भोपाल। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय में नृत्य, गायन एवं वादन पर केंद्रित गतिविधि “संभावना” का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें 07 जुलाई, 2024 को सुश्री कल्याणी मिश्रा, रीवा द्वारा बघेली गायन में हरि राम बरसत इंद्र अकेले (कजरी गीत), चला चली झूला झूलम सखियाँ (झूला गीत)…, कन्हाई हमार सखियन के दहिया खाईगा…, सुश्री राखी बांके द्वारा निमाड़ी गायन में आओ म्हारा गणपति इना दरबार (गणपति वंदना)…, लाग्यो-लाग्यो श्रावण मास रे (सावन गीत)…, काला- काला बादल बिजुरिया (वर्षा गीत)…, एवं श्री अजय गांगुलिया द्वारा मालवी लोक गीतों में मेवा जी आप बरसो (वर्षा गीत)…, गाड़ी तो रकड़ी रेत में (मामेरा गीत)…, माना गुजरी मतवारी गुजरी (गुजरी गीत)…, की प्रस्तुति दी गई।
गतिविधि में श्री दयाराम एवं साथी, डिण्डोरी द्वारा बैगा जनजातीय करमा नृत्य की प्रस्तुति दी गई। करमा नृत्य बैगा जनजाति का प्रमुख लोक नृत्य है। इस नृत्य में बैगा अपने कर्म को नृत्य-गीत के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसी कारण इस नृत्य-गीत को करमा कहा जाता है। करमा नृत्य विजयदशमी से वर्षा के प्रारंभ होने तक चलता है। नृत्य में बैगा पुरुष बीच में खड़े होकर वाद्ययंत्र बजाते हैं और महिलाएं गोल घेरे बनाकर एक दूसरे के घूम-घूम कर गीत गाते हुए नृत्य करती हैं एवं हाथ में ठिसकी (वाद्ययंत्र) होता है। इस नृत्य में स्त्री एवं पुरुष दोनों समूह में भाग लेते है।
अगले क्रम में श्री अमान सिंह पटेल एवं साथी, सागर द्वारा ढिमरियाई नृत्य की प्रस्तुति दी। गतिविधि में ढिमरियाई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कलाकारों ने संग्रहालय परिसर में नृत्य प्रस्तुति दी। ढिमरियाई बुन्देलखण्ड की ढीमर जाति का पारम्परिक नृत्य-गीत है। इस नृत्य में मुख्य नर्तक हाथ में रेकड़ी वाद्य की सन्निधि से पारम्परिक गीतों की नृत्य के साथ प्रस्तुति देते हैं। अन्य सहायक गायक-वादक मुख्य गायक का साथ देते हैं। मध्यप्रदेश जनजातीय संग्रहालय़ में प्रति रविवार आयोजित होने वाली इस गतिविधि में मध्यप्रदेश के पांच लोकांचलों एवं सात प्रमुख जनजातियों की बहुविध कला परंपराओं की प्रस्तुति के साथ ही देश के अन्य राज्यों के कलारूपों को देखने समझने का अवसर भी जनसामान्य को प्राप्त होगा। यह नृत्य प्रस्तुतियां संग्रहालय परिसर में आयोजित की जायेंगी।