० आयुर्वेद अस्पताल बहरी में पदस्थ अमले को बिना काम के मिल रही है पगार, हस्ताक्षर करने ही कभी-कभार आते हैं कर्मचारी
नवभारत न्यूज
सीधी 25 जुलाई। जिले में शासकीय आयुर्वेद अस्पतालों का मनमानी संचालन होने की खबरें हमेशा ही सुर्खियों में रहती हैं। विडम्बना यह है कि तहसील मुख्यालय बहरी में संचालित शासकीय आयुर्वेद अस्पताल का नियमित रूप से ताला ही नहीं खुल रहा है। लिहाजा यहां आने वाले मरीज भी काफी परेशान हैं। यहां पदस्थ अमले को बिना काम के ही पगार मिल रही है।
तहसील मुख्यालय बहरी में संचालित शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी अव्यवस्थाओं के मकडज़ाल में घिरा हुआ है। यहां आने वाले अधिकांश मरीजों को इसलिए मायूश होकर लौटना पड़ता है क्योंकि यहां ताला बंद रहता है। अस्पताल मनमानी समय में कुछ घंटे के लिए खुलता है। यहां पदस्थ कर्मचारी बिना काम किए ही वेतन लेने के आदी हो चुके हैं। दरअसल शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी में जमकर भ्रष्टाचार देखा जा रहा है। बावजूद जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा कोई भी कार्यवाही नहीं की जा रही है। सूत्रों की माने तो 3 से 4 कर्मचारी अस्पताल में पदस्थ हैं लेकिन कोई भी अस्पताल नहीं आता है। लिहाजा मरीज भी काफी परेशान होते हैं। यहां पदस्थ सरकारी कर्मचारियों के द्वारा शासन की मंशा पर पूरी तरह से पानी फेरा जा रहा है। कर्मचारियों की स्वेच्छाचारिता के चलते आयुर्वेदिक उपचार का लाभ क्षेत्रीय मरीजों को नहीं मिल रहा है। जिसके चलते लोगों में काफी आक्रोश व्याप्त है। चर्चा के दौरान कुछ लोगों का कहना था कि ऐसा आभाष होता है कि आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी का संचालन केवल कुछ कर्मचारियों को मुफ्त में वेतन देने के लिए किया जाता है। जब अस्पताल का संचालन ही निर्धारित समय में नहीं होता तो इसको बंद कर देना चाहिए। यहां जब भी मरीज आते हैं अस्पताल में ताला लटका नजर आता है। लोगों की शिकायत पर 2 जुलाई को मीडिया द्वारा शासकीय आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी का दोपहर लगभग 12:30 बजे जायजा लिया गया तो अस्पताल में ताला लटका हुआ था। वहां पर एक भी कर्मचारी मौजूद नहीं थे। विभागीय अधिकारी भी अपने जिम्मेदारी से पीछे हटते दिख रहे हैं। उनके द्वारा उक्त मामले पर किसी भी प्रकार की जांच नहीं की जाती है और ना ही कोई ठोस कार्यवाही की जाती है ताकि लापरवाहों के मन में प्रशासन का कोई भी भय हो। इसी वजह से मनमानी थमने का नाम नहीं ले रही है।
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आयुर्वेदिक अस्पतालों का हाल-बेहाल
जिले भर में संचालित आयुर्वेदिक अस्पतालों का हाल बेहाल बताया जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित आयुर्वेदिक अस्पतालों की हालत तो और भी दयनीय है। आयुर्वेदिक अस्पतालों में वैसे भी मरीजों की आमद काफी कम होती है। कोई मरीज यदि आयुर्वेद से ही अपने मर्ज का चिकित्सा कराने की मंशा से यहां पहुंचता है तो सबसे पहले मालूम पड़ता है कि डॉक्टर ही नहीं है। अस्पतालों में केवल भृत्य या कम्पाउंडर मिलते हैं। इनके द्वारा ही मरीज को कुछ दवाएं मर्ज पूंछकर दे दी जाती हैं।
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इनका कहना है
आयुर्वेदिक अस्पताल बहरी में पदस्थ अधिकांश कर्मचारी गायब रहते हैं। यहां जब कभी ताला खुलता है तो केवल एक महिला कर्मचारी ही नजर आती है। वह महीने में कम से कम दो बार आयुर्वेदिक अस्पताल उपचार कराने के लिए जाते हैं। उस दौरान काफी इंतजार करना पड़ता है कि कब अस्पताल का ताला खुलता है। जब महिला कर्मचारी आती हैं उसी वक्त अस्पताल का ताला खुलता है।
चतुर्भुज तिवारी, ग्रामीण मरीज देवगवां
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