भाजपा के विधायक और पूर्व विधायक में ठनी.

महाकौशल की डायरी

अविनाश दीक्षित

जबलपुर के सिहोरा तथा सिहोरा से सटे बहोरीबंद के दो दिग्गज भाजपा नेताओं के बीच इन दिनों कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। यह बात तब उजागर हुई जब सिहोरा के पूर्व विधायक दिलीप दुबे ने बहोरीबंद विधायक प्रणय पांडे द्वारा विधानसभा में पूछे गये एक प्रश्न पर कटाक्ष किया।दरअसल विधायक प्रणय पांडे ने सिहोरा में बन रहे डिवाइडर को लेकर बीते विधानसभा सत्र में प्रश्न उठाया। उन्होंने डिवाइडर की गुणवत्ता पर प्रश्नचिन्ह उठाते हुये निर्माण एजेंसी का ब्यौरा तथा इस पर खर्च राशि का ब्यौरा मांगा। इस पर सिहोरा के पूर्व विधायक दिलीप दुबे ने सोशल मीडिया पर तंज कसते हुये लिखा कि सिहोरा की एक छोटी-सी समस्या को विधानसभा में उठाने वाले लोग क्या सिहोरा की सबसे बड़ी समस्या सिहोरा को जिला बनाने की मांग, की आवाज को भी विधानसभा में उठायेंगे…? जो एक किलोमीटर के डिवाइडर की बात विधानसभा में उठाते हैं, वह क्या 60-70 किलोमीटर के क्षेत्र को प्रभावित करने वाले जिला सिहोरा के मुद्दे को भी सदन में उठाएंगे…?

पूर्व विधायक दिलीप दुबे के कटाक्ष पर बहोरीबंद विधायक प्रणय पांडे ने पलटवार तो नहीं किया, लेकिन क्षेत्रवासियों ने अपनी विधानसभा से इतर प्रश्न पूछने को जायज नहीं माना, हालांकि अव्यवस्थित डिवाइडर निर्माण से आमजनों को हो रही परेशानी पर क्षेत्रीयजन नगर पालिका सिहोरा की सुस्त कार्यप्रणाली से नाराज भी नजर आ रहे हैं। स्मरण रहे कि पूर्व विधायक दुबे की पत्नी संध्या दुबे नगर पालिका सिहोरा की अध्यक्ष हैं, और दुबे के कटाक्ष को इससे जोड़कर देखा जा रहा है। यद्यपि विधानसभा चुनाव के पूर्व भी दोनों नेताओं के बीच टिकट को लेकर अप्रत्यक्ष तनातनी चलती रही। नामांकन की अंतिम तारीख के ऐन पहले प्रणय पांडे को हरी झंडी मिल पाई थी। टिकट के संघर्ष के बाद से दोनों नेताओं के बीच तल्खी बरकरार है।

दूसरे नजरिये से देखा जाये तो विधानसभा चुनाव के लम्बे अर्से पूर्व से सिहोरा को जिला बनाने की मांग तूल पकड़ती रही है। विभिन्न तरह के आंदोलन, सिहोरा बंद, नेताओं का घेराव, जैसे कार्यक्रमों के चलते माहौल भगवादल के विपरीत माना जा रहा था। संभवत: इन्ही वजहों अथवा कुछ और अंर्तनिहित कारणों के चलते इसी विधानसभा सीट से 3 बार भाजपा विधायक रहीं नंदिनी मरावी को टिकट से वंचित होना पड़ा था। सिहोरा को जिला बनाने की मांग का पूर्व विधायक दिलीप दुबे ने पार्टी लाइन से इतर जाकर सर्मथन किया था। अब जबकि मध्यप्रदेश के जुन्नारदेव को जिला बनाने की घोषणा हो चुकी है, और अन्य क्षेत्रों से भी ऐसी मांग उठाईं जा रहीं हैं, तब सिहोरा को जिला बनाने की मांग पर नेताओं की चुप्पी पर क्षेत्रवासी नाराजगी जता रहे हैं।

जिला सिहोरा आंदोलन समिति के सदस्यों के मुताबिक 11 जुलाई 2003 को जारी प्रदेश के राजपत्र में सिहोरा, मझौली तथा कटनी के बहोरीबंद और ढीमरखेड़ा तहसील के समाविष्ट से सिहोरा को जिला बनाया गया था, लेकिन ना सरकार ने इस पर अमल किया और ना ही क्षेत्र के किसी जनप्रतिनिधि ने मांग ही उठाई। क्षेत्र के आमजनों का मानना है कि बहोरीबंद विधायक प्रणय पांडे और सिहोरा के पूर्व विधायक तथा नगरपालिका अध्यक्ष पति दिलीप दुबे बीच राजनीतिक वर्चस्व की जंग अपनी जगह है, लेकिन सिहोरा को जिला बनाने की मांग पर अमल कराने का सम्मिलित प्रयास करना चाहिए ना की एक – दूसरे की छीछालेदार करना चाहिए। फिलहाल देखने वाली बात यह होगी कि ब्राम्हण बहुल इलाके के दो ब्राम्हण नेताओं के बीच शह और मात का खेल जारी रहता है,अथवा दोनों भाजपाई नेता जनभावनाओं का सम्मान करते हैं।

अफसरों की खुशफहमी…

पिछले दिनों एयर क्लीन सर्वे के परिणामों में जबलपुर को 100 फीसदी अंक प्राप्त हुये। जबलपुर नगर निगम आयुक्त प्रीति यादव के मुताबिक वायु गुणवत्ता के लिये चुने गये 136 शहरों में से प्रदेश के भोपाल-इंदौर तथा अन्य प्रदेशों के मुम्बई, वाराणसी, धनबाद जैसे बड़े शहरों को पीछे छोड़ते हुये जबलपुर की वायु गुणवत्ता में 27 प्रतिशत से अधिक का सुधार आया है। इस उपलब्धि पर नगर निगम के अफसर गदगद नजर आ रहे हैं, यद्यपि नगर निगम के गलियारों से लेकर चौक – चौराहों में भांति-भांति की चर्चाएं भी हो रहीं हैं। नगर निगम में सत्तासीन भाजपाई पार्षद भी इस उपलब्धि पर खुश हैं, लेकिन विपक्षी खेमे के पार्षद सवाल उठा रहे हैं कि एक ओर फ्लाई ओवर के काम चल रहे हैं और दूसरी ओर जगह-जगह टूटी सड़कों से धूल के गुबार उठ रहे हैं, भला हो बरसात का, जिससे भले ही सड़कों पर कीचड़ मच रहा है, किन्तु धूल भरी हवा का सामना तो नहीं करना पड़ रहा। पूरी गर्मी तो धूल के उठते गुबारों को नियंत्रित करने के लिए जल छिड़काव करने की मांग प्रतिदिन लगभग हर समाचार पत्रों की सुर्खियों में रहती थी। वहीं पर्यावरण सुधार से जुड़े एक सोशल वर्कर ने कहा कि ना दिखने वाली हवा में जब इतना सुधार लाया जा सकता है, तो शहर में जगह-जगह साफ दिखाई देने वाले कूड़े करकट के ढ़ेरों को हटाकर स्वच्छता में फिसड्डी शहर की इस मामले में रैकिंग क्यों नहीं सुधारी जा सकती…?

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