मालवा- निमाड़ की डायरी
संजय व्यास
भारत आदिवासी पार्टी को राजस्थान और मध्य प्रदेश के चुनावों में मिली सफलता और आदिवासियों में बढ़ी पैठ से प्रेरित पश्चिीमी मध्यप्रदेश में व्यापक समर्थन हांसिल जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन (जयस) ने भी राष्ट्रीय स्तर पर पैर पसारने की तैयारी कर ली है. उल्लेखनीय है कि अपनी स्थापना के तीन माह में ही बाप ने विधानसभा चुनावों में सैलाना की 1 सीट और राजस्थान की 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी, उसके बाद हाल के लोक सभा चुनाव में उसने राजस्थान की बांसवाड़ा सीट से शानदार जीत दर्ज की है. इसीलिए मालवा निमाड़ के आदिवासियों में गहरी पकड़ प्राप्त जयस भी राष्ट्रीय स्तर पर अपने विस्तार की ओर आगे बढ़ रही है. फिलहाल अंचल से उसके एकमात्र विधायक जयस के राष्ट्रीय संरक्षक हीरालाल अलावा हैं और इस बार भी कांग्रेस के टिकट पर जीते.
इसी सिलसिले में जयस की राष्ट्रीय बैठक इंदौर में हई थी, जिसमें तय किया था कि जयस का सामाजिक सरोकार का ढांचा बरकरार रख अलग राजनीतिक दल के रूप में चुनाव लडऩे के इच्छुकों को मैदान में उतारा जाएगा. इसकी रूपरेखा तय करने के लिए कुछ दिनों पूर्व संगठन की वर्किंग कमेटी की राष्ट्रीय बैठक दिल्ली में आयोजित हुई. चूंकि जयस की निगाहें अगले चुनावों पर हैं इसलिए बैठक में राजनीतिक दल उतारने से पूर्व हर प्रदेश के प्रत्येक जिला, तहसील पंचायत एवं ग्रामीण स्तरों तक संगठन का विस्तार कर संगठनात्मक संरचना की मजबूती के लिए निरंतर कार्य करने का निर्णय लिया गया. भविष्य में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का विस्तार तथा समस्त प्रदेशों की जयस कार्यकारिणियों के पुनर्गठन पर भी चर्चा हुई. बैठक में जयस राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हीरालाल अलावा, राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबूसिंह डामोर, गंगाराम गगराई, अलोके मिचायारी झारखंड, आनंद मेश्राम, विपिनकुमार कावड़े, तेलंगाना से राजन कुमार, उप्र से हितेश राणा, गुजरात से राणजीतसिंह डामोर, मप्र के झाबुआ से जिलाध्यक्ष विजय डामोर, राजेंद्र पंवार, सोनू रावत सहित कई राज्यों के प्रतिनिधि मौजूद थे.
राजवर्धन सिंह का पुनर्वास होगा!
लोक सभा चुनाव निपटने के साथ अब निगम और मंडलों में नियुक्तियों की चर्चा जोरों पर है. पदों के मान से जुगाड़ लगा रहे नेताओं की सूची लंबी होती जा रही है. चुनाव में हार या प्रदेश मंत्री मंडल में स्थान पाने से चूके कई दिग्गजों के नाम भी रेस में बताए जा रहे हैं. ऐसे ही नेताओं में धार जिले के बदनावर से विधायक व मंत्री रहे राजवर्धन सिंह का नाम मुख्य रूप से लिया जा रहा है. वे ज्योतिरादित्य सिंधिया के खास करीबियों में गिने जाते हैं. क्षेत्र में उनके पिता प्रेम सिंह दत्तीगांव के बाद से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव का दबदबा रहा है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में वे सहकारी नेता भंवर सिंह शेखावत से पराजित हो गए. राजवर्धन के विनम्र स्वभाव और शालीनता की वजह से भाजपा में उनके प्रति वरिष्ठ नेताओं का साफ्ट कार्नर है. इसलिए कहा जा रहा है कि निगम-मंडल, बोर्ड या आयोग में अहम जिम्मेवारी सौंप कर उनका राजनीतिक पुनर्वास किया जा सकता है. राजवर्धन कांग्रेस छोड़ सिंधिया के साथ भाजपा में आए थे. वे उपचुनाव भी जीते ओर शिवराज सरकार में मंत्री भी बने थे.
परफॉर्मेंस के आधार पर मिलेगा दायित्व
उज्जैन मुख्यमंत्री का गृह जिला होने से यहां के भी कई भाजपा नेता निगम – मंडलों में नियुक्ति की उम्मीद पाले हैं. पद पाने के दावेदार नेताओं की सक्रियता धीरे-धीरे बढऩे लगी है. मोहन यादव की नजर में अपने नंबर बढ़ाने लभी नेता लोक सभा चुनाव में जी-जान से लगे थे. हालांकि मोहन यादव ने उज्जैन के नेताओं और कार्यकर्ताओं का रिपोर्ट कार्ड तैयार करवाया है. अब रिपोर्ट में मिले परफॉर्मेंस के आधार पर ही तय होगा कि कौन जिम्मेदारी के कबिल है और किसे दायित्व सौंपा जाए. रिपोर्ट कार्ड निगम-मंडल ही नहीं संगठन में भी विभिन्न पद पाने का पैमाना रहेगा.