2024 के चुनाव का निर्णय एक बार फिर जाहिर करता है कि भारत के मतदाता का सामूहिक विवेक किसी भी राजनीतिक विश्लेषक या विशेषज्ञ की तुलना में अधिक प्रभावी साबित होता है. 2024 में जनता का साफ फैसला है कि सरकार और विपक्ष दोनों मिलजुल कर देश के विकास के लिए काम करें. इसके अलावा लोक लुभावन घोषणाओं के बारे में भी जनता ने स्पष्ट किया है कि कोई भी राजनीतिक दल मतदाता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से रिश्वत या प्रलोभन देकर अपनी ओर नहीं लुभा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह रेवड़ी योजनाओं या रेवड़ी कल्चर के बारे में बार-बार चेतावनी दी थी, उन लोक लुभावन घोषणाओं का क्या हश्र हुआ इस पर एक नजर डालनी चाहिए. जिन राज्यों में सर्वाधिक मुफ्त योजनाएं चल रही थीं, उनमें आंध्र प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा, और पंजाब जैसे राज्यों का शुमार होता है. आंध्र प्रदेश की जगन मोहन रेड्डी सरकार ने पिछले 5 वर्षों के दौरान भारी लोक लुभावन योजनाएं चलाई थी. वहां पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, अनाज सब कुछ मुफ्त था. महिला और किसानों को प्रति माह निश्चित राशि प्रदान की जाती थी. मुफ्त बस यात्रा इत्यादि सुविधाओं की झड़ी लगा दी गई थी. इसके बावजूद जगनमोहन रेड्डी का बुरी तरह सफाया हो गया. आंध्र प्रदेश की 175 विधानसभा सीटों में से जगनमोहन रेड्डी को सिर्फ 11 विधानसभा सीट प्राप्त हो सकी है. चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देसम, पवन नारा की जनकल्याण और भाजपा ने मिलकर आंध्र प्रदेश की 164 सीटों पर जीत दर्ज की. साफ है कि जनता केवल मुफ्त योजनाओं को पसंद नहीं करती. जनता की दृष्टि में भ्रष्टाचार मुक्त, विकासोन्मुखी,सुशासन का महत्व अधिक है. भारत की राजनीति में मुफ्त की योजनाओं का प्रतीक यदि किसी को माना जाता है तो वो है अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी. आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकारें हैं,जहां तमाम तरह की मुफ्त योजनाएं चल रही हैं. दिल्ली में आम आदमी पार्टी का पूरी तरह सफाया हो गया. जबकि पंजाब में वह 13 में से मात्र तीन सीटों पर जीत दर्ज कर सकी. इसी तरह मुफ्त योजनाओं का मॉडल उड़ीसा को भी माना जाता था, लेकिन वहां नवीन बाबू पटनायक की सरकार 25 साल बाद सत्ता से बाहर हो गई. इसी तरह तेलंगाना कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में भी कांग्रेस ने जनता के लिए अनेक रेवड़ी योजनाएं चलाई लेकिन इन तीनों राज्यों में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले अधिक सफलता मिली. हिमाचल प्रदेश में तो भाजपा ने सभी चार सीटें जीती. जबकि तेलंगाना में उसकी और कांग्रेस की सीटें दोनों को (आठ, आठ) बराबर हैं. कर्नाटक में भाजपा और जनता दल सेक्युलर ने मिलकर 28 में से 17 सीटों पर जीत दर्ज की है. जाहिर है यहां भी रेवड़ी कल्चर को जनता ने पसंद नहीं किया है. केरल में वामपंथी सरकार जनकल्याणकारी योजनाओं के मामले में लंबे समय से अग्रणी मानी जाती है. यहां भी मार्क्सवादी सरकार को जनता ने बिल्कुल भी पसंद नहीं किया. उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी भाजपा की सरकारों ने अनेक योजनाएं चला रखी हैं, जिनमें मुफ्त राशन, शिक्षा, सस्ती बिजली, कर्ज माफी जैसे वादे हैं लेकिन इन दोनों राज्यों में भाजपा को भारी नुकसान हुआ. कुल मिलाकर परिणाम बताते हैं कि मुफ्त खोरी की योजनाओं का सीमित लाभ मिलता है यदि शासन और प्रशासन जनता के प्रति जवाब देह, भ्रष्टाचार से मुक्त और योजनाओं की डिलीवरी करने वाला नहीं होगा तो जनता पसंद नहीं करेगी. सरकार को समग्र रूप से जनता के हित में फैसला लेने होते हैं. यदि सरकार की नियत में संदेह दिखेगा तो जनता का समर्थन उस पार्टी या सरकार को नहीं मिलेगा. राजनीतिक दल मतदाता को भुलावे में डालने का भ्रम न रखें. मतदाता सब कुछ देखता और समझता है. देश का मतदाता वक्त आने पर मतदान के रूप में अपना फैसला सुनाता है. जनकल्याणकारी राज्य या गुड गवर्नेंस की अवधारणा में गरीब जनता के हित में चलाई गई योजनाओं का निश्चित ही महत्व है, लेकिन यदि कोई राजनीतिक दल यह मानकर चलेगा कि केवल मुफ्त खोरी से ही जनता संतुष्ट हो जाएगी तो यह उसकी बड़ी भूल होगी. इस संदर्भ में भारत के मतदाताओं ने इस बार लोकसभा चुनाव में बेहद विवेक सम्मत और सूझबूझ भरा फैसला दिया है. इस फैसले में छिपे संदेश को सही तरीके से पढक़र यदि राजनीतिक दल खुद में सुधार लाएं तो ही उनका भला होगा अन्यथा ऐसे दलों को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ेगी.
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