नयी दिल्ली, (वार्ता) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की पिछली बैठक की कार्यवाही के विवरण से इस बात की पुष्टि होती है कि आर्थिक वृद्धि की परिस्थितियां अभी नरम हैं।
मुख्य रूप से इसी कारण एमपीसी के अधिकतर सदस्यों ने मौद्रिक नीति को उदार बनाए रखने का निर्णय लिया।
इस माह 08-10 तरीख को हुई एमपीसी की बैठक में रिजर्व बैंक ने मुद्रास्फीति के जोखिमों के ऊंचे बने रहने के बावजूद नीतिगत दरों को पहले के स्तर पर बनाए रखा और नीतिगत रुख को तब तक उदार रखने का निर्णय किया जब तक की अर्थव्यवस्था की वृद्धि के लिए इसकी जरूरत होगी।बैठक की कार्रवाही का विवरण गुरुवार को जारी किया गया।
वित्तीय सेवा कंपनी एमके ग्लोबल फाइनेंशियल सर्विसेज ने कहा कि समति के अधिकांश सदस्यों को लगा कि आर्थिक वृद्धि की गति टूट गयी है, यह संभावनाओं से नीचे है और इसको पुन: बढ़ाने के लिए नीतिगत समर्थन की जरूरत है।
अधिकतर सदस्यों का मानना था कि अभी अर्थव्यवस्था के लिए पूरक की भूमिका वाली मौद्रिक नीति और अनुकूल वित्तीय दशा की जरूरत है।
बैठक के विवरण में उदार मौद्रिक रूप के बारे में पारित प्रस्ताव में कहा गया है, ‘‘एमपीसी आर्थिक वृद्धि को पुन: गति देने और इसे ठोस आधार प्रदान करने तथा अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रभाव को कम करने के लिए उदार रुख को बनाए रखने तथा यह सुनिश्चित करने का निर्णय लेती है कि आगे बढ़ते हुए मुद्रास्फीति को लक्षित सीमा के दायरे में रखा जाए।’’
मुद्रास्फीति के बारे में सभी सदस्यों की राय समान थी।मुद्रास्फीति इस समय अपने चरम पर है।
समिति में विचार व्यक्त किया गया है कि आपूर्ति पक्ष की ओर से मुद्रास्फीति के निरंतर झटके मुख्य रूप से भू-राजनीतिक कारणों से जिंसों की कीमतों में तेजी या लम्बे समय से आपूर्ति श्रृंखला में उत्पन्न रुकावटों के बने रखने के कारण है, पर आपूर्ति में रुकावट का असर मांग की कमजोरी के कारण कम है।
एमपीसी के सदस्य प्रो आशिमा गोयल और डाॅ. माइकल देवव्रत पात्रा (डिप्टी गवर्नर) ने मुद्रास्फीति को बांधने के जरूरत से अधिक प्रयास पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि इसके लिए उत्पादन को लेकर जो त्याग करना होगा, वह बहुत ज्यादा होगा।