वर्षा के कारण दिल्ली के एक बेसमेंट में पानी भर जाने के कारण तीन छात्रों की अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हो गई. बताया जाता है कि राष्ट्रीय राजधानी में मात्र आधे घंटे की बारिश में यह हादसा हुआ. नालियां और ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से चौक था जिसकी वजह से मात्र 3 मिनट में बेसमेंट में पानी भर गया यह सब इतनी अचानक हुआ कि छात्र वहां से निकल नहीं पाए. दरअसल, अनियोजित विकास के कारण देश के अधिकांश शहरों का ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह से कॉलेप्स हो चुका है.थोड़ी सी बारिश में पानी भर जाने की या जल भराव की समस्या कमोबेश सभी शहरों में है. वास्तव में बिल्डर अधिकतम कमर्शियल स्पेस यूज करने के चक्कर में जल निकासी की समुचित व्यवस्था नहीं करते जिसका खामियाजा जनता को उठाना पड़ता है. दिल्ली में जो दुर्घटना हुई वह राजेंद्र नगर का क्षेत्र पॉश इलाका कहा जाता है. जब कुलीन बस्तियों की यह स्थिति है तो निचली बस्तियों की क्या स्थिति होगी इसका केवल अंदाजा ही लगाया जा सकता है. एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण से पता चलता है कि शहर के आधे से ज़्यादा लोग सडक़ों पर जलभराव के कारण परेशान हैं. नागरिकों का समय, ऊर्जा और उत्पादकता बर्बाद होती है.सडक़ों पर जलभराव के कारण काम के घंटे कम हो जाते हैं, संपत्तियों को नुकसान पहुंचता है, यातायात का समय बढ़ जाता है और दुर्घटनाएं होती है.सर्वेक्षण से यह भी पता चलता है कि देश भर के सभी शहरी परिदृश्यों में जलभराव और बाढ़ की समस्याएं बहुत ज़्यादा हैं.
भारत के प्रमुख सामुदायिक संगठन की रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग 94 प्रतिशत नागरिकों ने संकेत दिया कि उनके शहर या जिलों में मानसून के मौसम में जलभराव हो जाता है.
विशेषज्ञ ने शहरी परिदृश्य में जलभराव और बाढ़ के कारणों का हवाला दिया; बढ़ते हुए निर्मित क्षेत्र, अपवाह को इक_ा करने या मिट्टी को इसे अवशोषित करने की व्यवस्था करने में विफलता, तूफानी जल प्रबंधन की कमी और नालियों का जाम होना.
सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, 84 फ़ीसदी उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि जलभराव के कारण उन्हें “यातायात में बहुत अधिक समय बिताना पड़ता है”; 68 फीसदी ने संकेत दिया कि इससे “वाहन खराब हो जाते हैं और संबंधित लागतें बढ़ जाती हैं 68 फीसदी ने कहा कि इससे “दुर्घटनाओं का जोखिम” बढ़ जाता है; 54 फ़ीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि इससे “काम के घंटे/उत्पादकता कम हो जाती है.सिफऱ् निजी वाहन ही क्षतिग्रस्त नहीं होते, बल्कि सार्वजनिक संपत्ति भी क्षतिग्रस्त होती है, जब बसें आंशिक रूप से या पूरी तरह से पानी में डूब जाती हैं और सडक़ के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचता है. यह कड़वी हकीकत है कि मानसून के पूर्व शासन और प्रशासन तमाम तरह के दावे करता है लेकिन एक डेढ़ इंच वर्षा में भी सडक़ों में पानी भर जाता है. मध्य प्रदेश के सबसे बड़े महानगर इंदौर की बात करें तो निचली बस्तियों की तो बात छोड़ दीजिए बीआरटीएस और न्यू पलासिया जैसे पॉश इलाके भी जलभराव की समस्या से परेशान हैं.
जो स्थिति इंदौर की है कमोबेश यही स्थिति पूरे देश के शहरों की है.इसके लिए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय और प्रदेश के स्थानीय शासन विभाग ने व्यापक योजना बनाकर काम करने की जरूरत है. जब तक इस मामले में व्यापक पहल नहीं होगी, दिल्ली जैसे हादसे होते रहेंगे. जहां तक दिल्ली के हादसे का प्रश्न है तो इसके दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए.