एमपी के हर शहर में क्यों नहीं देवास जैसी पानी टीम..?

दृष्टिकोण

क्रांति चतुर्वेदी

दुनिया के अनेक क्षेत्र , देश व मध्य प्रदेश के अनेक शहरों में जल संकट की समस्या से हम सब अच्छी तरह से परिचित और प्रभावित है . इन दिनों मानसून का मौसम है और बरसात के पानी को यदि अच्छी तरह से सहेज लिया जाए तो आने वाले समय में जल की समस्या से काफी हद तक सामना किया जा सकता है. पानी संकट को लेकर अवसाद तो सब जगह दिखता है लेकिन उत्साह के साथ इस संकट से निपटने के प्रयास बिरले ही नजर आते हैं . मध्य प्रदेश के देवास शहर में देश में अपनी तरह की एक प्रेरणास्पद कहानी लिखी जा रही है …..तो चलते हैं देवास……

मध्यप्रदेश का औद्योगिक शहर देवास भीषण जल संकट की मार से जूझ रहा है। जमीन के भीतर 600 से एक हजार फीट की गहराई तक पानी नहीं मिल रहा है। इस त्रासदी के बीच लोगों ने खुद मोर्चा खोला और बारिश के पानी को सहेजने का बीड़ा उठाया।बिना किसी सरकारी या अन्य मदद के दो महीने पहले अमृत संचय अभियान के ज़रिए अपनी छतों और परिसरों से बहने वाले बारिश के पानी को जमीन की रगों में पहुँचाने के लिए 200 से ज्यादा घरों ने ख़ुद के खर्च पर रुफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अपनाया। आम लोगों की इस पहल को जिला प्रशासन, नगर निगम और सामाजिक संस्थाओं ने भी मदद की। यह अभियान कुछ लोगों ने शुरु किया था जिसमें धीरे-धीरे कई लोग और अब तो एक तरह से पूरा शहर जुड़ गया। इसकी जागरुकता के लिए कलेक्टर ऋषव गुप्ता भी कई जगह खुद चौपालों और लोगों के बीच जाते हैं। स्कूली बच्चों ने साइकिल रैली निकाली। जनप्रतिनधियों ने भी इस अभियान को अपना पूरा समर्थन दिया। जिला प्रशासन ने तय किया कि सरकारी इमारतों की छतों से भी पानी सहेजेंगे। निजी स्कूलों, इंडस्ट्रीज, हॉस्पिटल, वेयर हाउस, मैरिज गार्डन और बड़े-बड़े लॉन में बरसने वाले बारिश को पानी को विभिन्न तकनीकों से जमीन में उतारा जा रहा है । कई संस्थाएं और स्कूली बच्चे भी जनजागरण के लिए आगे आए हैं। देवास वह शहर है जहाँ 1980 और 2000 के दशकों में भयावह जल संकट की वजह से ट्रेन से पीने का पानी लाकर आपूर्ति करना पड़ी थी।
40 इंच औसत बारिश के अनुसार एक हजार स्क्वेयर फीट की छत पर प्रतिवर्ष एक लाख लीटर बारिश के अनमोल पानी को जमीन में उतार कर रिचार्ज किया जा सकता है। तमाम तकनीकों के जरिए अब तक लगभग 200 करोड़ लीटर से ज्यादा पानी सहेजने की तैयारियाँ पूरी हो चुकी है। लोगों ने दो करोड़ रूपये से अधिक का काम अपने खर्च पर करवाया है। देवास के जिन घरों में रुफ वाटर हार्वेस्टिंग लगाया गया है, वहाँ लगे बोरवेल गर्मी में या तो दम तोड़ जाते थे या फिर उनमें जलस्तर बहुत नीचे चला जाता था। रुफ वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक को इंस्टाल करवाने में लगभग 4-5 हजार का खर्च आता है। जिला प्रशासन ने फिल्टर तैयार करवा कर न्यूनतम दरों में लोगों के लिए इसे उपलब्ध कराया। इसके लिए शहर में कई प्लंबर्स को लगाया गया। लोगों को उम्मीद है कि इस तकनीक के बाद उन्हें जिंदगीभर पानी की दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

