उच्च वृद्धि दर हासिल करने के लिए अगले सुधारों की दिशा पर विचार करने का समय आ गया: उद्योग जगत

नयी दिल्ली 22 जुलाई (वार्ता) उद्योग जगत ने आज संसद में पेश पिछले वित्त वर्ष के आर्थिक सर्वेक्षण पर आज कहा कि जीएसटी और आईबीसी जैसे कई अग्रणी सुधार अब परिपक्व हो चुके हैं इसलिए अब समय आ गया है कि सुधारों की अगली छलांग पर ध्यान दिया जाए, जो देश को और भी अधिक वृद्धि हासिल करने के लिए तैयार करेगी।

उद्योग एवं वाणिज्य संगठन फिक्की के अध्यक्ष डॉ. अनीश शाह ने वित्त वर्ष 2023-24 की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “आज आर्थिक सर्वेक्षण के हिस्से के रूप में प्रस्तुत भारतीय अर्थव्यवस्था के परिदृश्य पर हम बहुत परिपक्व दृष्टिकोण देखते हैं। हालांकि वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 6.5-7.0 प्रतिशत की अनुमानित आर्थिक विकास दर थोड़ा कंज़र्वेटिव लग सकता है। लेकिन, हमें लगता है कि भारत जैसे तेज गति से बढ़ने वाले देश के लिए यह वृद्धि उत्साहजनक है। जीएसटी और आईबीसी जैसे कई क्रांतिकारी सुधार अब परिपक्व हो चुके हैं इसलिए अब समय आ गया है कि हम सुधारों की अगली छलांग पर गौर करें जो भारत को और भी अधिक वृद्धि हासिल करने के लिए तैयार करेगी।”

आर्थिक सर्वेक्षण ने भारत के भविष्य के विकास के लिए छह प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर फोकस किया है। इनमें निजी निवेश को बढ़ावा देना, एमएसएमई को मजबूत करना, कृषि क्षेत्र के विकास में आने वाली बाधाओं को दूर करना, हरित संक्रमण वित्तपोषण के लिए एक स्पष्ट रूपरेखा तैयार करना, कौशल पर अधिक ध्यान केंद्रित करके शिक्षा-रोजगार की खाई को पाटना और राज्य की क्षमता और योग्यता को मजबूत करना शामिल है। फिक्की इन पहचाने गए क्षेत्रों से पूरी तरह सहमत है और सरकार को दिए गए अपने हालिया सबमिशन में हमने इनमें से प्रत्येक क्षेत्र पर विशिष्ट सिफारिशें साझा की हैं। हमें उम्मीद है कि कल पेश किया जाने वाला केंद्रीय बजट इस बारे में विशिष्ट विवरण प्रदान करेगा कि सरकार इन प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए सभी हितधारकों को कैसे शामिल करेगी।

डॉ. शाह ने कहा कि आर्थिक सर्वेक्षण में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को चिन्हित किया गया है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। सबसे पहले, सर्वेक्षण ने सुझाव दिया है कि भारत के लिए गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए निजी क्षेत्र के वित्तपोषण और नए स्रोतों से संसाधन जुटाने का उच्च स्तर महत्वपूर्ण होगा। इसके लिए न केवल केंद्र सरकार से नीतिगत और संस्थागत समर्थन की आवश्यकता होगी बल्कि राज्य और स्थानीय सरकारों को भी समान रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। दूसरा, पिछले तीन वर्षों में अच्छी वृद्धि के बाद निजी पूंजी निर्माण थोड़ा अधिक सतर्क हो सकता है क्योंकि अतिरिक्त क्षमता वाले देशों से सस्ते आयात की आशंका है। तीसरा, यह पता लगाने की आवश्यकता है कि क्या भारत के मुद्रास्फीति लक्ष्य ढांचे को खाद्य को छोड़कर मुद्रास्फीति दर को लक्षित करना चाहिए।

उद्योग परिसंघ सीआईआई के अध्यक्ष संजीव पुरी ने आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “भारत के विकास की कहानी के बारे में सर्वेक्षण सकारात्मक है, और मुझे विश्वास है कि वित्त वर्ष 2025 के लिए भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि सर्वेक्षण में दिए गए पूर्वानुमान को पार कर जाएगी। वित्त वर्ष 2025 के लिए जीडीपी वृद्धि, जो कि शीघ्र ही प्राप्त की जा सकती है, उत्कृष्ट मैक्रो वित्तीय प्रबंधन और सुविधाजनक नीतिगत माहौल द्वारा संचालित है जिसमें पूंजीगत व्यय और मुद्रास्फीति नियंत्रण पर जोर शामिल है। सीआईआई को विश्वास है कि आगे चलकर भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार एजेंडे पर केंद्र, राज्यों और निजी क्षेत्र के बीच आम सहमति से सात प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हासिल करने की क्षमता है।

सर्वेक्षण में इस तथ्य को सही माना गया है कि ग्रामीण मांग को बढ़ावा देने के लिए कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इसी तरह, दूरदराज के इलाकों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार और स्वास्थ्य सेवा जैसे सामाजिक क्षेत्र पर जोर देने से हाशिए पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने और यह सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलेगी कि हर भारतीय ‘नए भारत’ में हितधारक बने। सीआईआई मध्यम अवधि के लिए सर्वेक्षण में प्रस्तावित सुधार एजेंडे का पूरे दिल से समर्थन करता है और उम्मीद करता है कि आगामी बजट में कुछ ऐसे उपाय लागू किए जाएंगे, जिनसे भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास क्षमता को विस्तार देने में मदद मिलेगी।

भारतीय निर्यात संगठनों का संघ (फीओ) के अध्यक्ष श्री अश्विनी ने कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में व्यापार (वस्तुओं और सेवाओं) की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। भारत का निर्यात क्षेत्र मौजूदा भू-राजनीतिक प्रतिकूलताओं और स्थिर मुद्रास्फीति के बीच मजबूत बना हुआ है। हालांकि प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की कम मांग के कारण व्यापारिक निर्यात में कमी आई, लेकिन सेवाओं के निर्यात ने अच्छा प्रदर्शन जारी रखा, जिससे कुल व्यापार घाटा वित्त वर्ष 2023 में 121.6 अरब डॉलर से वित्त वर्ष 2024 में 78.1 अरब डॉलर तक कम हो गया। कच्चे तेल सहित आयातित वस्तुओं की कम कीमतों ने भी व्यापार घाटे को नियंत्रण में रखने में मदद की।

देश में लॉजिस्टिक की लागत को कम करने से, जो अब वैश्विक बेंचमार्क के बराबर 14-15 प्रतिशत है, हमारे निर्यात को दुनिया भर में अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलेगी। इस संबंध में वैश्विक ख्याति की एक भारतीय शिपिंग लाइन का विकास समय की मांग है, क्योंकि देश ने 2022 में परिवहन सेवा शुल्क के रूप में 109 अरब डॉलर से अधिक का भुगतान किया है। जैसे-जैसे भारत एक लाख करोड़ डॉलर के माल निर्यात के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, यह 2030 तक 200 अरब डॉलर को छू जाएगा।

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