास हुए विभिन्न पुरातात्विक उत्खननों के बारे में विस्तृत जानकारी से अवगत कराते हुए ग्वालियर क्षेत्र के जड़ेरुआ, गुप्तेश्वर, सूरों, कुतवार इत्यादि की पुरातात्विक पुरास्थलों के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला।
विभागाध्यक्ष द्वारा विभाग द्वारा संचालित संग्रहालय विज्ञान में एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम को समझाते हुए पाठ्यक्रम के महत्व, डिप्लोमा से संबंधित रोजगार एवं उसकी उपयोगिता को समझाते हुए सग्रहालयों के सांस्कृतिक धरोहरों में संरक्षण एवं परिरक्षण की वैज्ञानिक दृष्टि से अवगत कराया। विभागाध्यक्ष द्वारा विभिन्न शैक्षणिक स्थलों के भ्रमण की जानकारी देते हुए बताया कि पुस्तकीय अध्ययन के साथ- साथ प्रायोगिक अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए विभाग द्वारा समय-समय पर पुरातात्विक उत्खनन, सर्वेक्षण, कला एवं स्थापत्य, शैलचित्र कला, प्रतिमाशास्त्र इत्यादि प्रयोगिक क्रियाकलापों की जानकारी से अवगत कराया। कार्यक्रम का आभार इतिहास विभाग की अतिथि विद्वान डॉ. जयन्ती शर्मा द्वारा दिया गया।