अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में हिंसा !

खुद को दुनिया के लोकतंत्र का झंडाबरदार समझने वाला अमेरिका लगता है खुद की नसीहत भूल गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान हिंसा की खबरें हैं. पूर्व राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप पर हमले हुए हैं.अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव नवंबर में होने वाला है. इन दिनों राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के भीतर निर्वाचन प्रक्रिया चल रही है. सत्तासीन डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन और रिपब्लिकन पार्टी की ओर से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप मैदान में हैं. हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप पर दो हमले हुए हैं. एक हमले में ट्रंप बाल बाल बच गए. जबकि दूसरा हमला सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स ने नाकाम कर दिया. जाहिर है दुनिया को लोकतंत्र की नसीहत देने वाला अमेरिका खुद लोकतंत्र का पाठ भूल रहा है. हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि ब्रिटेन के साथ ही अमेरिका को भी आधुनिक लोकतंत्र की जननी कहा जाता है. अमेरिका का लोकतंत्र प्राचीनतम है, लेकिन वहां बंदूक भी गोली-बिस्कुट और मूंगफली की तरह उपलब्ध है.औसतन हर हाथ में बंदूक या रिवॉल्वर है.अमरीका आत्म-रक्षा की दलीलें देता रहा है, लेकिन लोकतंत्र के साथ-साथ बंदूक-संस्कृति भी जारी है, यह विरोधाभास कैसे ढोया जा रहा है? लोकतंत्र में यह हत्यारा विरोधाभास भी मौजूद रहेगा, जो आने वाले किसी भी पल में, किसी और को,निशाना बनाया जा सकता है ! इस सांस्कृतिक, सामाजिक और बेचैन गिरावट और पतन का अमरीकी नेताओं, राजनीतिक दलों और नागरिकों को लगातार विरोध करना चाहिए.इस घटना की जांच कर रही एफबीआई का मानना है कि यह ट्रम्प की हत्या करने जैसा हमला था.हमले को लेकर कई सवाल सुरक्षा पर उठाए जा रहे हैं.जांच के बाद जो तथ्य सामने आएंगे, उन्हीं के आधार पर विश्लेषण किया जाना चाहिए. जिस 20 साल के नौजवान ने 120 मीटर से निशाना साध कर हमला किया, वह भी रिपब्लिकन पार्टी का सदस्य था और ट्रम्प को ‘गलत’ मानता था.लोकतंत्र में आम नागरिक वोट के जरिए अपना अभिमत प्रकट कर सकता है और यही उसका बुनियादी अधिकार है, लेकिन अमरीका में लोकतंत्र के साथ राजनीतिक हिंसा का भी संबंध रहा है.राजनीति के अलावा, सामाजिक, मानसिक और सांस्कृतिक ध्रुवीकरण भी हिंसात्मक रहे हैं, नतीजतन स्कूलों, बाजारों, सभा-कक्षों अथवा किसी समारोह के दौरान भी गोलीबारी चलाई जाती रही है. मौतें होती रही हैं.लोग बुरी तरह जख्मी भी होते रहे हैं. हमलावर की प्रवृत्तियों को मनोवैज्ञानिक अस्थिरता के आवरण में छिपाया जाता रहा है.वैसे,ऐसे हमले अभूतपूर्व नहीं हैं. अमरीका में चार पदासीन राष्ट्रपतियों-अब्राहम लिंकन, जेम्स गारफील्ड, विलियम मैककिनले, जॉन एफ. कैनेडी-की हत्या की जा चुकी है.पांच राष्ट्रपतियों-बिल क्लिंटन, रोनाल्ड रीगन, जेराल्ड फोर्ड, फ्रेंकलिन रुजवेल्ट, थियोडोर रुजवेल्ट-पर भी हमले किए जा चुके हैं. यह कैसा लोकतंत्र और ‘दुनिया का दादा’ देश है, जो दुनिया को लोकतंत्र और मानवाधिकारों के ज्ञान बांटता रहता है, लेकिन जहां ‘बंदूक-संस्कृति’ बिल्कुल सामान्य है.बंदूक बनाने वाले उद्योगपति इतने ताकतवर हैं कि न तो राष्ट्रपति बाइडेन कोई निर्णय ले पाए और न ही ट्रम्प और उनकी पार्टी की सोच बंदूक-विरोधी है.जनवरी 6, 2021 की चेतावनी अमरीका कैसे भूल सकता है, जब – ट्रम्प समर्थक भीड़ ने ‘यूएस कैपिटल’ ( यूएस कांग्रेस) पर हमला किया था और अंदर घुस गई थी. उस पर क्या कानूनी कार्रवाई की गई,आज तक स्पष्ट नहीं है. वह अमरीकी लोकतंत्र और संसद पर सबसे भीषण प्रहार था.सवाल यह है कि लोकतंत्र में भीड़ इतनी हिंसात्मक कैसे हो गई, जबकि उसके मानवाधिकार सुरक्षित हैं? हाल ही में अमरीका में ‘राजनीतिक हिंसा’ पर एक जनमत किया गया.आश्चर्य है कि 10 प्रतिशत लोगों ने जवाब ट्रम्प के खिलाफ दिया कि ऐसे नेताओं को राष्ट्रपति बनने से रोकने के लिए ऐसा ही बल इस्तेमाल करना क्या न्यायसंगत है. चुनाव लोकतंत्र का एक अनिवार्य हिस्सा है, लेकिन हिंसा का उसमें कोई स्थान नहीं होना चाहिए. अमरीका में ही नहीं, दुनिया के देशों में यदि लोकतंत्र को जिंदा रखना है, तो चुनाव प्रचार का तरीका भी सभ्य होना चाहिए.

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