तत्कालीन मंदिर प्रशासक नीरज वशिष्ठ के कहने पर नगाड़ा सम्राट कुशवाहा ने बनाए थे वाद्य यंत्र
उज्जैन: डमरू सिर्फ वाद्य यंत्र नहीं है, ये शिव की आराधना का प्रतीक है।डमरु का प्रसंग बाबा महाकाल की सवारी से इस बार उज्जैन में वैश्विक तौर पर जुड़ गया है, क्योंकि 5 अगस्त को महाकाल की सवारी में 1500 डमरू वादन का रिकॉर्ड बनने वाला है।40 से अधिक नवताल वाद्य यंत्रों का निर्माण कर उन्हें देवालयों में भेंट करने वाले उज्जैन निवासी नरेंद्र कुशवाहा जो नगाड़ा सम्राट के नाम से जाने जाते हैं जिन्होंने दो ग्रंथ भी लिखे हैं, वाद्य दर्शन और अवंतिका की गौरवशाली गुरु शिष्य परंपरा।
फ्रीगंज क्षेत्र में जीरो पॉइंट ब्रिज के समीप एक तंग गली में निवास करने वाले नरेंद्र कुशवाहा ने नवभारत को बताया कि जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ते थे तब से उन्हें डमरू और नगाड़ो से लेकर सभी वाद्य यंत्र की ललक लगी और वह मंदिरों में इनकी धून सुनकर बड़े हुए हैं।
इसके बाद न सिर्फ लकड़ी के बल्कि विभिन्न तरह के डमरु का निर्माण उन्होंने किया। तत्कालीन महाकाल मंदिर प्रशासन नीरज वशिष्ठ को जब इन डमरू के संबंध में पता चला तो उन्होंने 11 डमरू महाकाल सवारी के लिए बनाने की बात कही। कुशवाहा ने 12 ज्योतिर्लिंगों के लिए 12 डमरू बनाए और 1 अगस्त 2005 को महाकाल मंदिर समिति को भेंट कर दिए। इस दौरान बाबा महाकाल की सवारी सावन मास में निकली तो पहली बार 11 डमरू आज से 20 साल पहले सुर ताल लय के साथ जब बजाए गए तो इसका दृश्य बड़ा विहंगम रहा जो श्रद्धालुओं को अति रोमांचित कर गया।
तत्कालीन राष्ट्रपति को भी भेंट किया डमरू
डमरू निर्माता और संगीतज्ञ नरेंद्र कुशवाहा ने बताया कि स्टील के डमरु ,लकड़ी के डमरु, बांस, लोहे की पत्ती, पत्थर,सरिए, एल्युमिनियम ,बेंत, प्लास्टिक नारियल ,मिट्टी से लेकर तांबे तक के डमरु उन्होंने बनाए हैं,अब भी बनाते है। तत्कालीन राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल का जब उज्जैन आगमन हुआ तो उन्हें बिरला कांच का डमरू बजाकर सुनाया और उन्हीं को भेंट कर दिया।
3 बार लिम्का 5 बार गोल्डन बुक अवार्ड मिले
डमरू बजाना, डमरू सुनना, डमरू दान करना ,और डमरू का निर्माण करने से लेकर डमरू और अन्य वाद्य यंत्रों की शिक्षा दीक्षा देना बस यही नरेंद्र कुशवाहा का जीवन है । कुशवाहा बताते हैं लकड़ी का खाली बॉक्स जो आता है वह 700 से 800 के बीच पड़ता है, वहीँ जब डमरू का निर्माण हो जाता है तो उसकी कीमत भी 700 रुपये होती है ,कुल एक डमरू ?1400 में तैयार हो जाता है ।वहीं तांबे का डमरू ?2000 के लगभग पड़ता है ,हालांकि स्टील के डमरू की कीमत 200 से 300 के बीच होती है। नरेद्र कुशवाहा ने बताया कि उन्हें 5 बार गोल्डन बुक अवार्ड मिला है और 3 बार लिम्का बुक अवार्ड में वे नामित हुए हैं ।कई और अन्य पुरस्कार भी उन्हें समय समय पर मिले हैं।
महाकाल सवारी में इस बार रिकॉर्ड
नवभारत ने जब उन्हें बताया कि उज्जैन में बाबा महाकाल की सवारी 5 अगस्त को निकलेगी जिसमें 15 सौ डमरू एक साथ बजेंगे और गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनने वाला है । इसको लेकर नगाड़ा सम्राट नरेंद्र कुशवाहा ने कहा कि शिव और शक्ति के समक्ष जब डमरू बजता है तो उसका दृश्य नयनाभिराम होता है । यह रिकॉर्ड बनना उज्जैन के लिए उपलब्धि रहेगी।