बीते 40 वर्षों से पानी पर काम करने वाले जाने माने भूजल वैज्ञानिक डॉ सुनील चतुर्वेदी लगातार इस अभियान से जुड़कर निशुल्क रुप से तकनीकी सहायता दे रहे हैं। ख़ास बात यह है कि शहर में अलग-अलग भौगोलिक स्थितियों तथा स्थानीय आवश्यकता के मुताबिक दर्जनभर से ज़्यादा जल संचय तकनीकें डिजाइन की गईं, जो सस्ती होने के साथ बेहद प्रभावी और परिणाममूलक साबित हुई हैं. चतुर्वेदी ही नहीं उनकी पूरी तकनीकी टीम घर-घर जाकर लोगों को इसके बारे में जाग्रत कर रहे हैं। देवास में इन लोगों के समूह को पानी टीम के नाम से जाना जा रहा है ।

शहर के इस जज्बे में कई इंडस्ट्रीज भी आगे आई है। कपारो इंडस्ट्रीज में कम्पनी परिसर में कई कुएँ तथा अन्य जल संरचनाएं तैयार की गई। इससे 8 से 10 करोड़ लीटर बारिश का पानी सीधे भूजल रिचार्ज कर सकेगा। हैरानी की बात यह है कि इसके सकारात्मक नतीजे भी देखने को मिल रहे हैं।यहां के यूनिट हेड शुभांग मिश्रा बताते हैं कि पहली ही बारिश में इससे 75 से 80 हजार लीटर पानी को सहेज कर उसे इंडस्ट्री इस्तेमाल कर रही है। 1 रुपए लीटर भी यदि पानी की कीमत आंकी जाए तो कंपनी हर दिन में 75 हजार से ज्यादा का पानी बचा रही है यानी उसका बड़ा खर्च बच रहा है। कंपनी की छतों के पानी से बड़े-बडे कुँए भरने लगे हैं।

सेन थाम एकेडमी में बडे-बडे रिचार्ज शाफ्ट तैयार किए गए हैं। इससे करीब दो करोड़ लीटर से ज्यादा बारिश के पानी को जमीन के भीतर उतारा जा सकेगा। स्कूल को साल में 5-6 महीने खरीद कर पानी लेना पड़ता था। संग्राम सिंह घार्गे ने तो कमाल कर दिया। अपने घर के आसपास 38 हजार वर्ग फीट की जमीन पर 28 रिचार्ज शॉफ्ट बना दिए। यहाँ हर बारिश में गिरने वाला 35 लाख लीटर पानी अब रिचॉर्ज हो सकेगा। इसी बारीश में उनके कुँए में 10 से 12 फीट का लेबल बढता हुआ दिखाई दे रहा है जबकि पहले बारिश के दिनों में यह लेबल कभी नहीं देखा गया।
कलेक्टर ऋषव गुप्ता अभियान में मिली कामयाबी से रोमांचित है। बगैर सरकारी मदद के यह जन भागीदारी और लोगों की जागरुकता काबिल-ए-तारीफ हैं। कलेक्टर गुप्ता ने बताया कि हम 200 करोड़ लीटर बारिश का पानी एक बारिश के मौसम में बचा पाएंगे। यह सिलसिला अब भी लगातार जारी है।
……..देवास की यह पानी टीम कई संदेश दे रही है….. प्रमुख संदेश है.. मध्य प्रदेश के सभी शहर एक-एक टीम बनाकर समाज को साथ लेकर यदि इस तरह बूंदों की मनुहार कर ले तो हमारे राज्य के शहर काफी हद तक जल संकट की समस्या से मुक्ति की ओर कदम बढ़ा सकते हैं

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