नयी दिल्ली (वार्ता) पानी की बचत और लागत में कमी आने की वजह से डायरेक्ट सीडेड राईस (डीएसआर) विधि से धान की बुआई कीे लोकप्रियता बढ़ने लगी है और अब राज्य सरकारें भी इसे लोकप्रिय बनाने के लिए सब्सिडी देने लगी है।
ग्लोबल प्योरप्ले कृषि कंपनी कॉर्टेवा एग्रीसाईंस इसे लोकप्रिय बनाने और किसानों को इस विधि से धान की बुआई के लिए उन्नत बीज उपलब्ध कराने के साथ ही कई तरह से मदद कर रही है।
कॉर्टेवा एग्रीसाईंस के अध्यक्ष – साउथ एशिया, सुब्रोतो गीड ने कहा कि इस वैकल्पिक विधि से धान की खेती में 30 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
इसके साथ ही यह पारंपरिक तरीके से की जाने वाली धान की रोपाई की तुलना में इसमें लागत कम आती है और समय भी कम लगता है।
उन्होंने कहा कि अभी देश में करीब 46 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है।
इसके से 10 से 12 प्रतिशत में डीएसआर विधि से धान की बुआई की जा रही है और हर वर्ष इसमें 15 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो रही है।
उन्होंने कहा कि डीएसआरा से धान की बुआई करने पर पंजाब सरकार प्रति एकड़ 1500 रुपये और हरियाणा सरकार चार हजार रुपये की सब्सिडी दे रही है जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ रही है।
यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ ही मध्य प्रदेश में भी अब लोकप्रिय हो रही है।
इन राज्यों के किसान भी अब हर वर्ष इस विधि से धान की बुआई का रकवा बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि डायरेक्ट सीडेड राईस एक इनोवेटिव विधि है, जिसमें धान के बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं।
इसके विपरीत पारंपरिक विधि में बीजों को नर्सरी में बोकर पौधे उगाए जाते थे, जिन्हें फिर खेत में लगाया जाता था।
आज किसानों को पर्याप्त और स्वस्थ फसल उगाने में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
जब बीज बोए जाते हैं, उसी क्षण से बीमारियों, कीटों/खरपतवार और अप्रत्याशित मौसम की अनेक चुनौतियाँ शुरू हो जाती हैं।
इन चुनौतियों को हल करने के लिए सस्टेनेबल और इनोवेटिव कृषि विधियों की जरूरत हो पहचानते हुए कॉर्टेवा डायरेक्ट सीडेड टेक्नोलॉजी (डीएसआर) को बढ़ावा दे रहा है।
उन्यहोंने कहा कि यह एक इनोवेटिव विधि है, जिसमें किसान धान उगाने की पारंपरिक विधि की बजाय उसके बीजों को सीधे अपने खेत में बोते हैं।
यह विधि अनेक पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ प्रदान करती है।
भारत में चावल उगाने की पारंपरिक विधियों के लिए बहुत ज्यादा पानी और काफी श्रम की जरूरत होती है।
किसानों को दलदली जमीन में बीजों को बोना पड़ता है और खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए खेतों में पानी भरना पड़ता है।
इन विधियों में बहुत ज्यादा मेहनत लगती है और काफी पानी खर्च होता है।
इसके विपरीत डीएसआर की विधि में पानी और श्रम की काफी कम जरूरत होती है और ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन भी कम होता है, जिससे धान की खेती में क्रांति आ गई है।
जहाँ पारंपरिक विधियों में लगातार बहुत ज्यादा पानी लगता है, वहीं डीएसआर में कम पानी लगने के कारण पानी की बचत होती है।
