केसर के साथ उग रही औषधियां भी
वीरेंद्र वर्मा
इंदौर. इंदौर के पास महू में जामली गांव में एक प्रोफेसर ने बंजर पहाड़ी को हरियाली से सराबोर कर दिया. हरियाली के लिए निजी जमीन पर मात्रा आठ साल में यह करिश्मा किया गया है, जिसका नाम केशर पर्वत है. इस जगह पर केशर भी उग रही है और औषधियां भी. 22 एकड़ के उक्त पहाड़ी पर देश में होने वाले एक भी ऐसा पेड़ नहीं है,जो केशर पर्वत पर नहीं हो. सिर्फ कीवी फल को छोड़कर सारे फल के पेड़ मौजूद हैं. ये सभी पेड़ प्राकृतिक वातावरण में ही पनप रहे है.
पुराने आगरा-मुंबई मार्ग पर महू से जामली के पास केशर पर्वत है. यह पर्यावरण की एक मिसाल है. वास्तविकता में इस पर्वत को केशर पर्वत इसलिए कहते है कि यहां पर 42 डिग्री सेल्सियस में केशर पैदा हुई है। यह कारनामा कर दिखाया है, पूर्व प्राचार्य और उच्च शिक्षा के सेवानिवृत संयुक्त संचालक डा. एस एल गर्ग ने. गर्ग 2016 में रिटायर हुए थे, उन्होंने जामली में कॉलेज खोलने की लिए बंजर पहाड़ी की जमीन खरीदी थी. मगर उनका मन पलट गया, क्योंकि उनके पास स्टूडेंट्स पर्यावरण और प्रदूषण की जानकारी लेने आते थे, उनसे पढ़ते थे. उन्होंने कॉलेज डालने की योजना बदल दी और पर्यावरण के लिए उक्त पहाड़ी पर काम शुरू कर दिया.
37 हजार से ज्यादा पौधे लगाए
पिछले आठ सालों में बंजर भूमि पर 37 हजार से ज्यादा पौधे उन्होंने प्राकृतिक वातावरण में लगाएं है, जो आज शहर में कई पर्यावरण संरक्षण दाताओं और विद्यार्थियों के लिए शोध का विषय हो सकता है. ठंडे और माइनस डिग्री में पैदा होने वाले फल और केशर को 42 डिग्री तापमान में पैदा कर दिया. उक्त पर्वत पर 15 फीट गहरे तालाब का निर्माण भी किया गया है, जिसमें तीन हजार से ज्यादा मछलियां भी है. उससे सभी पौधों और पेड़ को पानी दिया जाता है. एक कुआं भी खोदा गया है, जो सौ फीट गहरा है. उक्त कुएं में पहले पानी नही था, कुआं देखने पर मालूम पड़ता है कि सौ फीट तक सिर्फ पत्थर ही है, लेकिन वहां लगाए पौधे जो अब पेड़ बन चुके है. उसके कारण भरी गर्मी में आठ से दस फीट पानी रहता है. उक्त जगह पर जंगली जानवरों का आना जाना भी शुरूहो गया है.
केशर पर्वत की खासियत यह है कि यह किसी सरकारी मदद या ग्रांड का मोहताज नहीं है. यहां पर प्राकृतिक वातावरण में ही पौधे, पेड़ बढ़ रहे है. मतलब यह कि पत्थरों में जो नेचुरल मिट्टी है बस उसी से पेड़ पनप रहे है. प्राकृतिक इसलिए कि यहां सिर्फ पानी के अलावा पौधों को खाद, यूरिया आदि कुछ नहीं दिया जाता है. सिर्फ एक ही मिशन है कि भले ही दस बूंद पानी मिले पर पौधों को पानी मिले.
पर्यावरण की जीती जगती मिसाल
चित्र- एसएल गर्ग
बंजर जमीन को हरियाली से अच्छादित करने वाले संचालक प्रोफेसर डॉ. एस एल गर्ग बताते है कि आठ साल में यहां घने जंगलों से जुड़ा वातावरण पैदा किया है. एक मिशन हाथ में लिया था, क्योंकि स्टूडेंट्स अक्सर पूछते थे. उनके लिए भी यह जगह अब नेचर इन्वायरमेंट का जीता जागता उदाहरण बन चुकी है. सैलानी भी आते है और रुकने की व्यवस्था भी है.
प्रो. गर्ग कहते है कि हमारे पर्वत पर सभी तरह के पेड़, फल, सब्जी, औषधियां और जंगली प्रजातियों के पेड़ों में शीशम से लेकर चिनार तक सभी मौजूद है. सब चल रहे है.