साथ ही, डीएसआर विधि में जुताई कम होने के कारण मिट्टी की सेहत व गुणवत्ता में भी सुधार होता है।
इस विधि में फसल की रोपाई में श्रम लागत कम हो जाने के कारण किसानों को प्रति एकड़ लगभग 60 मानव घंटों की बचत होती है।
साथ ही, डीएसआर में खरपतवारनाशकों के प्रभावी उपयोग के कारण पैदावार और लाभ बढ़ते हैं।
श्री गीड ने कहा कि डीएसआर के अनेक फायदे हैं, लेकिन इसके विस्तृत उपयोग में चुनौतियाँ भी हैं।
किसानों के बीच इसके बारे में कम जागरुकता और समझ के कारण शंकाएं उत्पन्न हुई हैं, जो खासकर अनुपयुक्त मिट्टी में इसके उचित क्रियान्वयन और खरपतवार नियंत्रण को लेकर हैं।
कॉर्टेवा अपने एफपीओ गठबंधनों जैसी परियोजनाओं द्वारा कृषि उद्यमियों को खेती की विशेषज्ञता, तकनीकी ज्ञान, उनका आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए नेतृत्व प्रशिक्षण और वित्तीय साक्षरता प्रदान करने में अग्रणी है।
उन्होंने कहा “ कॉर्टेवा एग्रीसाईंस में हम चावल किसानों की चुनौतियों और सस्टेनेबल खेती को बढ़ावा देने की गंभीर जरूरत को समझते हैं।
इसीलिए हम विभिन्न हितधारकों के सहयोग द्वारा डीएसआर को बढ़ावा दे रहे हैं।
विभिन्न साझेदारों को साथ लाकर और आधुनिक सीड टेक्नोलॉजी, फसल सुरक्षा समाधानों और सस्टेनेबल कृषि विधियों को अपनाकर हम किसानों को धान की अच्छी पैदावार के लिए प्रभावी समाधान प्रदान कर रहे हैं।
हम हमारे भविष्य के उद्देश्य के अनुरूप है, जिसके अंतर्गत अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी, समान विचारधारा के लोगों के साथ गठबंधन, और इंटीग्रेटेड सस्टेनेबल विधियाँ हमें अपने महत्वाकांक्षी सस्टेनेबिलिटी लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करेंगे।
”
कंपनी के साउथ एशिया के सीड आर एंड डी लीडर डॉ. रमन बाबू ने कहा, “ कॉर्टेवा एग्रीसाईंस में हम भारत में डीएसआर के व्यापक उपयोग के लिए इनोवेटिव समाधानों का विकास करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
चावल की पारंपरिक खेती में ज्यादा मेहनत, ज्यादा पानी और ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है, साथ ही खराब मौसम से फसल पर भी असर होता है, और खरपतवारों एवं बीमारियों से भी फसल प्रभावित होती है, जिसके कारण पैदावार और लाभ में कमी आ जाती है।
हम जलवायु की बेहतर सहनशीलता वाले डीएसआर बीज उत्पादों एवं इनोवेटिव फसल सुरक्षा समाधानों का विकास करने और कृषि में उत्कृष्टता लाने पर केंद्रित हैं, जिससे पानी की कमी और जलवायु परिवर्तन के समाधानों का निर्माण हो सकेगा और भारत में चावल की खेती ज्यादा सस्टेनेबल एवं उत्पादक बन सकेगी।
”
उन्होंने कहा कि डीएसआर को बढ़ावा देने के लिए कॉर्टेवा खेतों में प्रदर्शन, तकनीकी प्रशिक्षण और शिक्षा प्रदान करता है ताकि किसानों को धान की सस्टेनेबल खेती अपनाने की प्रेरणा मिले।
कॉर्टेवा एग्रीसाईंस विस्तृत कृषि सहयोग और जानकारीवर्धक गतिविधियों द्वारा किसानों को डीएसआर टेक्नोलॉजी अपनाने में मदद करने के लिए प्रतिबद्ध है।
डीएसआर जैसी खेती की सस्टेनेबल विधियों को बढ़ावा देकर कॉर्टेवा का उद्देश्य कृषि की दीर्घकालिक मजबूती व सस्टेनेबिलिटी सुनिश्चित करना है।